छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की आवश्यकता :राज्यपाल श्री दत्त

 

सर्वश्री श्यामलाल चतुर्वेदी, पवन दीवान, महादेव प्रसाद पाण्डेय
सहित अनेक साहित्यकार ‘छत्तीसगढ़ रत्न’ से सम्मानितछत्तीसगढ़ी का अतीत और भविष्य: विकास की संभावनाएँ  (भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विशेष संदर्भ में) विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

रायपुर 20 दिसंबर 2013

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छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने आज यहां पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह में ‘छत्तीसगढ़ी का अतीत और भविष्य: विकास की संभावनाएँ  (भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विशेष संदर्भ में) विषय पर आयोजित पांच दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ तथा छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास के लिए योगदान देने वाले विभिन्न क्षेत्रों की ख्यातिप्राप्त प्रतिभाओं, पद्मश्री सम्मान प्राप्त डॉ. महादेव प्रसाद पांडेय सहित वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्यामलाल चतुर्वेदी, संत कवि पवन दीवान, पद्म-भूषण सम्मान प्राप्त पण्डवानी गायिका श्रीमती तीजन बाई, डॉ. वेदप्रकाश बटुक, श्रीमती निर्मला शुक्ला, पद्मश्री सम्मान प्राप्त डॉ. सुरेन्द्र दुबे, श्रीमती ममता चन्द्राकर, श्री अनुज शर्मा और श्री नंदकिशोर शुक्ला को ‘छत्तीसगढ़ रत्न’ से सम्मानित किया।
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला तथा छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल श्री दत्त ने कहा कि छत्तीसगढ़ी एक सहज-सरल भाषा है, जिसमें मनोभावों की सहज अभिव्यक्ति होती है। यह भाषा मिठास एवं अपनत्व लिए हुए है और अत्यंत सरलता से जन-जन से जुड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ी भाषा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। छत्तीसगढ़ी के उपयोग को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि आने वाले पीढ़ियाँ भी इसका उपयोग करती रहे। छत्तीसगढ़ को देश का अग्रणी एवं समृद्ध प्रदेश बनाने के लिए हम सभी को मजबूती से कदम बढ़ाने होंगे।

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श्री दत्त ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा के लिए भी पठन-पाठन सामग्री छत्तीसगढ़ी भाषा में होनी चाहिए जो आसपास के परिवेश से जुड़ी हो तथा जिसे प्रदेश के दूरस्थ गांवों तथा शहरों के बच्चे आसानी से पढ़ एवं समझ सके। कक्षाओं में अध्ययन के दौरान छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग से बच्चों को घर से दूरी का अहसास नहीं होगा। प्राथमिक कक्षा में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने पर बच्चों के विचार स्पष्ट होंगे तथा उन्हें आगे अन्य भाषाओं एवं विषयों में भी अध्ययन करने पर कठिनाई महसूस नहीं होगी। उन्होंने कहा कि प्राथमिक कक्षाओं में लगभग 93 प्रतिशत बच्चे प्रवेश लेते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा में 18 प्रतिशत बच्चे ही आ पाते हैं हमें इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है। हमारी पाठ्य सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों में अध्ययन के प्रति रूचि जाग्रत करे, इसके लिए हमें ऐसे तरीकें अपनाने होंगे जिससे प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर हमारे बच्चों की सोच एवं समझ का मजबूती से विकास हो। उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा हमारा पहला सोपान है और पाठन को रूचिकर बनाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है, जिसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण देना अत्यंत जरूरी है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी के माध्यम से एक अभिनव प्रयासों की शुरूआत हो रही है।

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस. के. पांडे ने छत्तीसगढ़ी में अपना उदबोधन देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी हमारे आत्मसम्मान एवं आत्मबोध से जुड़ी है। छत्तीसगढ़ी को राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया गया है और अब यह बेहद जरूरी है कि हम सब इसका केवल बोलचाल ही नहीं बल्कि लिखने पढ़ने में भी अधिक से अधिक उपयोग करें। इसके साथ ही यह भी देखने की जरूरत है कि इसका व्याकरण एवं साहित्य भी अत्यंत समृद्ध हो।  पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी में एम. ए. कोर्स आरंभ किया गया है और प्राथमिक स्तर पर भी मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि आज भी विदेशों में बसे कई छत्तीसगढ़वासी छत्तीसगढ़ी भाषा में ही आपस में बात करते हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयास किये जा रहा हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रतिष्ठा दिलाने तथा इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब युवा पीढ़ी पर है।
प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्री श्यामलाल चतुर्वेदी ने छत्तीसगढ़ी भाषा में अपनी बात रखते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ी भाषा विषय से एम. ए. का कोर्स आरंभ कर इसे रोपित तो कर दिया गया है लेकिन इसके साथ ही प्राथमिक कक्षाओं में भी छत्तीसगढ़ी भाषा में अध्ययन एवं अध्यापन आरंभ करने की जरूरत है।
कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समन्वयक डॉ. व्यास नारायण दुबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा में एम. ए. के पाठ्यक्रम आरंभ होने पर इस विषय के लिए 40 सीटें रखी गई थी लेकिन विद्यार्थियों के उत्साह को देखते हुए सीटें बढ़ाकर 100 की गई है। एक नई सोच के साथ छत्तीसगढ़ी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करने की दिशा में यह आयोजन किया गया है।
इस अवसर पर राज्यपाल ने स्मारिका का भी विमोचन किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन, छात्र-छात्राएं एवं नागरिकगण उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री के. के. चन्द्राकर ने आभार प्रदर्शन किया।