सोमेश पटेल की स्पेशल रिपोर्ट
कोरिया राजमहाल की कहानी
- १९४६ में बनकर तैयार हुआ कोरिया पैलेस
प्रदेश में कोरिया जिला प्राचीन रियासत की भूमि पर ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातात्विक संपदा समेटे हुए है। जिला मुख्यालय बैकुंठपुर में स्थित कोरिया पैलेस को देखने पर्यटक दूर-दूर पहुंचते हैं। कोरिया पैलेस के नाम से विख्यात राजमहल जिले की शान है। सन् १९२३ में कोरिया पैलेस का डिजाइन तैयार किया गया था। नागपुर के इंजीनियर द्वारा उस वक्त ७ हजार रुपयों में राजमहल का नक्शा बनाया गया, इसके बाद विभिन्न प्रांतों से आए कुशल करीगिरों द्वारा राजमहल का ग्राउण्ड फ्लोर सन् १९३० में तैयार किया गया। कोरिया पैलेस का उपरी हिस्सा १९३८ में खड़ा हुआ और सन् १९४६ में पैलेस बनकर पूर्णरुपेण तैयार हो गया था। कोरिया पैलेस की सबसे खास बात यह कि, पूरे महल के निर्माण कार्य में चुने का प्रयोग किया गया है। चुने की जुड़ाई से महल की बुनियाद टिकी हुई है। कोरिया पैलेस के जानकार बताते हैं कि, सन् १९३४ में भूकंप आया था, इसकी वजह से राजमहल में कुछ दरारें आई थीं लेकिन राजमहल में राजा के अलावा किसी और के आने जाने की अनुमति नही है इस कारण से राजमहल में भूकेप से आई दरार के पुख्ता प्रमाण नही दिये जा सकते है।
- क्या है कोरिया का इतिहास
कोरिया रियासत के नाम से पहचाना जाने वाला यह क्षेत्र कोरिया जिले के रुप में अस्तित्व में आया। रियासत काल में आदिवासी राजाओं का शासन काल सन् १७०० तक रहा। इसके बाद कोल एवं चैहान शासकों ने कोरिया रियासत में अपना शासन किया। सन् १९२५ में राज घराने के शिवमंगल सिंह के जेष्ठ पुत्र रामानुज प्रताप सिंहदेव का शासनकाल प्रारंभ हुआ था। पूर्व में भी बैकुंठपुर कोरिया रियासत की राजधानी रहीं। इसकी महत्ता को देखते हुए मध्यप्रदेश शासन में सन् १९८३ में अपर जिलाध्यक्ष की पदस्थापना बैकुंठपुर में की गईं थी एवं इसे ही जिला मुख्यालय रखा गया। जिला गठन के पूर्व कोरिया जिला का क्षेत्र अविभाजित सरगुजा जिले में समाहित था। सरगुजा से विभाजित होने के बाद २५ मई १९९८ को कोरिया जिला का गठन हुआ। सत्ता विकेन्द्रीकरण नीति के तहत अविभाजित मध्यप्रदेश शासन द्वारा २१ मई १९९८ में दस नए जिलों का गठन किया गया था।
- कोरिया रियासत में पांचवी तक अनिवार्य थी शिक्षा
बात उन दिनों की है जब कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव स्कूलों में गुड व चना देने की योजना सन् १९४१ में शुरु किए थे। जिले के चिरमिरी, बैकुंठपुर, मनेन्द्रगढ़ आदि क्षेत्रों में कक्षा पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य हुआ करता था। इसके बेहतर क्रियान्वयन के लिए राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव स्वयं स्कूलों में समय-समय पर जाया करते थे। गरीब लड़कों के पढ़ाई के लिए पुस्तक व कपड़े आदि दिए जाते थे। उन्हें बाहर की पढ़ाई में होने वाले खर्चे का वहन भी स्वयं राजा साहब किया करते थे। रियासत काल में जब कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता था तो राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव उनके अभिभावक को घर पर बुलाकर उनकी क्लास लेते थे। उस दौरान गांव में मिट्टी की स्कूल हुआ करती थीं और इन स्कूलों की रक्षा स्वयं ग्रामीण करते थे।
- सन् 1909 से 1925 की कहानी
राजा रामानुज प्रताप सिंह के पिता राजा षिवमंगल षिव के निधन पष्चात कोरिया राज्य को न्यायिक अभिरक्षा में ले लिया गया चुकि राजा रामानुज प्रताप सिंह उस दौरान नाबालिक थे और इस कारण से रियासत के संचालन हेतु कोरिया राज्य का अधीक्षक गोरे लाल पाठक को नियुक्त किया गया । राज्य की शासन व्यवस्था रायपुर स्थित पाकलिटिकल एजेन्ट द्वारा अधीक्ष्क के माध्यम से हाने लगी जिसके अधीक्ष्क गोरेलाल थे । राजमाता साहिबा जो दूरदर्षी और साहसी महिला थी। अनिष्चितता की इस अवधि में उनके द्वारा महत्वपूर्ण सहभागिता निभाने के लिएं माह के पंद्रहवे दिन में एक बार अधीक्षक को बुलाकर पर्दे की ओट में प्रषासनिक कार्यो की प्रगति के विषय में जानकारी लिया जाने लगा और आवष्यक निर्देष देकर प्रजा के दुखःदर्द जैसे विषय जानकारी जाती रही। ग्रामीणों की समस्याओं पर भी राजमाता गंभीरता से लेते हुएं उचित कार्यवाही हेतु अधीक्षक के पास भेजती थी। कोरिया राज्य का अधीक्षक खिन्न स्वभाव का था जिस कारण प्रषासनिक कार्यो में उसकी रूचि कम थी परिणाम स्वरूप प्रषासन कमजोर होता गया जिससे राज्य का विकास लगभग रूक गया। दूसरे अधीक्षक के रूप में पण्डित गंगादीन शुक्ल ने पदभार संभाला उसके बाद से कोरिया राज्य प्रगति करने लगा । प्रथम विष्व युद्ध के समय राज्य की आय में बढ़ोत्तरी हुई और रियासत का अर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुआ। सन 1925 में राजा रामानुज प्रताप सिंह बालिक हो पूर्ण सत्ताधारी बने तब जाकर पोलिटिकल एजेन्ट के कार्यो पर विराम लगा और रघुबीर प्रसाद वर्मा ने पद त्याग किया।
- राजा रामानुज प्रताप सिंह की प्रमुख उपल्बधियां
सन् 1925 – 36 के अंतर्गत भू राजस्व सहिता के नियम बनाये गये औश्र गावटियों को दिये जाने वाले पट्टों में शामिल कर दिया गया। 1931 में लंदन राउण्ड टेबिल कान्फ्रंेस में भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व राजा साहब ने किया। 1941 में रियासत के षैक्षणिक विकास हेतु सभी वि़द्यालयों में निर्धन विद्याथिर्यो को निःषुल्क षिक्षा प्रदान करने मध्यान भोजन स्वलपाहार का प्रवंध। 1946 में पंचायती राज की स्थापना और पौढ़ षिक्षा हेतु 64 केन्द्रो की स्थापना की गयी साथ ही रियासत के सभी स्कुलों के लिएं हेल्थ कार्ड प्रस्तुत किये गये। 1947 में श्रमिकों को कानूनी सरक्षण देने कोरिया एवार्ड से विख्यात न्यूनतम मजदूरी अधिनियम पारित करवाकर उसी अधिनियम के आधार पर 1954 में प्रथम भारत सरकार की वेज वोर्ड फार कोल माईंस वर्कर्स की स्थापना की गयी। 1948 में राज्य विलय के दौरान एक करोड़ बीस लाख रू0 की राषि केन्द्रीय सरकारी कोष में जमा कराया गया।
शिक्षा
राजा रामानुज प्रताप सिंह के पूर्ण सत्ता में आने के बाद षिक्षा पर विशेष जोर दिया गया। प्रतिवर्ष नई प्रथमिक पाठषालाएं खेलने के साथ – साथ बच्चों को निःशुल्क शिक्षा की सुविधा मुहैया कराना प्रमुख रहा इस दौरान सन् 1935 में बैकुठपुर में रामानुज हाई स्कूल प्रारंभ कराया गया जिसमें छोटे पुस्तकालय की सुविधा भी प्रदान की गयी। खेलकूद को प्रोत्साहित करने के लिएं षाला पकरसर में मैदान बनाये गये और बालिकाओं को स्कूली षिक्षा देने के लिएं अलग से स्कूल खुलवाये गये।
परिवहन साधन
आर्थिक विकास के लिएं यातायात के मार्गो को महत्व देकर चिरमिरी एवं मनेन्द्रगढ़ में कोयला परिवहन के लिएं रेल लाईन से जोड़ा गया। राजा साहब ने रेल लाईन को जोड़ने के लिएं भारत के वायसराय से भेट की और बंगाल – नागपुर रेल्वे को विजुरी से चिरमिरी तक बढ़ाये जाने के लिएं अनंरोध किया गया और प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। 1928 में रेल लाईन बिछाने का कार्य प्रारंभ हुआ और 1931 में इस रेल लाईन को जोड़ दिया गया।
सड़क मार्ग को दुरूस्त करने के लिएं बैकुठपुर से मनेन्द्रगढ़ औश्र चिरमिरी के लिएं 1941 में पक्की सड़क बनाने का कार्य आरंभ हुआ और 1946 के आस पास सभी पुल पुलियों का निर्माण करा दिया गया।
स्थाई बंदोबस्त
भूमि के वर्गीकरण के आधार पर भू राजस्व तय किया जाता था । भुमि मुख्यत तीन श्रेणिया में निर्धारित थी। 1 बहरा, 2 चंवर, 3 डांड
बहरा श्रेणी का भू राजस्व सबसे ज्यादा हुआ करता था और डांड का सबसे कम। कोरिया राज्य के आय का प्रमुख स्त्रोत भू राजस्व नही था इसलिएं भू राजस्व को कम रखने का प्रयास किया जाता था।
खनिज विकास
1927 के दषक में कोरिया में कोयले का सर्वेक्षण कार्य पूर्ण हुआ