जमीन से निकलने वाला रंगीन पानी नहीं पी पाए तो ग्रामीण पी रहे यहाँ का पानी

अम्बिकापुर (सुशील कुमार) जल  ही जीवन है इसे बचाए, इस तरह की तमाम उपदेश आपने पढे और देखे होगे,, लेकिन जब जल ही जीवन के लिए खतरा बन जाए, तो फिर प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाना लाजमी है, मामला सरगुजा जिले मे आने वाले सुमेरपुर ग्राम पंचायत के नेवरापारा बस्ती का है,, जहां जमीन से निकल रहे कोयला और आयरनयुक्त पानी से बचने के लिए गांव वालो को 1 किलोमीटर का सफर तय कर एक प्राकृतिक जल श्रोत का पानी पीना पडता है.

सरगुजा जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से 9 किलोमीटर दूर स्थित नेवरापारा बस्ती, इस बस्ती के लोग प्यूरीफायर यंत्रो के इस युग मे भी जुगाड के जल स्त्रोत से पानी पीने को मजबूर है, दरअसल गांव की इस बस्ती मे रहने वाली महिलाओ , बच्चो और पुरुषो को पीने के पानी के लिए गांव से एक किलोमीटर दूर उस जल श्रोत से पानी लाना पडता है, जो किसी भी लिहाज से स्वास्थ के लिए फायदेमंद नही है,,

जिले के नेवरापारा गांव मे स्थित इस जल श्रोत से निकलने वाले पानी को पीने लायक बनाने के लिए उसे कई बार छानना पडता है, ताकि पानी को मिट्टी और बालू से मुक्त किया जा सके ,  वैसे इस गांव मे एक- दो हंडपैंप है, लेकिन गांव मे लगे हैंडपंप से निकलने वाले पानी मे आयरन और क्षेत्र के भूगर्म मे मौजूद कोयला भी घुलकर निकलता है, और यही वजह है कि बिमारी की संभावना से ग्रामीण इस पानी को नही पीते है,और 1 किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाते है, इस बात को खुद गांव के मुखिया भी स्वीकार करते है,

काले औऱ लाल पानी उगलने वाले सुमेरपुर पंचायत के हैंडपंप की खबर, जब हमने पीएचई विभाग के जिम्मेदार अधिकारियो तक पहुंचाई , तो उन्होने कहा इस तरह की परेशानी होने पर नए हैंडपंप खुदवाने का प्रावधान है, लेकिन काला पानी निकलने के पीछे भूगर्म का कोयला नही होता है, क्योकि सरगुजा के अधिकांश हिस्सो मे कोयला है, साथ ही उन्होने टीम भेजकर हैंडपंप की जांच कराने की बात भी कही है,

अधिकारी ने सुमेरपुर पंचायत के हैंडपंपो की जांच कराने की बात भी कही और हो सकता है ग्रामीणो को दूषित पानी से छुटकारा भी मिल जाए, लेकिन एक बात समझ से परे है,, कि पानी जांच के नाम पर हर वर्ष पीएचई विभाग करोडो खर्च कर देता है, तो फिर जांच कहां होती है, बहरहाल प्रदेश के पीएचई मंत्री की दखल वाले सरगुजा इलाके का ये पहला गांव नही है जहां लोग ढोढी का पानी पीने पर मजबूर है, बल्कि अंधेरे मे ढूढने पर भी दर्जनो ऐसे गांव मिल जाएगें।