जैसा की आप जानते ही है अब दशहरे को कुछ ही समय रह गया है। इस पर्व को हिन्दू धर्म में असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है और लोग जगह-जगह पर रावण के पुतले का प्रतीकात्मक रूप में दहन कर इस पर्व को मनाते हैं, पर बहुत कम लोग इस तथ्य से अवगत हैं कि पूर्वांचल का सबसे बड़ा रावण का पुतला काशी में ही बनता हैं और इस अवसर पर हम आपको यह भी बता दें कि इस पुतले को पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार ही तैयार करता है। आज हम आपको उस मुस्लिम परिवार से भी मिलवा रहें हैं जो की आस्था और श्रद्धा से हिन्दू धर्म के इस कार्य में पीढ़ियों से अपना साथ दे रहा है। आइये जानते हैं इस परिवार के बारे में।
बात शुरू होती है मरहूम बाबू खां साहब से, बाबू खां की पीढ़ी से इस परिवार की पीढ़ी दर पीढ़ी दशहरा के पर्व के लिए रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के पुतले बनाती आ रही है। बाबू खां की वर्तमान पीढ़ी के लोग डीरेका (डीजल रेल इंजन कारखाना) काशी में रहते हैं। बाबू खां की वर्तमान पीढ़ी के अरशद खान ने इस बार भी तीनों ही पुतले ऊंचे और विशाल बनाए हैं, इन पुतलों में रावण 70 फीट, कुम्भकरण 65 फीट तथा मेघनाथ 60 फीट का बनाया गया है। इन तीनों पुतलों को बनाने के लिए अरशद खान के परिवार को कई महीने पहले से तैयारी करनी पड़ती है और कई महीनों की मेहनत के बाद में यह पुतले तैयार हो पाते हैं, हालांकि इस बीच महंगाई भी कभी-कभी अपना जोर दिखाती है, पर जो व्यक्ति मानवता के लिए कार्य कर रहा हो वह कभी किसी चीज की परवाह न करके अपने कार्य में लगा रहता है। अरशद खान के सामने भी ऐसी कई परेशानियां आती है पर वें इन सबको दरकिनार करके अपने कार्य को हर साल निश्चित समय पर पूरा कर लेते हैं। पूर्वांचल के इस सबसे बड़े रावण को काशी के डीरेका नामक स्थान में ही दाह किया जाता है।
अरशद के रिश्तेदार भी उनके इस कार्य में सहयोग करते हैं, वर्तमान में अरशद खान का सहयोग कर रहें “राजू खान” इस पुतले बनाने के कार्य के बारे में पूछने पर कहते हैं कि “हम प्रचार या प्रसार के लिए नहीं बल्कि आमजन की भावनाओं की कद्र करते हुए और पीढियों से चले आ रही परंपरा का निर्वहन करने हेतु इस काम को आज भी उतनी ही शिद्दत से करते आ रहें हैं। कोई पूछता है कि मुस्लिम होने के बाद भी तुम सब यह काम करते हो तो हमारा जवाब होता है कि धर्म और मजहब के नाम पर लोगों को बांटने वाले राजनेता होते हैं और ऐसे अगर देखा जाए तो काशी सदियों से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते आया है और इसी मिसाल को कायम रखना ही हमारा उद्देश्य है।”, इस प्रकार से देखा जाए तो कोई भी धर्म या मजहब कभी भी किसी ऐसे कार्य में बाधा नहीं डालता है जो की मानवीयता के लिए किया जा रहा हो, इस देश में इसी प्रकार के सामाजिक कार्यों से ही समाज में शांति आ सकती है। जिसमें कभी मुस्लिम हिन्दू पर्व के लिए पुतले बनाये और कभी हिन्दू जलसे के लिए ताजिये तैयार करें।