वैभव शिव पाण्डेय की कलम से
आवा दे बेटी फागुन तिहार…मारबो बोकरा करबो शिकार…………हे वोति कोन सेन रे मुना महुआ रे………..। धुन असमिया हे…फेर बोल छत्तीसगढ़ी। अइसनेहे साझा संस्कृति ले रचे बसे हे लाखन परदेसी छत्तीसगढ़िया मन के जिनगी। वो छत्तीसगढ़िया मन के जिनगी जेन डेढ़ सौ बछर पहली असम राज खाय-कमाय बर गइन अउ उंहे के वोखे रहिगे। छत्तीसगढ़िया परदेसिया होगे…असमिया होगे। आज असम के भीतरी 20 लाख परदेसिया छत्तीसगढ़िया रहिथे। फेर डेढ सौ बछर बाद भी, असमिया रंग मा रंगे के बाद भी ये परदेसिया मन अपन पुरखा के छत्तीसगढ़ी संस्कृति ला नइ छोड़े हे। आजो असम राज मा रहवइया छत्तीसगढ़िया मन के इहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति पूरा सम्मान के साथ जिंदा हे। इखर घर मा रहन-सहन खान-पान सब छत्तीसगढ़िया रंग देखे ला मिलथे। इखर घर मा हरेली मनथे, इखर घर देवारी मनथे, इखर घर गाय-गरुवा ला सोहई बंधथे, छत्तीसगढ़ मा भले कांस के थारी अउ पीतल के लोटा नंदावत हे फेर असम के भीतर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ये हिस्सा आजो देखें बर मिलथे। इही रंग ला जाने बर…समझे बर एक कार्यक्रम छत्तीसगढ़ मा पहली बार होइस। असम रहवइया उन प्रवासी छत्तीसगढ़िया मा बर जेन रोजी-रोटी खातिर डेढ़ सौ बछिर पहली असम चल दे रहिन। संस्कृति विभाग कोति ले पहली बार असमिया छत्तीसगढ़िया मन बर संस्कृति के मिलाप खातिर पहुना संवाद के आयोजन करे गिस। तीन दिन के ये आयोजन मा असम ले प्रवासी छत्तीसगढ़िया मन के 28 सदस्य दल रायपुर आइन। रायपुर के संस्कृति विभाग के सभागार मा 24 अउ 25 मार्च के गोठ-बात होइस। 26 मार्च सगा मन बर रायपुर तिर के पर्यटन स्थल मा घुमे-फिरे के कार्यक्रम रहिस।
असम ले आए शंकर साहू अउ सुभाष जी जइसे कतकों साथी मन अपन पुरखा मन ले सुने कहिनी बताथे ता उंखर आखीं डबडबा जाथे। उन बताथे कि वो उन्नीसवीं सदी के दउर रहिस जब छत्तीसगढ़ भारी अकाल परिस। ये वो दउस रहिस अंगरेज मन के सासन रहिस। ये वो दउर रहिस जब जमीदार परथा परदेस मा चलत रहिस। अकाल परे के बाद खाय-पिये बर सब तरसे ला धर लिस। वो बखत असम राज मा चाय बगान मा मजदूरी करइया मन के कमी रहिस। पुरखा मन ला काम चाही रहिस अउ असाम के चाय बगान वाल मजदूर। दूसर कोति अंगरेज मन के सासन। अंगरेज मन चाय बगान मा काम कराय बर छत्तीसगढ़ के मजदूर मन ला टरक मा भर-भर के लेगिस। धीरे-धीरे करके 50 सौ के संख्या बाढ़त-बाढ़त मजदूरी बर असम जवइया मन के संख्या हजार होगे। अउ दुरुग, राजनांदगांव, बलौदाबाजर, धमतरी, महासमुंद, रायपुर, जांजगीर, बिलासपुर जइसे कतको जगह ले तेली, गोड़, सतनामी, कुर्मी, कोस्टा जइसे कतको जाति-समाज के लोगन असम मा जाके बसगे। धीरे-धीरे असम मा बसने वाला छत्तीसगढ़िया मन के संख्या लाख ले दू लाख अउ आज 20 लाख तक के पहुँच गे।
असम अउ छत्तीसगढ़िया मन के बीच एक समाज सुधारक जनम लिस। नाव रहिस मिनी माता। छत्तीसगढ़ के पहली महिला सांसद मिनी मात के जनम असम मा ही होइस रहिस । मिनी नाव के नोनी अपन समाज सेवा ले कब सब झिन के माता बनगे पता ही नहीं चलिस। मिनी माता दलित समुदाय के उत्थान बर खुब काम करिस। असम के भीतर चाय बगान मा काम करिया मजदूर मा घलोक अउ छत्तीसगढ़ मा के गरीब तबका के परिवार बर घलोक।
मैं ये तो जानत रहेव कि असम के भीतर छत्तीसगढ़िया परिवार बड़ संख्या मा रहिथे। उंखर मन के बड़का बस्ती हे। आरएसएस के पूर्व प्रचारक नंदकिशोर शुक्ल जी ले असम रहवइया छत्तीसगढ़िया परिवार मन के बारे मा सुने रहेव। पता चले रहिस कि छत्तीसगढ़िया मन उहे के अब मूल निवासी होगे हे। उन चुनाव मा हिस्सा लेथे, सांसद अउ विधायक घलोक बनथे। फेर ये नइ जान पाय या कभू खोजे के परयास नइ करे रहे कि असम तो जइसे छत्तीसगढ़ के हिस्सा सही होगे। जिहां लाखन छत्तीसगढ़िया मन असम बसथे। 17 जिला मा छत्तीसगढ़िय़ा मन असम के भीतर अब नार सही फइल गे हे। असम मा रहवइया छत्तीसगढ़िया मन ला अब असमिया कहिना हे जादा बने लगथे। काबर के मनखे जेन भुईया रहिथे ंवो उही भुईया के कहाथे। वोखर चिन्हारी अब असमिया ही हे। फेर हम छत्तीसगढ़िया मन बर गरब के बात ये हे कि असमिया होय के बाद इखर भीतर मा छत्तीसगढ़िया रंग देखे बर मिलथे।
राज्य सरकार अउ संस्कृति बिभाग असमर अउ छत्तीसगढ़ के बीच मा जेन सेतु बांधे के परयास करथ हे वो बड़ सुघ्घर हे। ये दूनो राज के सांस्कृतित आदान-प्रदान हरय। ये बात जरूर हे के हम अपन छत्तीसगढ़िया भाई-बहिनी मन पहुँचे पर थोरकुन देरी करेन फेर अब पहल होगे ता अवइया बेरा नाव पीढ़ी मन बर सब अच्छा होही। छत्तीसगढ़ मा असम के रंग देखबों अउ देखबों असम छत्तीसगढ़िया रंग। जेन नता अभी तक छूटे अउ टूटे के कस लगत रहिस वो अब जुड़ चुके हे। अब गोठ-बात हे, “पहुना संवाद” हे…अब “असमिया धून मा छत्तीसगढिया राग”।
जय जोहार
वैभव शिव पाण्डेय बेमेतरिहा
संवाददाता, स्वराज एक्सप्रेस, रायपुर
09301489305