कोरिया- (सोनू केदार की रिपोर्ट)
अमूमन कोयला खदानों में पुरुष भी ऐसा काम चाहते हैं, जिसमें मेहनत और जोखिम कम हो जिसमे ब्लास्टिंग का काम सबसे खतरनाक है, यह काम पुरुषों को ही दिया जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ में पहली बार 12 महिला मजदूरों ने इस परंपरा को तोड़ दिया। वे साउथ ईस्ट कोल फील्ड लिमिटेड के चिरमिरी ओपन कास्ट माइंस में लगभग 8-10 साल से ब्लास्टिंग का काम कर रही हैं। तब पहली बार वे पति के बिना घर से बाहर निकली थीं जब पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति मिली थी। प्रबंधन ने इन्हें ऑफिस का काम सौंपा था पर इन्होंने वही काम मांगा जो उनके पति किया करते थे यानी की ब्लास्टिंग का काम। एस ई सी एल प्रबंधन ने पहले तो इस जोखिम भरे काम के लिए मना किया, पर बाद में मानना पड़ा और सभी 12 महिलाए पुरुषो की तरह जोखिम भरे काम में लग गई, ये सभी महिलाए 45 से 60 वर्ष के उम्र की है और अशिक्षित हैं।
ब्लास्टिंग के काम में लगे हीरामति ने बताया कि वर्ष 2007 में उनके पति नहीं रहे, बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई यह पहली बार था कि किसी काम के लिए पति के बिना घर से बाहर निकली थी। घबराई हुई थी कि ये सब कैसे करूंगी, लेकिन बच्चों को पढ़ाना था, इसलिए आगे बढ़ती गई। हीरामती कहती हैं कि पति अक्सर ब्लास्टिंग के दौरान हुई बातें बताया करते थे, मन में यही था कि अनुकंपा नियुक्ति में उन्हीं का काम करूंगी। लेकिन मुझे चपरासी बना दिया गया। एक दिन मैंने सभी के सामने अधिकारियों से कह दिया कि मुझे ब्लास्टिंग का काम करना है। वहां खड़े सभी लोग हंसने लगे। मैं चुप रही लेकिन हार नहीं मानी, आखिरकार अधिकारी मान गए। उन्होंने ट्रेनिंग दी, तकनीकी भाषा समझ नहीं पाती थी इसलिए देख-देख कर सीखती गई।
ब्लास्टिंग का काम कर रही दूसरी महिला भागीरथी बताती हैं कि यहां महिलाओं की संख्या बहुत कम है। फाइल इस दफ्तर से उस दफ्तर पहुंचाना या घंटी की आवाज सुनकर अधिकारी के केबिन के चक्कर मारना, महिलाओं को यही काम मिलता है। मैं यह नहीं कर सकती थी इसलिए ब्लास्टिंग का काम करने का फैसला किया था। मन की नौकरी की हूँ और इस साल रिटायर हो रही हूं। अक अन्य महिला लक्ष्मी जो ओडिशा से हैं वो बताती हैं कि बच्चों की परवरिश करनी थी इसलिए प्रबंधन जो कहता गया, मैं करती गई। कभी कर्मचारियों को चाय पिलाई तो कभी सामान ढोया। लोग कई तरह की भद्दी टिप्पणियां भी करते थे। फिर माइंस में ब्लास्टिंग का काम करने का मन बना लिया। पुरुषों के साथ काम करना था इसलिए परिवार के सदस्यों ने फिर से सोचने को कहा लेकिन मुझे विश्वास था कि मैं यह काम कर लूंगी और मैंने किया ।
ऐसी एक नहीं एक दर्जन महिलाएं हैं जिन्हें अपने पति की मृत्यु के बाद अथवा पिता के स्थान पर कॉलरी में नौकरी मिली तो उन्होनें अपने पति अथवा पिता जैसा काम करना ही स्वीकार किया। आज ये महिलाएं पूरे उत्साह के साथ ब्लास्टिंग जैसे काम में लगी हुई हैं। इनका कहना है कि जमाना बदल रहा है और महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं तो भला जोखिम उठाने के काम में वे पीछे कैसे रहे। वे बिना किसी भय के यहां पुरूष मजदूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोयले के उत्पादन में लगी हुई हैं। सीने में पति की मौत का गम लिये अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी दोनों कंधों पर संभाले इन महिलाओं से निश्चित ही उन लोगों को प्रेरणा मिलेगी जो कभी कभी किस्मत के रूठने पर उसे ही अपनी नियति मानकर वेबस हो जाते हैं।
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