मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने महासमुंद जिले के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं पुरातत्विक स्थल सिरपुर में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिषद एवं सांस्कृतिक महोत्सव का शुभारंभ किया। समारोह की अध्यक्षता नागार्जुन फाउंडेशन के अध्यक्ष पूजनीय भंते नागार्जुन सुरेई ससाई ने की। कार्यक्रम के प्रारंभ में बुद्ध वंदना की गई और तथागत भगवान बुद्ध तथा डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। इस अवसर पर पूरा सम्मेलन ’बुद्धम् शरणम् गच्छामी, धम्मम् शरणम् गच्छामी और संघम् शरणम् गच्छामी के उद्गार से गुंजायमान हो गया। परिषद में जापान, चीन, श्रीलंका, नेपाल, भूटान आदि देशों के लगभग 500 विदेशी भिक्षुओं सहित बड़ी संख्या में बौद्ध धर्मावलंबी और बौद्ध भिक्षुक तथा स्कालर शामिल हुए।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि खुशी की बात है कि विभिन्न देशों के बौद्ध अनुयायी इस सम्मेलन में शामिल हुए है। सिरपुर न केवल छत्तीसगढ़ की धरोहर है अपितु देश और दुनिया की धरोहर है। प्राचीन काल से ही सिरपुर का प्राचीन स्वर्मिण इतिहास रहा है। यह धन- धान्य, सम्पदा, ज्ञान और शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। यहां सभी धर्म के अनुयायी रहे है। इस त्रिवेणी स्थल में बौद्ध धर्म के साथ-साथ लक्ष्मण मंदिर और जैन धर्म की विरासत और सुंदर समन्वय रहा है। सिरपुर व्यापार और व्यवसाय का भी केन्द्र था। अनुमान है कि यहां 10 किमी के क्षेत्र में अभी भी सैकड़ों टीले मौजूद है जिसमें गौरवशाली इतिहास विद्यमान है। उन्होंने कहा कि जब प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेंगसांग भारत की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने कुछ दिन सिरपुर में भी बिताए थे। प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन ने भी यहां शिक्षा के साथ शोध कार्य किया था। छत्तीसगढ़ में भगवान गौतम बुद्ध का आशीर्वाद रहा है और यह उन्हीं का प्रभाव है कि छत्तीसगढ़ के लोग बेहद शांति, प्रेम और सदभावना के साथ रहते है। उन्होंने कहा कि सिरपुर विश्व धरोहर की दृष्टि से सारे मापदण्ड को पूरा करता है और इसके समन्वित और व्यापक विकास के लिए यह जरूरी है कि यहां छोटे-छोटे टुकडे में कार्य करने की अपेक्षा केन्द्र और राज्य व्यापक प्रोजेक्ट बनाकर कार्य को किया जाए, जिससे यहां का उत्खनन वैज्ञानिक तरीके से हो, राष्ट्रीय राजमार्ग से यह जुड़े और बौद्ध सर्किट के माध्यम से यहां देश, विदेश के पर्यटक सुगमतापूर्वक आ सके।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भन्ते आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई ने कहा कि सिरपुर का इतिहास में गौरवशाली स्थान है और यहां बड़ी संख्या में बौद्ध विरासत विद्यमान है। अभी भी यहां खनन किया जाना शेष है, जिससे समृद्ध विरासत मिलने की संभावना है। उन्होंने सिरपुर में संग्रहालय और पर्यटकों के लिए धर्मशाला की आवश्यकता बताते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत बताई। कार्यक्रम में श्रीलंका से आए भंते सिवली ने कहा कि सिरपुर में पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत हैं, जिससे जिस तरह लोग भारत के लुंबनी, सारनाथ और अन्य बौद्ध सर्किट जाते है उसी तरह सिरपुर में भी आए। उन्होंने कहा कि भारत विश्व के आध्यात्मिक गुरू के रूप में प्रसिद्ध रहा है और भारत को फिर से आध्यात्मिक गुरू बनाने का गौरव दिलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्व में विद्यमान हिंसा को देखते हुए भारत को शांतिदूत की भूमिका निभानी चाहिए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में स्नेहा मेश्राम ने इस तीन दिवसीय कार्यक्रम की उद्देश्यों की जानकारी देते हुए कहा कि सिरपुर विश्व की सबसे बड़ी बौद्ध विरासत की खोज है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापार एवं शिक्षा का केन्द्र था और चिकित्सा की दृष्टि से भी प्रसिद्ध था। यहां की मूर्तिकला, वास्तुकला, स्थापत्य कला प्रसिद्ध है। सम्मेलन का प्रयास है कि सिरपुर को विश्व विरासत का दर्जा और पहचान मिले। कार्यक्रम में महासमुंद विधानसभा क्षेत्र के विधायक डॉ. विमल चोपड़ा, सरायपाली विधायक रामलाल चौहान सहित बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी और पर्यटक उपस्थित थे।