रायपुर मध्यप्रदेश से अलग होकर बना छत्तीसगढ़ प्रदेश जो लोक कला और संकृति में अन्य प्रदेशो से कहीं आगे है.. लेकिन सरकार की अनदेखी की वजह से यहाँ के लोक कलाकारों को ना तो उचित मंच मिलता है और ना ही अब तक कोई पहचान मिल पाई है.. परिणाम स्वरुप छतीसगढ़ के लोक कलाकार और लोक कला धीरे धीरे विलुप्त होती नजर आ रही है.. शादी विवाह हो या शासकीय आयोजनों का मंच हर जगह देश विदेश में ख्याति लब्ध कलाकारों की ही धमक देखी जाती है.. जाहिर है की ये कलाकार भी बड़े है और शानदार है लेकिन अपने प्रदेश की लोक कला और लोक कलाकारों को मंच कौन देगा.. जब इन्हें अपने ही प्रदेश में मंच नहीं मिलेगा तो बाहर के लोग कैसे जानेगे की छत्तीसगढ़ में इतनी प्रतिभा है..
छत्तीसगढ़ में लोक जीवन कला जो की समाज द्वारा मान्य है लोक संस्कृति कहलाती है इसके अंतर्गत लोकगीत ,लोकनृत्य नाटक ,छत्तीसगढ़ी त्योहार और पर्व छत्तीसगढ़ी आभूषण और व्यंजन है
लोकगीत- पंडवानी
- महाभारत कथा का छत्तीसगढ़ी लोकरूप पंडवानी है
- पंडवानी के रचियता – सबल सिंह चौहान है
- पंडवानी गीत अंतरास्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है
- पंडवानी के लिए किसी विशेष अवसर की जरुरत नहीं होती है
प्रमुख वाद्य यंत्र – १ तम्बूरा , २ करतल ,
अंतरास्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाले कलाकार
१ झाडूराम देवांगन
२ तीजन बाई
३ रितु वर्मा
ददरिया
- छत्तीसगढ़ के लोकगीतों का राजा कहते है
- सवाल जवाब शैली पर आधारित होता है
- फसल बोते समय युवक युवतिया अपने मन की बात को पहुंचते है
- यह श्रृंगार प्रधान होता है
- ददरिया को प्रेम गीत के रूप में भी जाना जाता है
- बैगा जनजाति ददरिया गीत के साथ नृत्य भी करते है
पंथी गीत
- यह छत्तीसगढ़ अंचल में सतनामी पंथ द्वारा गया जाने वाला एक विशेष लोकगीत है
- पंथी नृत्य में नर्तक कलाबाजी करते है
- पंथी गीत के अंतिम समय में पिरामिड बनाते है
चंदैनी गायन
- चंदैनी गायन छत्तीसगढ़ अंचल में लोरिक और चंदा के जीवन पर आधारित है
- वाद्यंत्र – टिमकी ,ढोलक
भरथरी गीत
- इसे लोककला में राजा भरथरी और रानी पिंगला के बैराग्य जीवन का वर्णन किया है
- वाद्यंत्र – एकतारा , सारंगी
डोला मारू
- यह डोला और मारू का प्रेम प्रसंग गायन है किन्तु यह राजस्थानी लोककला है
बांस गीत
- यह एक दुःख का करुण गीत है राउत जाती द्वारा गया जाता है
- बांस गीत में महाभारत के पात्र कर्ण और मोरध्वज व् शीतबसंत का वर्णन है
- इसमें गाथा गायन के साथ मोठे बांस के लगभग एक मीटर लम्बे सजे धजे बांस नामक वाद्य का प्रयोग होता है इसलिए इसे बांस गीत कहते है
- इसमें रागी गायक और वादक तीनो होते है
भोजली गीत
- रक्षा बंधन के दूसरे दिन भादो माह कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन होता है
- भोजली गीत में गंगा का नाम बार बार आता है
सुआ गीत
- सुआ गीत सुआ नृत्य के समय गयी जाती है
- यह गीत स्त्रियों के विरह को व्यक्त करती है
- सुआ गीत दीपावली के सुरु से दिवाली के अंतिम दिवस तक चलती है
इसके अलावा छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक अलग अलग अपनी कई लोक कलाएं है.. लेकिन ना तो इनकी कोई विशेष पहचान है और ना ही संस्कृति विभाग ने इनके लिए कोई ठोस पहल की है.. नतीजन छत्तीसगढ़ की रमा, प्रभा और रेखा जोशी बहनों के गुरु द्वारा रचित और इन तीनो के द्वारा गाये गए गीत में फेरबदल कर “ससुराल गेंदा फूल” गीत मुंबई के कलाकारों ने रिलीज कर दिया और छत्तीसगढ़ के कलाकारों को ना तो उसका पारितोषिक मिला और ना ही कोई मूल पहचान.. कारण रचनाओं का दस्तावेजी करण ना होना..
इस सम्बन्ध में हमने जोशी बहनों में से प्रभा जोशी से बात की तो उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों का दर्द हमारे सामने उड़ेल कर रख दिया.. उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोक कला के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचो पर अवसर, लोक कलाकारों की प्रतिभा के अनुसार उनकी स्तर के चयन के साथ साथ विशेष पहचान या छत्तीसगढ़िया में “चिन्हारी” देने की बात कही.. उन्होंने कहा की लोक कलाकारों का पारितोषिक निर्धारित होना चाहिए, वाद्य यंत्रो के संरक्षण, संवर्धन और युवाओ में उसके प्रति जाग्रति के लिए हर शहर में स्मारक होने चाहिए..
इसके अलावा प्रभा जोशी ने संस्कृति विभाग को आइना दिखाते हुए कहा की लोक कलाकारों के लिए प्रदेश में ही कई अवसर बनाये जा सकते है , जैसे नवरात्र के अवसर पर रतनपुर, दंतेश्वरी मंदिर, कुदरगढ़, चंद्रहासिनी, डोंगरगढ़, खल्लारी, चंडी देवी जैसे शक्ति पीठो में भारी संख्या में लोग आते है और वहां पर अगर शासन लोक कलाकारों को मंच दे तो लोक कलाकारों की पहचान पढेगी.. इसके अलावा प्रदेश में लगने वाले मडई, मेले, महोत्सवों में भी लोक कलाकरों की प्रस्तुति का मार्ग शासन को प्रसस्त करना चाहिए.. इसके साथ ही लोक कला कारो के लेख, धुन, नृत्य जैसे आदि कलाओ का दस्स्तावेजी करण होना चाहिए..
प्रभा जोशी जिन्हें हम प्रभा दीदी भी कहते है और शायद इसलिए भी कहते क्योकी उन्होंने वर्तमान में छत्तीसगढ़ में बन रही छत्तीसगढ़िया फिल्मो में निर्माण पर भी सवाल उठाए है उन्होने कहा है की यहाँ की फिल्मो से भौड़ा पन ख़त्म कर छतीसगढ़ के मूल स्वरुप, मूल मुहावरे, बोली, वाद्य यंत्रो का प्रयोग कर आने वाली पीढी को सत्यता से वाकिफ कराने की जरूरत है..