रेबीज से तड़पती मासूम का निकला दम… डाक्टर की अमानवीयता आई सामने

मानवता को घर में रख ड्यूटी करते है मेडिकल कालेज के डाक्टर

रेबीज से तड़पती मासूम ने तोड़ा दम..लेकिन डॉ ने मरीज को नहीं देखा

जिम्मेदार कहते है पहले मरीज सेलेक्ट करते है फिर करते है इलाज

नहीं है रैबीज के मरीजो की कोई व्यवस्था और बन गया मेडिकल कालेज

 

अम्बिकापुर

 

मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रविवार की सुबह अपनी बच्ची को बचाने की गुहार लगाती माँ को देख अस्पताल में मौजूद लोगो का दिल पसीज गया परंतु सवेंदनहीन चिकित्सक ने एक नजर भी पलट कर तड़पती बालिका को नहीं देखा। एक घंटे बाद बालिका ने दम तोड़ दिया। हद तो तब होगी जब बालिका के मरने के बाद फटाफट के सवाल पर चिकित्सक ने कहा की बच्ची मरी नहीं है बल्कि जिन्दा है चिकितसक का यह बयान इस बात को साफ करता है कि चिकित्सक ने तड़पती बच्ची को देखा भी नहीं। बहरहाल मामला कुत्ते के कटाने से रैबीज होने का था। बालिका की मौत के बाद उसके माता पिता व परिवार के अन्य लोगो की बेबसी उनके व चीख पुकार से साफ बया कर रही थी

 

बलरामपुर जिले के पस्ता थाना क्षेत्र के दौरा कोचली निवासी श्रीराम गोड़ की दस वर्षीय पुत्री सरस्वती को दो माह पहले कुत्ते ने काट लिया था। जिसके बाद से परिजन उसका इलाज जड़ी बूटी के माध्यम से से करा रहे थे। लेकिन रविवार की सुबह जब बच्ची कि तबियत बिगड़ी तो उसके परिजन उसे तड़पता हुआ लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे। इस दौरान परिजनो ने आज रविवार की सुबह 9:17 बजे पर्ची काउंटर से पर्ची कटाई, जिसके बाद वो बच्ची को लेकर आपात कालीन कक्ष मे पहुंचे। आपातकालीन कक्ष मे डाक्टर शिवहरे की ड्यूटी पर थे,  लेकिन वे अस्पताल के अंदर वार्ड मे मरीजो को देखने गए हुए थे,, लिहाजा कमरे मे चिकित्सक को ना पाकर परिजन रोने बिलखने लगे,,, और फिर जब डाक्टर ऐमरजेंसी रुप मे पहुंचे तो परिजनो का आरोप है कि उन्होने उनकी तडपडी बच्ची को देखा तक नहीं।

 

परिजनो के अनुसार चिकित्सक का कहना था कि बालिका को रेबीज हो गया है, अब वह नही बच सकती, बेबस परिजन एक बार चिकित्सक को अपनी बच्ची को देख लेने की गुहार लगाते रहे , परंतु चिकित्सक ने उनकी एक ना सुनी और आखिरकार एक घंटे के अंतराल मे मासूम की सांसे थम गई,,, इस बच्ची की इलाज के आभाव मे मौत होने के साथ उस दौरान अस्पताल मे कई ऐसे मरीज थे , जिन्होने डाक्टर पर इलाज ना करने का गंभीर आरोप लगाया है।

 

हैरान होने की बात नही है क्योकि मेडिकल कालेज के अधीक्षक खुद ये मान रहे है कि मेडिकल कालेज अस्पताल मे रेबीज पीडित मरीजो को रखने की कोई व्यवस्था नही है, तो ऐसे मे आदिवासी बाहुल्य जिलो मे मेडिकल कालेज खोलने का औचित्य समझना काफी कठिन काम है,,,, बहरहाल पहले परिजनो द्वारा झाड फूंक और बाद मे डाक्टर की मनमानी से 10 साल की सरस्वती इस दुनिया मे नही रही है,,, पर सवाल ये है कि आखिर अम्बिकापुर के जिला अस्पताल को आखिर किन को आखिर किन मापदण्डो के आधार पर मेडिकल कालेज अस्पताल का दर्जा दिया गया है।

 

डाँ सी. आर. शिवहरे , ड्यूटी डाक्टर , मेडिकल कालेज अस्पताल 

10 साल की मासूम रेबीज पीडित बच्ची की मौत और कई अन्य मरीजो का इलाज ना करने का आरोप लगने के बाद जब हमने डाक्टर श्री शिवहरे से जानकारी लेनी चाही तो उन्होने कहा मैने सब मरीज को देखा है , लेकिन रेबीज पीडित का बचना मुश्किल है, और उसको भर्ती करने से बांकी मरीजो और स्टाप को भी रेबीज का खतरा हो सकता है।

 

डाँ एस पी कुजूर, अधीक्षक, मेडिकल कालेज अस्पताल , अम्बिकापुर 

ड्यूटी डाक्टर की इस गंभीर लापरवाही के संबध मे जब हमने मेडिकल कालेज अस्पताल के अधीक्षक डाँ एस पी कुजूर से बात की तो उन्होने कहा कि आपात कालीन सेवा मे मरीजो की भीड बहुत रहती है ऐसे परिस्थिती मे चिकित्सक पहले सलेक्ट करते है कि किस मरीज को पहले देखा जाए और जहां तक पीडित बच्ची का मामला है , तो ऐसे मामले मे मरीज को बचा पाना मुश्किल होता है।