अम्बिकापुर
आध्यात्मिक समागम का आयोजन महामना मालवीय मिशन द्वारा एम.पी.सिन्हा के निवास पर किया गया जिसमें गीता के दूसरे अध्याय का पाठ एवं गीता के महत्व पर नगर के विद्यवतजनो एवं प्रबुद्ध लोगो ने प्रकाश डाला। इस अवसर पर हरिशंकर त्रिपाठी ने बताया कि महापुरूषो के चरित्र निर्माण में गीता का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है। भारत के दार्शनीक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं रानेता भी गीता के आदर्शो को अपनाया है। दूसरा अध्याय का संदर्भित सार यह है कि जिसका जन्म होगा उसका मृत्यु सुनिश्चित है। आत्मा तो सिर्फ शरीर बदलती है। भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि हे अर्जुन तुम कर्मयोगी बनो, क्षत्रिय धर्म का पालन करो। आर.एन.अवस्थी ने कहा कि आत्मा का न रूप है न रंग और आत्मा अमर भी है। इसका कभी विनाश नहीं होता। इसी ज्ञान को मनुष्य को समझने की जरूरत है। नागेन्द्र नारायण सिंह ने कहा कि केशव ने अर्जुन से कर्मयोग की महता बताया और कहा कि तुम युद्ध नहीं करोगे तो अपयश का भागीदार होंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिये अपयश तो मृत्यु के समान है। पं रामनरेश पाण्डेय ने कहा कि कर्तापन रहित होकर कार्य करना यज्ञ के समान है। व्यक्ति हानि लाभ, यश-अपयश, पाप-पूण्य के भाव को नहीं सोंचता सिर्फ कर्म करता है ऐसा भाव वाला व्यक्ति सच्चा साधु है। रणविजय सिंह तोमर ने कहा कि योग अर्थात इन्द्रियों का निग्रह। अर्जुन का युद्ध न करने का प्रस्ताव इन्द्रिय तृप्ती पर आधारित था। श्रीमती उर्मिला सिन्हा ने कहा कि शास्वत आत्मा को खो कर मनुष्य सम्पूर्ण जगत ही पाले उससे क्या लाभ। इसलिए मनुष्य को गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए। पं राजनारायण द्विवेदी ने कहा कि श्रद्धा का अर्थ अलौकिक वस्तु में अटूट विश्वास है। जब व्यक्ति भागवत भावना में लग जाता है तो उसे परिवार, मानवता, राष्ट्रीयता से बंध कर कार्य करने की आवश्यकता नहंी होती है। उसके जीवन का एक ही सूत्र रहता है कि वसुधेव कुटुम्बकम। एम.एम. मेहता ने कहा कि जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि कहते है। उस समय व्यक्ति ईश्वर के प्रति समर्पित होकर अपने आप को न्योक्षावर कर देता है। श्रीमती चिंता वर्मा ने गीता का महत्व पुरातीन कालिन बताया। सुरेन्द्र गुप्ता ने कहा कि गीता के अध्ययन मात्र से ही व्यक्ति महान बन सकता है। रामलखन सोनी ने बताया कि योग से व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बस में कर सकता है और जो व्यक्ति इन्द्रियों को बस में कर लिया वह सच्चा साधु है। श्रीमती ममता सिन्हा ने कर्म की महत्व पर प्रकाश डाला। श्रीमती मंजुषा श्रीवास्वत ने कहा कि व्यक्ति जय अथवा पराजय की आशक्ति को त्याग कर संभाव से कर्म करना चाहिए। श्रीमती सरस्वती सिन्हा ने कर्म परायणता की बात कही। कार्यक्रम में प्रभात सिन्हा, रूपाली सिन्हा, सोनाली सिन्हा, अमित वर्मा, आर.बी. गोस्वामी, रामजनम सिन्हा, मणिभूषण पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।