अम्बिकापुर
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिला एक गांव आजादी के 6 दशक बीतने के बाद भी अंधेरे मे है। हैरत की बात है कि ये गांव जिला ही नही ब्लिक संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर से महज 5 किलोमीटर दूर है। सरकारी दावो और वादो से ऊब चुके इस गांव के ग्रामीणो को उंजाले के लिए एक बार फिर प्रशासनिक आ·ाासन मिल है।
डिभरी यानी देशी लालटेन के सहारे अपनी पढाई करने वाला मनीष और इसके जैसे कई मासूम बिजली के सहारे पढाई करने की हसरत अपने आंखो मे सजाए हुए है। लेकिन संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर से पांच किलोमीटर दूर स्थित खाला पंचायत की दो कोरवापारा और भेलवाटिकरा टिकरा ऐसी दो बस्तियां है। जंहा आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी बिजली की चमक नही पंहुच सकी है। लिहाजा आम दिनचर्या से लेकर बच्चो की अंधेरे मे पढाई साथ ही खेतो मे सिंचाई जैसी व्यवस्था के लिए यंहा के ग्रामीण तरस रहे है।
हाथी प्रभावित भेलवाटिकरा और कोरवापारा गांव के ग्रामीण गांव मे लाईट नही होने के कारण बरसात मे जहरीले सर्पो से आहत होते है तो धान और महुआ के सीजन मे हाथी उनके गांव मे कब घुस जाते है इन्हे पता ही नही चलता है। साथ ही गांव मे विद्युत व्यवस्था ना होने के कारण ग्रामीण बोरिंग भी नही करा सकते है और प्राकृतिक वर्षा के सहारे अपनी खेती करते है। इस विकराल और हैरान कर देने वाली समस्या के बीच एक सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश सोनी ने इनकी मदद का बीडा उठाया है। जिन्होने हाल फिलहाल मे कलेक्टर से मामले की शिकायत कर जल्द बिजली लगवाने की मांग की है। और ऐसा नही होने पर एक बडे आंदोलन की चेतावनी दी है।
विद्युत विभाग के साथ ही स्वच्छ, स्वस्थ और शिक्षित सरगुजा का सपना संजोए प्रशासन के लिए पांच किलो मीटर दूर बिजली ना पंहुचने का मसला शर्मिंदगी भरा हो चाहे नही । लेकिन वर्षो से कुंभकरणीय नींद मे सोए विद्युत विभाग के अधिकारी इस मसले पर बडी बेवाकी से अपनी गलती मान रहे है। जो काबीले तारीफ है।
आजादी के 68 वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर बुनायादी सुविधाओ के लिए देशवासियो को आंदोलन करना पड रहा है,, तो फिर समृद्द भारत का सपना बिना जान के इंसान की तरह होगा। बहरहाल देखना तो ये है कि वर्षो से अपनी बेहतरी के लिए प्रशासन और शासन के सामने विद्युत व्यवस्था के लिए माथा टेंकने वाले कोरवा और आदिवासी परिवारो पर प्रशासनिक निहाहे कब ईनायत होती है।