- आपदा के नाम पर लूट मचा रहे अधिकारी
- करीब तीन करोड़ की लागत प्रतापपुर अम्बिकापुर मार्ग में हो रहा है निर्माण
प्रतापपुर (राजेश कुमार गर्ग)
आपदा किसी भी रूप में हो आम आदमी के लिए मुसीबत लेकर आती है और अधिकारियों के लिए राहत,ऐसा ही कुछ हुआ प्रतापपुर अम्बिकापुर व्हाया खड़गवां मार्ग में महान नदी पर बने पूल के इस बरसात में बह जाने के बाद देखने को मिल रहा है,पूल का बहना अधिकारियों के लिए राहत लेकर आई और एक बार फिर आपदा के नाम पर लूट मचाने का मौक़ा उन्हें मिल गया है। आम आदमी को राहत पहुंचाने और कोल परिवहन के लिए करीब तीन करोड़ की लागत से बन रहा रपटा का निर्माण इतना घटिया हो रहा है कि यह पहली बारिश में ही बह जाएगा।
गौरतलब है कि प्रतापपुर अम्बिकापुर व्हाया खड़गवां मार्ग में केरता के पास महान नदी पर करीब अट्ठारह वर्ष पूर्व बना विशाल पूल पिछली बारिश में बह गया था जिसके बाद यह मार्ग पूरी तरह से बन्द हो गया था तथा आम आदमी के लिए मुसीबत बन गया था। पूल के बहने के बाद इस मार्ग से होने वाला कोल परिवहन भी बन्द हो गया जिसे बाद में प्रतापपुर होकर चालु कराया गया। पूल बह गया लोगों के लिए मुसीबत बन गया लेकिन हमेशा की तरह ही अधिकारियों ने आपदा और लोगों की मुसीबत के बीच अपना फ़ायदा ढूंढ लिया जो वे हमेशा से करते हैं और आम लोगों को राहत पहुंचाने तथा कोल परिवहन के नाम से महान नदी पर पूल निर्माण से पहले रपटा पूल निर्माण का निर्णय ले लिया।एसईसीएल ने इसके लिए करीब तीन करोड़ रुपये देने की हामी भरी और निर्माण एजेंसी सेतु निगम अम्बिकापुर को बना दिया। चूँकि निर्माण जल्द से जल्द कराना था इसके लिए टेंडर के नियम में ढील दिया गया और राजनितिक दबाव में अपने एक चहेते ठेकेदार के नाम से वर्क ऑर्डर कर दिया,हालांकि लोगों की मानें तो नाम किसी का और काम किसी का है। आपदा के नाम पर एसईसीएल,सेतुनिगम,ठेकेदार सहित तथाकथित नेताओं को लूट मचाने का मौक़ा मिल गया है जिसके लिए इन्होंने सारे नियमों को ताकत का फ़ायदा उठा शिथिल करा लिया और अब इसका निर्माण इतना घटिया करा रहे हैं कि यह रपटा पहली बारिश में ही ढेर हो जाएगा। ठेकेदार द्वारा सेतु निगम के सब इंजिनियर की देख रेख में स्तरहीन कार्य कराया जा रहा है सेतु निगम के साथ एसईसीएल के अधिकारी भी इस घटिया काम की सराहना कर निकल जाते हैं। महान नदीं बहुत बड़ी नदी है तथा इसमें बालू बहुत ज्यादा गहराई तक है किन्तु इनके द्वारा रपटा के दोनों ओर की दीवाल की गहराई मात्र ढाई मीटर रखी जा रही है वह भी बिना स्टील के,बीच में यह गहराई मात्र सत्तर सेंटीमीटर की जा रही हैं जिसमें पचास सेंटीमीटर बोल्डर और बीस सेंटीमीटर क्रांक्रीट की जा रहा है। अब यह समझा जा सकता है इतनी बड़ी नदी में ढाई मीटर की गहरी दीवाल क्या मायने रखती है जबकि निचे केवल बालू ही बालू हो। जिस दिन भी तेज बारिश होगी पानी बालू के निचले हिस्से खोहता चला जायेगा और पूरा का पूरा रपटा ढह जाएगा।एसईसीएल और सेतु निगम के अधिकारी लोगों को गुमराह करते रहते हैं कि जहां रपटा बन रहा है वहाँ निचे पत्थर ही पत्थर है लेकिन वास्तविकता यह है कि वहाँ केवल बालू ही बालू है।इन अधिकारियों को जन मानस की भावनाओं और परेशानियों से कोई मतलब नई और ये अपनी जेब भारी करने के जुगाड़ में लग गए हैं। सेतु निगम अम्बिकापुर से एक सब इंजिनियर दिन भर वहाँ बैठता है लेकिन लोगों को सिर्फ दिखाने कि काम उनकी देख रेख में अच्छा हो रहा है जबकि असलियत कुछ और ही है,इसी तरह एसईसीएल के जीएम सहित अन्य अधिकारी भी दौरे दौरे करते हैं लेकिन काम बढ़िया कराने नहीं वरन् सिर्फ हिसाब में गड़बड़ न हो और ठेकेदार और सेतुनिगम खर्च ज्यादा बता उनका हिस्सा न मार दें इसलिए वे आना जाना करते हैं,जिला प्रशासन ने तो मानो पूरी आजादी दे दी हो लूट मचाने की। बरहाल आम आदमी परेशानियों से जूझ रहा है और इस बात के इंतज़ार में है कि उन्हें स्थायी आवागमन मिलेगा,इस बात से बेखबर कि अगली बरसात भी मुश्किलों में गुजरने वाली है दूसरी तरफ एसईसीएल,सेतु निगम सहित अन्य ने आपदा के नाम पर अपनी जेब भारी करने का जुगाड़ कर लिया है।
घटिया निर्माण लेकिन पचास साल चलेगा रपटा
सुनने में तो यह लाइन हास्यास्पद लगती है लेकिन एसईसीएल के अधिकारी और सेतु निगम के इंजिनियर यही दवा करते हैं कि निर्माण उच्च क्वालिटी का हो रहा है और यह कम से कम पचास साल तो चलेगा ही। वे मानने को तैयार नहीं कि काम कितना घटिया हो रहा है,गहराई में नींव के निचे पत्थर की बजाए केवल बालू है लेकिन कागजों में उन्होंने पत्थर जलहि पत्थर बता दिया है। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या बेस इतना कमजोर है तो बारिश में बालू को खोह पानी रपटा को बहा नहीं ले जाएगा तो उन्होंने ऐसा कुछ भी होने से इंकार करते हुए कहा कि बेस बहुत मजबूत है। शायद वे इस बात से बेख़बर हैं कि इससे पहले जो पूल बह गया वह काफी मजबूत था और नींव की गहराई भी बहुत ज्यादा थी,जब बारिश की मार वह पूल नई झेल सका तो यह घटिया रपटा कैसे झेलेगा।
टेंडर के नियम शिथिल फिर भी नहीं हुआ पूरा
गौरतलब है कि इस भारी आपदा के बाद जनमानस को राहत पहुंचाने और कोल परिवहन के उद्देश्य से रपटा निर्माण के लिये टेंडर के सारे नियमों को इसलिए शिथिल कर दिया गया कि इसका निर्माण टेंडर के नियमों में उलझ के न रह जाए और यह शीघ्र पूरा हो और इस पर से आवागमन प्रारम्भ हो जाए किन्तु यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसकी स्वीकृति मिलने के कई महीने बाद भी रपटा में पच्चीस प्रतिशत काम भी नहीं हुआ जबकि इसे कब का पूरा हो जाना चाहिए था। अधिकारियों ने निर्माण में देरी के लिए पानी को वजह बता दिया जबकि बड़ी बड़ी नदियों और समुद्र में भी कई मीटर पानी होने के बाद बड़े बड़े पूल बन जाते हैं । शासन ने जब नियमों को शिथिल कर ही दिया था तो इन्हें बाहर से ठेकेदार बुला इसका निर्माण कराना था जिसके पास पर्याप्त संसाधन हो और वह कितने पानी में भी रपटा समय पर बना देता लेकिन यहाँ तो शासन प्रशासन की मंशा तो बिलकुल स्पष्ट है कि उन्हें सिर्फ कुछ लोगों और विभागों को लाभ पहुँचाना था।
बढिया होगा निर्माण .. एसडीएम
इस मामले मे प्रतापपुर तहसीलदार जग्न्नाथ वर्मा ने कहा है कि मामले की जानकारी के बाद कलेक्टर महोदय और वरिष्ट अधिकारियो से मार्गदर्शन लेकर तकनीकी जांच कराई जाएगी और रपटा के शुरु हुए काम का बेहतर ढंग से निर्माण कार्य कराया जाएगा।