भारतीय सेना की बढ़ेगी ताकत, मिलेंगे 83 तेजस, T-90 टैंक्स और ड्रोन

सैन्य तैयारियों को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 82 हजार करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को मंजूरी प्रदान की है। इसमें लड़ाकू विमान, टैंक, रॉकेट और ड्रोन की खरीद शामिल है।

खास बात यह है कि इस बार ज्यादातर खरीद परियोजनाएं देश में निर्मित सामग्री की हैं। इसके साथ ही रक्षा सौदों में गड़बड़ी करने वाली कंपनियों को काली सूची में डाले जाने की नीति में बदलाव किया गया है। नई नीति में कंपनियों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने के प्रावधान को हटाया गया है।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में सोमवार को हुई डीएसी की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए।

तेजस की खरीद
परिषद ने वायुसेना के लिए देश में ही बनने वाले नई पीढ़ी के 83 तेजस विमानों की खरीद को सैद्धान्तिक मंजूरी प्रदान कर दी है। इन विमानों की कुल कीमत 50025 करोड़ होगी। इसके अलावा सेना एवं वायुसेना के लिए 15 हल्के लड़ाकू विमानों की खरीद को स्वीकार किया है। इनका निर्माण भी देश में ही एचएएल द्वारा किया जाएगा, जिसकी लागत 2911 करोड़ रुपये होगी।

टी-90 टैंक
परिषद ने मूल रूप से रूस में विकसित हुए टी-90 टैंकों के अधिग्रहण को भी मंजूरी दी है। लेकिन इस बार टैंक रूस से नहीं खरीदे जाएंगे बल्कि, भारत में ही आर्डिर्नेस फैक्टरियों में इनका निर्माण किया जाएगा। इन पर 13448 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

यूएवी
परिषद ने सैन्य बलों के लिए 598 करोड़ रुपये के छोटे यूएवी खरीदने को मंजूरी प्रदान कर दी है। इसकी कीमत करीब 1100 करोड़ रुपये होगी। यह खरीद देशी-विदेशी दोनों कंपनियों से किए जाने की उम्मीद है।

एंफीबियस विमानों पर फैसला नहीं
नौसेना के लिए जापान से 12 एंफीबियस विमानों की खरीद पर बैठक में चर्चा हुई लेकिन फैसला नहीं हो सका। लंबे समय से इन विमानों की खरीद का मामला टलता आ रहा है। लेकिन संभावना है कि 11-12 नवंबर को पीएम की जापान यात्र के दौरान इस बारे में आगे बातचीत हो सकती है।

कालीसूची में बदलाव
परिषद ने रक्षा कंपनियों को काली सूची में डालने की नई नीति तैयार की है। अभी तक की नीति के अनुसार यदि कोई रक्षा कंपनी भ्रष्टाचार आदि में लिप्त पाई जाती है या फिर उसके उपकरण खराब निकलते हैं तो उसे काली सूची में डाल दिया जाता था। उस कंपनी से कोई खरीद नहीं होती थी।

नई नीति को लेकर अभी रक्षा मंत्रलय ने खुलासा नहीं किया है लेकिन इसमें ऐसे मामलों में कंपनियों पर जुर्माना लगाकर छोड़ने, एक खास अवधि के लिए ही काली सूची में डालने, कंपनी के पूरे समूह को काली सूची में नहीं डालने, किसी खास रक्षा सामग्री के खरीद के लिए ही काली सूची में डालने जैसे प्रावधान रखे गए हैं।

दरअसल, सरकार की दिक्कत यह है कि उच्च दर्जे के रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनियां सीमित हैं। काली सूची में डाले जाने से कई क्षेत्रों में तो एक-एक ही कंपनी रह गई है।