भारत का एक ऐसा मंदिर जहाँ हर रोज हजारों लोगों को कराया जाता है दोनों समय का भोजन –

फ़टाफ़ट डेस्क-
केरल के कोट्टयम जिले का वाईकॉम महादेव मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में अपनी सदियों पुरानी अन्नदान की परंपरा अभी तक चली आ रही है। यहां भक्त हर रोज भूखे लोगों को भोजन कराते हैं। मंदिर की रसोई में हर रोज सुबह-शाम 2000 से ज्यादा लोगों के लिए भोजन तैयार किया जाता है। लोगों को भोजन कराने का सिलसिला देर रात तक चलता है। यूँ कहा जाय कि जब तक सभी का भोजन हो नहीं जाता तब तक चलता है। भोजन पूरा कराने के बाद ही मंदिर के गेट बंद किए जाते हैं।
प्राचीन शिव मंदिर के दरवाजे बंद करने से पहले सेवादार पूछते हैं- कोई भूखा तो नहीं है.
मंदिर के मुख्य द्वार को बंद करने से पहले, हाथ में मशाल थामे मंदिर के सेवादार सभी चारों गेट पर खड़े होकर आवाज लगाते हैं- क्या कोई है, जो रात के खाने के लिए भूखा है। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि हां मैं भूखा हूं, तो उसे भोजन कराने के बाद ही मंदिर के गेट बंद किए जाते हैं। मंदिर के पुजारी सुरेश पोट्टी कहते हैं कि यह ऐसा मंदिर है जहां लोगों को सुबह और शाम दोनों टाइम का भोजन कराया जाता है। इस मंदिर के आसपास रहने वाले लोग कभी भूखे पेट नहीं रहते यह विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जो भूखे लोगों को दोनों टाइम का भोजन प्रदान करता है।

लॉकडाउन में यहां भूखे लोगों कि संख्या ज्यादा देखी गई
फिर भी इस मंदिर की परंपरा नहीं टूटी। आज तक मंदिर में कभी यह परम्परा नहीं टूटी है। यहां तक कि इस लॉकडाउन में भी जरूरतमंदों को भोजन कराया गया। यहां शिव को वैक्कथप्पन और अन्नदाना प्रभु नाम से पुकारा जाता है। केरल के कुछ अन्य मंदिर भी दोपहर और रात के खाने में भूखे लोगों को खाना खिला रहे हैं और उनमें तिरुवनंतपुरम का प्रसिद्ध पद्मनाभ स्वामी मंदिर भी शामिल है।

108 परिवार पीढ़ियों से संभालते आ रहे हैं इस मंदिर की व्यवस्था

सदियो से मुत्तास नामपूथिरी परिवार इस मंदिर के लिए भोजन बना रहा है। ये पारंपरिक रूप से सुबह स्नान करते हैं। फिर पारंपरिक अग्नि कुंड से लिए जलते कोयले से शिव की पूजा करते हैं। इस रस्म के बाद ही उनकी रसोई का काम शुरू होता है। बड़े किचन में बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।त्योहारों के समय लोगों को खिलाने के लिए रोज 3600 किलो चावल पकता है। सब्जियों को काटने का अधिकार पाथिनारनमार के रूप में पहचाने जाने वाले 16 नायर परिवारों के पास है। 108 परिवार इस मंदिर की व्यवस्था को पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल रहे हैं।