• सरगुजिहा लोक गीतों एवं लोक कथाओं में गहराई तक बसे हैं राम- अजय चतुर्वेदी
• श्रीराम का छत्तीसगढ में पहला पड़ाव सरगुजा अंचल का सीतामढ़ी हरचौका है
• सरगुजा अंचल के प्राचीन मूर्त धरोहरों में भगवान श्रीराम
Surguja News: दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़) में सरगुजा अंचल के अनेक जगहों पर प्राचीन मूर्त धरोहरों एवं अमूर्त स्वरूप में रामकथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख देखने-सुनने को मिलता है। भगवान श्रीराम के वनवास काल का छत्तीसगढ में पहला पड़ाव उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले सीतामढ़ी हरचौका को माना जाता है। श्री राम वन गमन मार्ग के शोधकर्ता राजपाल पुरस्कृत व्याख्याता साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि मैने शोध में पाया कि सरगुजा संभाग के 40 पवित्र स्थलों में भगवान श्री राम के चरण पड़े हैं। जहां-जहां प्रभु श्री राम के पावन चरण पड़े उन में बलरामपुर के 03, जशपुर के 04, सरगुजा के 09, सूरजपुर के 14, मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के 09 और कोरिया जिले के 01 स्थल शामिल हैं।
सरगुजा अंचल के प्राचीन मूर्त धरोहरों में श्रीराम से संबंधित जो पवित्र सथल देखने को मिलते हैं,उनमें मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले का घाघरा, सीतामढ़ी हर चौका, सिद्ध बाबा का आश्रम, रामगढ, अमृतधारा, कोटाडोल, सीतामढ़ी छतौड़ा अश्रम, देवसील, जटाशंकरी गुफा, देवगढ़ और कोरिया जिले का सीतामढ़ी (गांगी रानी) प्रमुख प्राचीन स्थल हैं। सूरजपुर जिले का कुदरगढ़, जोगीमाड़ा (गुफा चपदा ग्राम), लक्ष्मण पंजा, सीता लेखनी पहाड़, रक्स गंडा, सारासोर, श्रीराम लक्ष्मण पंजा, मरहट्ठा, साल्हो और बेसाही पहाड़, पोड़ी, श्यामनगर-सकलपुर का श्री राम का चरण चिन्ह, शिवपुर का सीता पांव, बिलद्वार गुफा और सरगुजा जिले का अंबिकापुर (विश्रामपुर), यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़ और सतमहला, महेशपुर, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, मिरगा डाड, चंदन मिट्टी गुफा, नान दमाली एवं बड़े दमाली के समीप बंदरकोट, अंजनी टीला, मैनपाट शरभंजा, देउरपुर (महारानीपुर), सीतापुर में मंगरेलगढ़ एवं जसपुर जिले के पत्थगांव तहसील का किलकिला आश्रम,बगीचा का शिव मंदिर, बलरामपुर जिले का सीता चौक, दुप्पी ,सीता चुंआ, तातापानी और रामचौरा पहाड़ आदि स्थल हैं।
भगवान श्रीराम ने अम्बिकापुर में विश्राम किया था-
एक मान्यता प्रचति है कि भगवान श्रीराम ने अम्बिकापुर में विश्राम किया था। पहले अम्बिकापुर को विश्रामपुर कहा जाता था। विश्रामपुर नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि रामायण युग में वनवास के समय भगावान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी दंडकारण्य से गुजरते वक्त वर्तमान अंबिकापुर में विश्राम किए थे। इसलिए इस अंचल का नाम विश्रामपुर पड़ा। छत्तीसगढ़ नए सूबा में सरगुजा के शामिल होने के साथ ही विश्रामपुर नाम बदल कर अंबिका देवी के नाम पर अम्बिकापुर रखा गया। वर्तमान में अम्बिकापुर से 30 किमी की दूरी पर जो विश्राम है, उसे पहले ओंडार बहरा कहा जाता था। अजय चतुर्वेदी ने मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के सीतामढ़ी हरचौका से जसपुुर जिले के किलकिला आश्रम तक राम वन गमन मार्ग का विस्तृत शोध कर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तुति दे कर सरगुजा अंचल को गौरान्वित किया। इस शेध को “श्रीराम कथा का विष्वसंदर्भ महाकोष“ के प्रथम खंड़ में शामिल किया गया है।
भगवान श्रीराम ने रामगढ़ की पहाड़ियों में चौमासा बिताया था-
जनश्रुति है कि भगवान श्रीराम ने संपूर्ण सरगुजा अंचल का नदी मार्ग से भ्रमण करते हुए कोंटा बस्तर तक कई वर्षों तक छत्तीसगढ़ में व्यतीत किए। श्रीराम ने सरगुजा में रामगढ़ की पहाड़ियों में चौमासा बिताए थे। रामगढ़ की पहाड़ियों पर जहां माता सीता रहती थी, सीता बइंगरा, जहां भगवान श्रीराम रहते थे, जोगीमाड़ और जहां लक्ष्मण जी रहते थे लक्ष्मण बइंगरा गुफ प्रमाण स्वरूप आज भी विद्यमान है। सीता बइंगरा के ठीक सामने लक्ष्मण रेखा भी खींची हुई है। पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर राम-जानकी कुंड और राम-जानकी मंदिर है। इस मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की प्रतिमा रखी हुई है। रामगढ़ की पर्वती चट्टानों के नीचे एक प्राकृतिक गुफा है, जिसे चंदन माटी गुफा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है भगवान श्री राम एवं लक्ष्मण जी अपनी जटाओं को यहां धोए थे। इसी कारण चंदनमाटी को पवित्र मानकर लोग अपने माथे में लगाते हैं। इस पहाड़ी को ग्रामीण लोग काफी आदर और भाव के साथ पूजते हैं।
सरगुजा के कण-कण मेें बसे हैं श्रीराम
वन गमन के दौरान प्रभू श्रीराम सरगुजा वासियों के साथ काफी समय व्यतीत किए थे। यही कारण है कि आज भी सरगुजा के जन-जन और कण-कण मेें श्रीराम बसे हैं। सरगुज के लोग अपना नाम, गांवों और विभिन्न स्थलों का नाम श्री राम या रामायण के पात्रों के नाम से संबंधित रखे हुए हैं। जिससे श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा दिखती है। सरगुजा के अनेक गावों के नाम रामायण के पात्रों से संबंधित रामपुर, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, मिरगा डाड, लखनपुर, भरतपुर, रामेश्वरनगर, सीतापुर, सीता चौक, सीता चुंआ, रामचौरा पहाड, जनकपुर, सीतामढ़ी, अंजनी टीला, बंदरकोट, शरभंजा आदि नाम मिलते हैं।
सरगुजिहा लोक गीतों एवं लोक कथाओं में श्रीराम
अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल के अनेक जगहों पर प्राचीन मूर्त धरोहरों एवं अमूर्त स्वरूप में रामकथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख देखने-सुनने को मिलता है। सरगुजा अंचल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के वन गमन की कहानी यहां के पर्वतों, गुफाओं, नदियों और पत्थरों में देखने और सुनने को जितना मिलता है, कहीं उससे ज्यादा सरगुजा अंचल के पारंपरिक सरगुजिहा लोकगीतों जनजातीय लोक गीतों में सुनने को मिलता है। यहां की जनजातियां भगवान श्री राम-लक्ष्मण और माता सीता को आलंबन बनाकर पारंपरिक सरगुजिहा लोकगीतों का गायन करते हैैं। सरगुजा अंचल की जनजातियां अपनी जातीय बोली कुडूख, कोरवाई, पंडवानी, और कोडाकू बोली में भी रामकथा के विभिन्न प्रसंग का गायन करते हैं। इनके लोक गीतों में राम जन्म से लेकर धनुष यज्ञ, विवाह, वन गमन, सीता हरण, सीता की खोज, राम-रावण युध वन वापसी और राज्याभिषेक तक के सभी प्रसंग सुनने को मिलते हैं।
देखिए माता सीता की खोज के समय का सरगुजिहा पारंपरिक लोकगीत-
राम धरे धनुस, लखन धरे बान।
सीता माई कर खोज मां निकले हनुमान।।
निकले हनुमान हो निकले हनुमान।।
सीता माई कर खोज मां निकले हनुमान।।
सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता को आलंबन बनाकर इस प्रकार सवाल जबाब किया जाता है-
‘‘कहां आहा राम लक्षिमन,
कहॉं आहॉं भरत भगवान।
राम बने राम लक्षिमन
भरतपुर में भरत भगवान।‘‘
अजय चतुर्वेदी ने सरगुजा अंचल के इतिहास, पुरातत्व, लोक संस्कृति, लोक गीत, लोक वाद्य, लोक कला, सरगुजिहा बोली पर अनेक राष्ट्रीय एव अंर्तंराष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तृति दे चुके हैं।