छत्तीसगढ़ अखबार के संपादक सुनील कुमार ने देश में पहली बार फांसी की आंखों देखी रिपोर्टिंग की थी। 25 अक्टूबर 1978 को रायपुर सेंट्रल जेल में हत्या के आरोपी बैजू की फांसी का हाल, सुनील कुमार की जुबानी।
बैजू ऊर्फ रामभरोसे की फांसी की तारीख तय होने से कोई सप्ताह भर पहले मैंने उससे मिलना-जुलना शुरू कर दिया था। बैजू पर आरोप था कि उसने तांत्रिक क्रियाओं के लिए एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या की है।
लेकिन हर मुलाकात में बैजू अपने को बेगुनाह बताता था। उसका दावा था कि उसकी पत्नी ने अपने प्रेमी से मिलकर उसे फंसाया है।
फांसी वाले दिन एक किस्म की अंतहीन उत्तेजना से भरा हुआ मैं सुबह 3 बजे के आसपास जेल पहुंचा, जहां मुझे जेल मंत्री की इजाजत को सौंपने के बाद बैजू की कोठरी में ले जाया गया। वहां तब तक कुछ-कुछ तैयारियां शुरू हो चुकी थीं।