बालकोनगर
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के तीन कुपोषित बच्चों में से एक बच्चा भारत में रहता है। कुपोषण से बच्चे का विकास और सीखने की क्षमता दोनों ही प्रभावित होती है। बाल्यावस्था में होने वाली लगभग 50 फीसदी मौत कुपोषण के कारण होती है। हालत यह भी है कि भारत के सभी बच्चों में तीन वर्ष से कम उम्र के 46 फीसदी बच्चे अपनी आयु की तुलना में शारीरिक रूप से छोटे रह जाते हैं। 47 प्रतिशत का वजन कम होता है। इनमें से ज्यादातर गंभीर रूप से कुपोषित होते हैं। ऐसा नहीं है कि कुपोषण का संबंध सिर्फ खाने-पीने से ही है। साफ-सफाई से रहने और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति कम जागरूकता, गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सही देखभाल न होना भी कुपोषण को जन्म देते हैं। हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था एवं लड़कियों के प्रति नकारात्मक सोच के कारण कुपोषण के खतरे का सबसे अधिक सामना बालिकाओं को करना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ राज्य की बात करंे तो यहां पांच वर्ष तक के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण की रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने ‘नवा जतन’ नामक अभियान शुरू किया है। इस अभियान से अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठानों और सामाजिक संगठनों को जोड़ा गया है ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंदों तक योजना का लाभ पहुंचाया जा सके। ‘नवा जतन’ की मदद की दृष्टि से भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) ने अपने तराईमार कोल ब्लॉक के धरमजयगढ़ विकासखंड में ‘ममता परियोजना’ का क्रियान्वयन स्वयंसेवी संगठन ‘स्त्रोत’ की मदद से किया है। ‘ममता परियोजना’ धर्मजयगढ़ की 268 आंगनबाड़ियों में संचालित है। इन आंगनबाड़ियों में शासन द्वारा चिह्नांकित 4200 कुपोषित एवं 300 गंभीर कुपोषित बच्चों को बालको द्वारा प्रति सप्ताह पूरक पोषण आहार दिया जा रहा है। गंभीर कुपोषित बच्चों को प्रति माह 800 ग्राम प्रोटीन पाउडर वितरित किया जा रहा।
बालको प्रबंधन ने ‘ममता परियोजना’ की शुरूआत वर्ष 2007 में कोरबा, बॉक्साइट उत्खनन क्षेत्र सरगुजा जिले के मैनपाट और कबीरधाम जिले के बोदई-दलदली में की थी। विभिन्न प्रचालन क्षेत्रों में महिला एवं बाल विकास विभाग के समन्वयन में संचालित परियोजना का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा, कुपोषण से मुक्ति, लिंग भेद की समाप्ति, स्थापित आधारभूत संरचना में सुधार, बच्चों के लिए शिक्षा सामग्री, खेलकूद की सामग्री और विभिन्न उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। बालको ने आंगनबाड़ियों के लगभग 22 हजार बच्चों को गणवेश उपलब्ध कराए हैं।
जागृति हुई कुपोषण से मुक्ति– लगभग ढाई साल की जागृति नामक बालिका धरमजयगढ़ के शाहपुर कॉलोनी में रहने वाले गोविंद विश्वास और जयश्री विश्वास की तीन संतानों में सबसे छोटी है। जागृति की एक बहन छह साल की और भाई चार साल का है। आर्थिक रूप से पिछड़ा गोविंद अपने परिवार की उचित देखभाल में कठिनाई महसूस करता है। जून, 2013 में धरमजयगढ़ क्षेत्र में ‘नवा जतन’ व ‘ममता परियोजना’ के अंतर्गत वजन उत्सव आयोजित हुआ। जागृति का भी वजन लिया गया जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने उसे मध्यम श्रेणी की कुपोषित पाया। हालांकि उस वक्त अल्प शिक्षित खेतीहर मजदूर गोविंद को अपनी पुत्री की स्थिति बहुत ज्यादा समझ में नहीं आई। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती तुलसी बढ़ई ने गोविंद और जयश्री से नियमित रूप से मुलाकात कर उन्हें साफ-सफाई से रहने, सही खान-पान, कुपोषण के खतरों और उससे बचाव के तरीकों से अवगत कराना प्रारंभ किया। तुलसी ने जयश्री को वृद्धि निगरानी चार्ट में जागृति की स्थिति समझाई। ‘ममता परियोजना’ के अंतर्गत जागृति को प्रति सप्ताह चार अंडे और चार केले दिए जाने लगे। लगभग छह महीने की निरंतर निगरानी के बाद अब जागृति का वजन 7.6 किलोग्राम से बढ़कर 9.9 किलोग्राम हो गया है। गोविंद और जयश्री भी अब कुपोषण के खतरनाक पहलुओं को समझने लगे हैं। क्षेत्र में बालको की ‘ममता’ और शासन की ‘नवा जतन’ परियोजना के संचालन पर जयश्री संतोष जताते हुए कहती हैं – ‘‘ अब मैं कभी अपनी बेटी को वृद्धि निगरानी चार्ट के पीले या लाल सूचक क्षेत्र में नहीं जाने दूंगी।’’ बालको की ममता परियोजना को समझने वाले क्षेत्र के अनेक नागरिक भी मानते हैं कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य की देखभाल की दिशा में बालको ने उत्कृष्ट परियोजना क्रियान्वित की है। लक्षित नागरिकों की सोच में कुपोषण रोकथाम के प्रति सकारात्मक बदलाव आ रहा है।