बीजापुर. एम्बुलेंस ना मिलने की वजह से मरीजो को पैदल या खटिया मे ले जाते तो शव को कंधे और साइकिल मे ले जाने वाली तस्वीर ने एक समय मानवता को झकझोर दिया तो इसी बीच नक्सल प्रभावित बीजापुर से जो तस्वीर आई है. उसने एक बार फिर तमाम सरकारी व्यवस्थाओं को आईना दिखाया. इस बार एक मरीज को लकडी से बनी जुगाड की पालकी मे इलाज के लिए ले जाना पडा. हालांकि सिस्टम के फेल्युर के कारण ये तस्वीर अब आम हो गई है. लेकिन हैरत की बात है कि तस्वीर उस नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य जिले की है. जहां सरकारे स्वास्थ्य व्यवस्था की बेहतरी के कसीदे पढती हैं.
दरअसल जिले के भैरमगढ ब्लाक के बेलचर गांव निवासी एक महिला गर्भवती थी. जिसे अचानक प्रसव पीड़ा होने लगी. महिला के परिजनों ने तत्काल सरकार की महतारी एक्सप्रेस से संपर्क करना चाहा. लेकिन अपनी मांगो के लिए मे हडताल मे बैठे एम्बुलेश कर्मी वाहन लेकर नहीं पहुंच पाए. लिहाजा जब घर मे दर्द से कराहती गर्भवती महिला कमला को अस्पताल ले जाने के लिए का कोई उपाय नहीं सूझा तो महिला के परिजनों ने बांस की पालकी बनाकर महिला को गांव से 6 किलोमीटर दूर अस्पताल तक पहुंचाया. फिलहाल महिला का प्रसव हुआ और जच्चा बच्चा दोनो स्वस्थ भी हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर 6 किलोमीटर के इस सफर मे उसे देखने वाले किसी इंसान को इतनी भी तरस नहीं आई कि वो उसे अपने वाहन से अस्पताल पहुंचा सके.. और सवाल तो ये भी है कि सरकार ऐसे मामले मे कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनाती जिसके वो कोरे वादे करती है..
हडताल की वजह से नहीं मिला एम्बुलेंस. बीएमओ
6 कि.मी. पैदल सफर तय करके जुगाड की पालकी से जिस गर्भवती महिला कमला को परिजनों ने अस्पताल पहुंचाया. उसके संबंध मे बीएमओ डा अभय तोमर, से जानकारी लेने मे पता चला, कि अस्पताल में महिला का प्रसव हुआ है. जच्चा बच्चा दोनों सुरक्षित है और एम्बुलेंस कर्मियों के हड़ताल मे होने के कारण एम्बुलेंस नही मिला है !