अम्बिकापुर
देश दीपक “सचिन”
छोटे मासूम कंधो पर स्कूल के बस्ते का बोझ इस कदर बढ़ा हुआ है मानो बच्चे स्कूल में पढने नहीं बल्कि मजदूरी करने जा रहे हो,,अम्बिकापुर शहर में प्राइवेट स्कूलों में मनमाने रवईये पर शिक्षा विभाग की लगाम ना होने का परिणाम यह है की यहाँ बच्चे खुद के बोझ के बराबर बोझ का बस्ता कंधे में टांग कर स्कूल जाते है,,वही शहर में एक एसी भी प्राइवेट संस्था है जहा पर बच्चो के बस्तों का बोझ बहोत कम होता है,,
बच्चो का दर्द
जब हमने स्कूलों में जाकर बस्ते के बढ़ते बोझ की पड़ताल की तो पता चला की शहर के सभी प्राइवेट स्कूलों में पढने वाले बच्चो के बस्ते का बोझ इतना है की उनसे उठाया नहीं जाता, बस्ते के बोझ से बच्चे लडखडा कर चलते है, बोझ से शरीर झुक गया है, लेकिन स्कूलों को बच्चो का यह दर्द नही दिखाई देता, इन्हें तो बस मोटी फीस वसूलने से मातलब है,, अलबत्ता मासूम किससे अपने दर्द की दास्ताँ बया करते, पर जब हमने बच्चो से उनका दर्द जाना तो कह पड़े बच्चे, की बहोत वजन है बस्तों का, कंधे दर्द करते है, बच्चो के परिजनों को भी इनका दर्द दिखता तो है लेकिन अच्छी शिक्षा की होड़ में शिक्षा के व्यवसाई करण की गिरफ्त में फसे परिजन भी मानते है की बच्चो की क्षमता से अधिक बस्ते में बोझ होता है, लिहाजा विषयवार किताबे ही स्कूल में मंगानी चाहिए और पीने के पानी से बढ़ने वाले बोझ को भी कम करने के लिए स्कूल में पीने के साफ पानी की व्यवस्था होनी चाहिए.
चिकित्सक की राय
बच्चो के बस्ते के बढ़ते बोझ के कारण उनके स्वास्थ पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है, इस मामले में जब हमने शिशु रोग विशेसज्ञ डा टेकाम से बात की तो उन्होंने भी यह स्वीकारा की बच्चो के बस्तों का बोझ कम होना चाहिए, अधिक वजन उठाने से बच्चो के शरीर में तकलीफ हो सकती है, बच्चो को थकावट हो सकती है,,
सेमरोक स्कूल बना मॉडल
जहा शहर में शिक्षा की दूकान खोल कर अपनी जेब भरने का खले बदस्तूर जारी है, बच्चो के दर्द को अनदेखा कर निजी स्कूल संचालित हो रहे है, वही शहर में एक एसा भी स्कूल है जो जिले ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के लिए मॉडल साबित हो रहा है, यह है अम्बिकापुर का सेमरोक स्कूल जिसे आधारशिला फाउन्डेसन द्वारा संचालित किया जाता है इस स्कूल में बच्चो के बस्तों का बोझ बहोत कम है हर दिन बच्चे स्कूल सिर्फ उतना ही बोझ ले कर आते है जितनी पढ़ाई उस दिन होनी है,, बाकी की किताबे या तो बच्चो के घर में होती है या तो स्कूल में ही रख ली जाती है, लेकिन बच्चो के बस्तों में बेवजह का वजन स्कूल के द्वारा नहीं दिया जता है,, इतना ही नहीं इस स्कूल में पीने के पानी का बाटल भी घर से लाना प्रतिबंधित है, स्कूल में ही बच्चो को साफ़ पानी पिलाया जाता है, बहारहाल इस स्कूल ने कुछ ही समय में शहर में अपनी अलग पहचान बनाई है,,
कलेक्टर ने कहा
बच्चो के कंधो पर बढ़ते बोझ के सवाल पर सरगुजा कलेक्टर भीम सिंह कहते है की इस सम्बन्ध में उन्होंने पहले ही जिला शिक्षा अधिकारी को आदेश दे दिए है,,कलेक्टर मानते है की एसा निजी स्कूलों में ही होता है और अगर सरकारी स्कूलों में भी इस तरह की सिकायते है तो उसके लिए व्यवस्था बनानी होगी की रोजाना हर विषय की पढ़ाई ना हो बल्कि विषयवार दिन डिसाइड किये जाए,,
CM के आदेश के बाद भी असमंजस
गौरतलब है की अम्बिकापुर की छात्रा अपूर्वा ने मुख्य मंत्री रमन सिंह को पत्र लिख कर कहा था की सी एम् अंकल कुछ करिए बस्ते के बोझ से मेरा कंधा दुखता है, जिस पर तत्काल संज्ञान लेते हुए सी एम् ने शिक्षा विभाग को कार्यवाही के निर्देश दिए थे, और इस पूरे वाकये को रमन के गोठ कार्यक्रम में सी एम् ने बताया,, लेकिन अब तक जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा इस ओर कोई भी कर्यवाही नहीं की गई है और ना ही इन स्कूलों को बस्तों का भोझ कम करने के लिए कोई आदेश जारी किया है,, जहा एक ओर सी एम् ने विभाग को आदेश दिया है,,और जिले के कलेक्टर भी बताते है की उन्होंने भी जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए है लेकिन जब हमने जिला शिक्षा अधिकारी से इस मामले में बात करनी चाहि तो उन्होंने एसा कोई भी आदेश ना होने की बात कह कर कुछ भी कहने से मना कर दिया,, लिहाजा इस कसमकस के बीच क्या सी एम् अंकल अपने प्रदेश के बच्चो के कंधो से बोझ कम कर सकेंगे या ये आदेश भी अफसरशाही की भेट चढ़ेगा,,