उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की समिति न्यायमूर्ति एके गांगुली के खिलाफ शिकायत करने वाली कानून की इंटर्न के बयान से इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि पहली नजर में उनका (गांगुली का) आचरण अवांछित और यौन प्रकृति का था।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में उसके द्वारा अब किसी और कार्रवाई की जरूरत नहीं है क्योंकि इस घटना के दिन 24 दिसंबर, 2012 को न्यायमूर्ति गांगुली सेवानिवृत्त हो चुके थे। न्यायाधीशों की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, हमने इंटर्न के बयान (मौखिक और लिखित), तीन गवाहों के हलफनामों और न्यायमूर्ति एके गांगुली के बयान का बारीकी से अध्ययन किया है। समिति को ऐसा लगता है कि 24 दिसंबर, 2012 की शाम वह (ला इंटर्न) होटल ली मेरीडियन में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके गांगुली के काम में मदद के लिए गई थी। इस तथ्य से न्यायमूर्ति गांगुली ने भी अपने बयान में इंकार नहीं किया है।
इस रिपोर्ट के मुख्य अंश के अनुसार, यही नहीं, समिति का यह सुविचारित मत है कि इंटर्न का मौखिक और लिखित बयान पहली नजर में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एके गांगुली द्वारा 24 दिसंबर, 2012 को रात आठ से साढ़े दस बजे के बीच होटल ली मेरीडियान के कमरे में उसके साथ अवांछित आचरण वाले कृत्य (यौन प्रकृति का अवांछित मौखिक-गैर मौखिक आचरण) का खुलासा करता है।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम ने दो पेज के बयान में इस इंटर्न के नाम का खुलासा किया लेकिन ऐसे मामलों में कानूनी जरूरतों और मीडिया नीति के मद्देनजर, इस खबर में उसके नाम का जिक्र नहीं कर रही है। न्यायमूर्ति सदाशिवम के अनुसार इस तथ्य के मद्देनजर कि इंटर्न उच्चतम न्यायालय के रोल पर इंटर्न नहीं थी और संबंधित न्यायाधीश भी इस घटना के दिन सेवानिवृत्त हो जाने के कारण अवकाश ग्रहण कर चुके थे, इस अदालत द्वारा आगे किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि मीडिया में प्रकाशित खबर में कथित रूप से यह भूल थी कि वह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश थे, एक समिति गठित की गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है। प्रधान न्यायाधीश के बयान के अनुसार, पूर्ण न्यायालय की 5 दिसंबर, 2013 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार यह स्पष्ट किया जाता है कि इस न्यायाधीश के पूर्व न्यायाधीशों के खिलाफ प्रतिवेदन उच्चतम न्यायालय के प्रशासन द्वारा विचार योग्य नहीं हैं।
रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया जाता है कि समिति की रिपोर्ट की प्रति इंटर्न और न्यायमूर्ति गांगुली को भेज दी जाए। कानून की इंटर्न से हाल ही में सेवानिवृत्त न्यायाधीश के दुर्व्यवहार के बारे में मीडिया में आई खबरों के आधार पर प्रधान न्यायाधीश ने 12 नवंबर को न्यायमूर्ति आरएम लोढा, न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की तीन सदस्यों की जांच समिति का गठन किया था।
इस इंटर्न ने न्यायाधीश के नाम का जिक्र किए बगैर ही एक ब्लॉग में लिखा था कि जब देश राजधानी में 16 दिसंबर की घटना पर उद्वेलित था तो उसी दौरान एक न्यायाधीश के हाथों उसे वेदनापूर्ण अनुभव से गुजरना पड़ा था।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए कि उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ ऐसे आरोप का संस्थान की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर सीधा असर होगा, उन्होंने उसी दिन आरोपों की सत्यता का पता लगाने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।
समिति ने इंटर्न के बयान, उसके तीन गवाहों के हलफनामों और शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके गांगुली के बयान की छानबीन के बाद 28 नवंबर, 2013 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। यह इंटर्न पिछले महीने न्यायाधीशों की समिति के समक्ष पेश हुई थी। इसके बाद न्यायमूर्ति गांगुली ने भी समिति के समक्ष अपना पक्ष रखा था।
इस समय पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर आसीन न्यायमूर्ति गांगुली ने इन आरोपों से इंकार करते हुए कहा था कि वह इससे हतप्रभ हैं। यह प्रकरण चर्चा में आने के बाद से ही न्यायमूर्ति गांगुली के खिलाफ कार्रवाई और आयोग के अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है।