अध्यात्म डेस्क. दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि, भगवान महामृत्युंजय शिव और लक्ष्मी तथा कुबेर की पूजा की जाती है. साथ ही में धन कमाने के और उसके सदुपयोग की सद्बुद्धि के लिए गायत्री और गणेश के मंत्रों की पूजा की जाती है.
१-गुरु आवाहन मंत्र
२-गणेश आवाहन मंत्र
३-लक्ष्मी गायत्री मंत्र
४-दीपदान मंत्र
५-24 बार गायत्री मंत्र जप करें
६-तीन बार महामृत्युंजय मंत्र करें
७-तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र करें
८-तीन बार गणेश गायत्री मंत्र करें
९-तीन बार आरोग्य देवता धन्वंतरी मंत्र करें
१०-तीन बार कुबेर गायत्री करें
११-फिर शांति पाठ करें
इसमें दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जाओं का समन कर सकारात्मक देवी शक्तियों को घर में प्रवेश देता है. घर के मुख्य द्वार पर दोघी या सरसों या तिल के तेल का दीपक एक तुलसी के पास एक रसोई घर में और एक बड़ा मुख्य दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें. फिर उसके बाद कलश स्थापना कर पूजन करें दीप यज्ञ/दीपदान के बाद घर की तिजोरी/लैपटॉप/बैंक की पासबुक इत्यादि का पूजन अवश्य करें.
धनतेरस पूजा दीपदान का मुहूर्त.
25 अक्टूबर 2019 दिन शुक्रवार
मुहूर्त: साय 7: 10 से 8: 15 तक
अवधि: 1 घंटे 5 मिनट
प्रदोष काल: साय 5: 42 से 8: 15 तक
प्रसव काल: साय 6: 51 से 8: 47 तक
यह पूजा वृषभ लग्न में ही की जानी चाहिए तभी धन की सुख शांति की वृद्धि होगी.
धनतेरस यम दीप दान विशेष
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
दीपावली की रात भी लक्ष्मी माता के सामने साबुत धनिया रखकर पूजा करें। अगले दिन प्रातः साबुत धनिया को गमले में या बाग में बिखेर दें। माना जाता है कि साबुत धनिया से हरा भरा स्वस्थ पौधा निकल आता है तो आर्थिक स्थिति उत्तम होती है।
धनिया का पौधा हरा भरा लेकिन पतला है तो सामान्य आय का संकेत होता है। पीला और बीमार पौधा निकलता है या पौधा नहीं निकलता है तो आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
धन तेरस की पौराणिक कथा
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कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में रंगोली बना कर दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन तेरस पूजा सामान्य विधि
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इस दिन लक्ष्मी-गणेश और धनवंतरी पूजन का भी विशेष महत्व है। धनतरेस पर धनवंतरी और लक्ष्मी गणेश की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना लें।इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें दिये को किसी चीज से ढक दें दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें। इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें। इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें, ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो।
यमदीपदान विधि
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यमदीपदान विधिमें नित्य पूजाकी थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हलदी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए । साथ ही आचमनके लिए ताम्रपात्र, पंच-पात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं । यमदीपदान करनेके लिए हलदी मिलाकर गुंथे हुए गेहूंके आटेसे बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं ।
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें। तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों।
उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
धनतेरस पूजा मुहूर्त
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धनत्रयोदशी या धनतेरस के दौरान लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है।
ऋषिकेश में 25 अक्टूबर सूर्यास्त समय सायं 17:39 पर रहेगा। इस समय अवधि में स्थिर लग्न 18:47 से लेकर 20:42 तक वृषभ लग्न रहेगा। मुहुर्त समय में होने के कारण घर-परिवार में स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
चौघड़िया अनुसार पूजन करने के लिए चौघाडिया मुहूर्त
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शुभघड़ी मुहूर्त 12:00 से 13:30 तक
चर घड़ी मुहूर्त 16:30 से 18:00 तक
लाभ घड़ी मुहूर्त 21:00 से 22:30 तक
उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृद्धि करता है। शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है। सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है।
प्रदोषकाल पूजन मुहूर्त
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प्रदोष काल का समय 17:38 से 20:13 तक रहेगा, स्थिर लग्न 18:49 से 20:45 तक रहेगा. धनतेरस की पूजा के लिए उपयुक्त समय 19:08 से 20:13 के मध्य तक रहेगा।
धनतेरस पर खरीददारी के लिये शुभ मुहूर्त
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प्रातः 7:41 से लेकर सुबह 10:40 मिनट तक
दोपहर 12:07 से दोपहर 02:51 मिनट तक
सायं 04:15 मिनट से शाम 05:41 मिनट तक
रात्रि 9:11 बजे से रात 10:35 तक धनतेरस की खरीददारी कर सकते है।
ध्यान रहे सुबह 10:41 से दोपहर 12:05 तक राहुकाल रहेगा इस अवधि में खरीददारी ना करें।