[highlight color=”green”]सर्पदंश से मौत के बाद भी पुलिस को पीएम के लिये करना पड़ा पांच घंटे इंतजार [/highlight]
[highlight color=”black”]अम्बिकापुर [/highlight][highlight color=”red”]”दीपक सराठे”[/highlight]
इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, परंतु सरगुजा, जशपुर जैसे आदिवासी अंचलों में यह तस्वीर आम हो चुकी है। सर्पदंश के बाद झाडफूंक के चक्कर में सरगुजा के कई गांव में अनगिनत लोगो की मौत पूर्व में सामने आ चुकी है। आज की यह तस्वीर जिला अस्पताल के मरच्युरी कक्ष के सामने की है। सर्पदंश से व्यक्ति की मौत से पहले घर से शुरू हुआ झाडफूंक का खेल उसकी मौत के बाद भी मरच्युरी में चलता रहा। उक्त व्यक्ति को बचाने व जिन्दा करने का दावा करते हुये सर्पदंश के बाद कई ओझा व बाबा ने घर व अस्पताल में अंधविश्वास फैलाने का नाटक किया। इस नाटक के बीच परिजनों की आस्था नहीं टूटी। अंततरू पुलिस को इस पूरे झाडफूंक के खेल के चलते 5 घंटे तक उक्त मृत युवक का पोस्टमार्टम करने की प्रक्रिया पूरी करने इंतजार करना पड़ा।
जानकारी के अनुसार मूलत गढ़वा झारखण्ड निवासी लुकमान अंसारी पिता ईमामअली अंसारी उम्र 40 वर्ष स्थानीय लुचकी घाट में सिलाई का काम करता था। गुरूवार की रात वह घर में जमीन पर सोया था। तडके 3 बजे के लगभग उसे हाथ में किसी चीज के काटने का आभास हुआ। उठा तो देखा कि उसे सांप ने काट लिया है। परिजन तत्काल उसे नवागढ़ किसी बाबा के घर ले गये। एक बाबा से जब कुछ न हो सका तो नवागढ़ में ही दूसरे बाबा के पास झाडफूंक का सिलसिला घंटो चलता रहा। इस बीच व्यक्ति की हालत बिगडने पर सुबह उसे जिला अस्पताल में दाखिल कराया गया। अस्पताल में ही वार्ड के अंदर परिजनों ने दो सपेरों को बुलवाकर झाडफूंक कराया। वार्ड में सपेरे उसे ठीक करने का दावा करते हुये झाडफूंक करते रहे, परंतु सुबह 10 बजे उसकी मौत हो गई। परिजनों के विश्वास झाडफूंक से मौत के बाद भी खत्म नहीं हो सका था। इसी कारण से परिजन पुलिस को बिना सूचना दिये मृत व्यक्ति को वहां से घर ले जा रहे थे, परंतु पुलिस ने उन्हें रोक लिया और शव को मरच्युरी में रखवा दिया। परिजन का विश्वास था कि उनके घर का व्यक्ति अभी भी मरा नहीं है। इस कारण से वे पुनरू समीप के दर्रीपारा से एक बाबा को पुनरू बुला लाये। बाबा ने मरच्युरी में ही झाडफूंक करना शुरू कर दिया। मृत व्यक्ति का शरीर ठण्डा हो जाने पर उक्त बाबा ने परिजनों को कहा कि इस व्यक्ति की रूह निकल चुकी है अब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा। यह कहते हुये उक्त बाबा वहां से चला गया। परिजन फिर भी इस विश्वास में थे कि अभी भी उनके घर के उस व्यक्ति को जिन्दा किया जा सकता है। परिजनों का कहना था कि अस्पताल में उपचार तो ठीक हुआ, परंतु जो बॉटल चढ़ाया गया, उसके कारण लुकमान का शरीर ठण्डा पड़ गया। परिजन गढ़वा झारखण्ड से बैगा बुलवाने की बात कहते हुये पोस्टमार्टम करने की प्रक्रिया को रोके रहने की बात कही। झाडफूंक के इस नाटक के कारण पुलिस को अपनी प्रक्रिया पूरी करने में लगभग 5 घंटे इंतजार करना पड़ा। अंततरू दोपहर 3 बजे के लगभग पोस्टमार्टम कराया जा सका।
[highlight color=”green”]आखिर कब खत्म होगा यह अंधविश्वास का मिथक [/highlight]
सरगुजा जैसे आदिवासी अंचल के कई बीहड़ गांव में आज भी झाडफूंक की परंपरा बड़े जोरों से चल रही है। खासतौर पर सर्पदंश के मामले में झाडफूंक का चक्कर काफी महंगा पड़ता है। ऐसे कई मामले पूर्व में सामने आ चुके हैं, जिसमें झाडफूंक के जाल में फंसकर देर हो जोन से पीडित की मौत हो चुकी है। कई जागरूकता के कार्यक्रमों के बाद भी ग्रामीणों के दिलो दिमांग से यह अंध विश्वास का मिथक समाप्त नहीं हो सका है। बरसात में जहां सर्पदंश से मौत की संख्या बढ़ जाती है वहीं इससे पीडित लोगों के साथ झाडफूंक के मामले अकसर सामने आते हैं।