अम्बिकापुर
देश दीपक “सचिन”
उम्मीद ऐसी हो जो जीने को मजबूर करे, राह ऐसी हो जो चलने को मजबूर करे, महक कम ना हो अपने सृजन की, सृजन भी एसा करो की हर बच्चा सीखने को मजबूर हो। अम्बिकापुर के सरगंवा प्रायमरी स्कूल में लिखे गए इस स्लोगन को स्कूल के स्टाफ ने मूर्त रूप दिया है। यहाँ पर शिक्षको ने इस स्लोगन के अनुरूप ही बच्चो का सृजन किया है। यहाँ बच्चे स्कूल से भागते नहीं है, बल्की पढने में बहोत आनंद का अनुभव करते है, कारण है स्कूल के स्टाफ के द्वारा बनाया गया नया माहौल।
शहर से लगे सरगंवा प्राथमिक शाला में पढने वाले बच्चो को बस्ते के बोझ से राहत मिली हुई है दरअसल इस स्कूल के स्टाफ ने स्कूल में बच्चो के अध्यापन के तरीको को बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से सजा रखा है। जिस कारण बच्चो को बेवजह की कापी किताबो का बोझ नहीं ढोना पड़ता है। कक्षा 3 से 5 तक के बच्चे अपने बस्ते में महज दो किताब और एक कापी का बोझ ही रखते है। वही कक्षा 1 और 2 के बच्चो के लिए स्कूल की दीवारों में चित्र व वर्णमाला के जरिये दीवारों को ही किताबो का रूप दिया गया है लिहाजा बच्चे दीवारों से ही पढ़ते है और वही पर बने ब्लैक बोर्ड में लिख कर अभ्यास भी करते है।
गौरतलब है की स्कूल के स्टाफ ने बच्चो को शारीरिक और मानसिक बोझ से मुक्त रखने की ठानी है बावजूद इसके इन बच्चो शिक्षा स्तर भी मजबूत देखा गया। शासन द्वारा शिक्षा के नए नए प्रकारों का इन स्कूल में नियमित पालन किया जा रहा है। इस विधा से पढ़ाई करने में बच्चो को मजा भी आ रहा है और यह विधा जल्द सीखने में सहायक भी सिद्ध हो रही है। प्लास्टिक के खिलौने जैसे दिखने वाले पाठ्यक्रम से बच्चो की पढ़ाई के प्रति रूचि बढ़ रही है। अक्सर बच्चो को किताबो से दूर भागते देखा गया है लेकिन जब उन्हें खिलौने की शक्ल में पढ़ाई का अनुभव खेल जैसा हो रहा है तो बच्चे मन लगा कर पढ़ने की इस विधा को सीख रहे है। और टीचर के द्वारा सवाल पूछे जाने पर उसके जवाब तुरंत देते है।
बड़ी बात यह है इस तरह से स्कूल के कायाकल्प के लिए शिक्षको ने खुद के खर्च से सारी सुविधाए जुताई है
संजना…छात्रा
इस स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा से जब बात चीत की तो छात्रा ने बताया की एक तो उनके बस्तों का बोझ बहोत कम है जिससे उसे लाने ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होती और दूसरी और स्कूल में किताबो से कम और अन्य तरीको से ज्यादा पढ़ाया जाता है जिससे बच्चो को पढने में बहोत अच्छा लगता है।
सुजय राम छात्र
ठीक उसी तरह एक छात्र ने भी अपने स्कूल में पढ़ाने के तरीके से खुसी जाहिर की और कहा की बस्ता हलका रहता तो आने जाने में आसानी होती है।
सरोज टोपो….प्रधान पाठक प्रा.शा.सरगंवा
स्कूल की प्रधान पाठक सरोज टोपो ने चर्चा के दौरान बताया की हम लोग बच्चो के दिमाग से शरीर से बोझ को जितना कम कर सके उतना ही अच्छा होगा। बस्ते का बोझ हो या बच्चो पर पढ़ाई का बोझ इस स्थित मे बच्चा कम सीखता है। और अगर बोझ ही ना हो तो उस काम में बच्चो का मन लगता है। इसलिए हमारी स्कूल में बच्चो को शासन द्वारा भेजी गई नई पद्दति का उपयोग कर पढ़ाया जाता है जिससे उसनका मन पढ़ाई में लगता है और वो जल्दी सीखते है। इन्होने यह भी कहा की सरकार ने आदेश तो कर दिया है लेकिन अगर हर जगह बच्चो का बोझ कम किया जाए तो बेहतर शिक्षा दी जा सकती है।