रायपुर. सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि हमने जनता से मिले अधिकार, जनता को ही सौंपने की दिशा में अनेक निर्णय लिए हैं. बड़ी पंचायतों के परिसीमन से 704 नई पंचायतें गठित हुई. जिनमें से 496 अनुसूचित क्षेत्रों में है. हमने पेसा क्षेत्रों को अधिकार और विकास की नई रोशनी देने के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है. ग्राम पंचायतों से विकेन्द्रीकरण की शुरूआत की है, तो नए जिले ‘गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही’ के गठन का निर्णय भी लिया गया. हम पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए जनभागीदारी बढ़ाने और संस्थाओं के सशक्तिकरण का काम तेजी से कर रहे है. छत्तीसगढ़ पंचायत अधिनियम, 1993 में संशोधन करके उम्मीदवारों की न्यूनतम योग्यता में कक्षा का मापदण्ड हटाकर ‘साक्षर’ कर दिया है. इसी प्रकार चुनकर न आने की स्थिति में निःशक्तजनों को नामांकित करने का प्रावधान किया गया है.
राज्य के संसाधन जनता की बेहतरी के लिए
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने राज्य के संसाधनों का इस्तेमाल राज्य की जनता की बेहतरी के लिए करने का जो संकल्प लिया है, उससे हमारी प्राथमिकताएं तय हो गई हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हमने डीएमएफ के सदुपयोग के लिए नियमों में जो संशोधन किए उसके परिणाम मिलने लगे हैं. स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टर, बच्चों को फीस में छूट, कोचिंग और आवासीय प्रशिक्षण की सुविधा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी अनेक सुविधाओं से खनन प्रभावित अंचलों में नवजीवन का संचार हो रहा है. आदिवासी अंचलों में युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी तथा अन्य रोजगार के अवसर मिले हैं. दंतेवाड़ा जिले में हाट बाजार क्लीनिक, ‘मेहरार-चो-मान’, कबीरधाम जिले में ‘शाला संगवारी’ दुर्ग जिले में ‘हेल्थ कूरियर वालंटियर (रनर्स) बस्तर में सुपोषण के नए आयामों से जनहित के जमीनी कार्यों को नई सोच नई दिशा, नई गति मिली है. किसानों, ग्रामीणों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, युवाओं सहित हर तबके को बेहतर अवसर और भागीदारी देने के लिए हमने विशिष्ट योजनाएं बनाई, जिसके कारण प्रदेश में नये उत्साह का संचार हुआ है.
दंतेवाड़ा से प्रारंभ हुआ गरीबी उन्मूलन के विशेष अभियान
श्री बघेल ने कहा कि समयबद्ध परिणाममूलक योजनाएं और कार्यक्रम बनाए बिना, हम अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते, इसलिए हमने एक व्यापक कार्य योजना के साथ प्रदेश के सबसे पिछड़े अंचल को सबसे पहले गरीबी और उसके प्रभावों से उबारने का संकल्प लिया है. भारतीय रिजर्व बैंक एवं वर्ल्ड बैंक के अनुमानों के अनुसार बस्तर के जिलों में बी.पी.एल. परिवारों का प्रतिशत 50 से 60 के बीच है, जबकि देश में बी.पी.एल. परिवारों का औसत लगभग 22 प्रतिशत है. विगत दशकों में देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की संख्या में कमी हुई है, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों की मूलभूत समस्याओं का निदान नहीं हुआ. दंतेवाड़ा जिले में लगभग 57 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं, जो आर्थिक-सामाजिक सूचकांक में भी सबसे नीचे हैं. हमने यह लक्ष्य निर्धारित किया है कि आगामी चार सालों में दंतेवाड़ा जिले में गरीबी उन्मूलन हेतु विशेष अभियान चलाकर वहां रहने वाले बी.पी.एल. परिवारों की संख्या राष्ट्रीय औसत से कम अर्थात 22 प्रतिशत से कम की जाए. आगामी वर्ष इस कार्ययोजना का विस्तार दो अन्य जिलों में किया जाएगा, जहां बी.पी.एल. परिवारों का प्रतिशत सर्वाधिक है. इसके साथ ही हमने युद्ध स्तर पर अनेक राज्य स्तरीय योजनाएं, कार्यक्रम और अभियान शुरू किए हैं, जिसकी प्रगति उत्साहजनक है.
निर्दोष आदिवासी परिवारों को मिलेगी आपराधिक प्रकरणों की त्रासदी से मुक्ति
मुख्यमंत्री ने कहा कि बस्तर के निर्दोष आदिवासी परिवारों को आपराधिक प्रकरणों की त्रासदी से मुक्त कराने के लिए गठित जस्टिस ए.के. पटनायक समिति की सिफारिश के आधार पर पहले चरण में 313 लोगों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ है, जो उनके लिए बहुत बड़ी आर्थिक और सामाजिक राहत भी है. आगे भी यह समिति सैकड़ों लोगों को न्याय दिलाएगी. उन्होंने कहा कि ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006’ के तहत निरस्त दावों की समीक्षा से हजारों परिवारों में नई उम्मीद जागी है. वहीं सामुदायिक वन अधिकारों के तहत स्थानीय लोगों को न्याय दिलाने की शुरूआत भी हमने की है. कोण्डागांव और धमतरी जिले के जबर्रा में हजारों एकड़ जमीन के सामुदायिक अधिकार पत्र देने से संबंधित गांवों में विकास की नई क्रांति हो रही है. इतना ही नहीं सर्वे तक को मोहताज रखे गये, अबुझमाड़ क्षेत्र के निवासियों को वन अधिकार पत्र देने की विशेष पहल की जा रही है. हमने तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर 2500 रू. प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 हजार रू. प्रति मानक बोरा की है, जिसके कारण विगत वर्ष 15 लाख से अधिक परिवारों को 602 करोड़ रूपए का भुगतान हुआ. अब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाने वाली लघु वनोपजों की संख्या 8 से बढ़ाकर 22 कर दी है. एक हजार से अधिक हाट-बाजारों पर संग्रहण केंद्र तथा वन-धन-विकास केंद्र की स्थापना की गई है. 50 हजार आदिवासी महिलाओं को इन केन्द्रों से जोड़ा गया है. नई औद्योगिक नीति में कृषि व उद्यानिकी को भी स्थान दिया गया है. इसके अलावा स्थानीय संसाधनों से स्थानीय विकास और स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए आकर्षक प्रावधान किए गए हैं.
नई पीढ़ी को शिक्षा और रोजगार से जोड़ने की पहल
मुख्यमंत्री ने कहा कि नई पीढ़ी को अच्छी शिक्षा से लेकर रोजगार दिलाने तक का का काम सामूहिक जिम्मेदारी का है. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के प्री-मैट्रिक छात्रावास, आवासीय विद्यालयों आश्रमों में निवासरत विद्यार्थियों की शिष्यवृत्ति बढ़ाकर 1000 रूपए प्रतिमाह करना, मैट्रिकोत्तर छात्रावासों के विद्यार्थियों की भोजन सहायता की राशि बढ़ाकर 700 रूपए प्रतिमाह करना, जाति प्रमाण पत्र जारी करने की सरल व्यवस्था, 17 नये एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय शुरू करना इसके कुछ उदाहरण है. हम दो दशकों के इतिहास में पहली बार लगभग 15 हजार स्थाई शिक्षक-शिक्षिकाओ की भर्ती कर रहे हैं, जिससे 7 हजार से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाएं आदिवासी अंचलों की शालाओं को मिलेंगे. उच्च शिक्षा को सुविधाजनक और गुणवत्तायुक्त बनाने के लिए प्रदेश में 10 आदर्श महाविद्यालयों की स्थापना, 54 महाविद्यालयों में अधोसंरचना विकास हेतु आर्थिक सहायता दी गई है, वहीं दूसरी ओर सहायक प्राध्यापक, ग्रंथपाल, क्रीड़ा अधिकारी के लगभग 1500 पदों पर भर्ती की जा रही है. 34 सरकारी कॉलेजों में लगभग 4 हजार तथा 56 अशासकीय कॉलेजों में 6 हजार सीटें बढ़ाई गई हैं. हर जिले में कन्या छात्रावास की उपलब्धता को अनिवार्य बनाया गया है. बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग में स्थानीय लोगों की भर्ती में तेजी लाने के लिए कनिष्ठ सेवा चयन बोर्ड का गठन, जिला संवर्ग में भर्ती की समय-सीमा दो वर्ष बढ़ाना, सभी वर्गों के युवाओं को विभिन्न विभागों में हजारों पदों पर भर्ती, कौशल उन्नयन और रोजगारपरक प्रशिक्षण जैसे अनेक उपाय किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं बल्कि युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए खेल प्राधिकरण का गठन, राज्य स्तरीय युवा महोत्सव का आयोजन शुरू किया गया है, जिससे युवाओं को चौतरफा संभावनाएं दिखाई पड़ने लगी हैं. हम युवाओं को यह संदेश देने में सफल हुए हैं कि पढ़ाई के अलावा उनके कैरियर निर्माण के अन्य कई रास्ते तलाशे जा रहे हैं. गांव-गांव में युवा-शक्ति को रचनात्मक दिशा देने के लिए ‘राजीव मितान क्लब’ गठित किए जाएंगे. इन क्लबों को अपनी गतिविधियों के संचालन के लिए प्रतिमाह 10 हजार रूपए दिए जाएंगे.