अम्बिकापुर (दीपक सराठे)
बस… अब और नहीं, मैं अपने सभी चारों बच्चों को समाज के हवाले करता हॅू। मेरी पत्नी के गुजर जाने के बाद मैं इस सीमा तक थक चुका हॅू कि मैं खुद भी अपने बच्चों के साथ रहते हुये केवल इन बच्चों की मां का ही चेहरा देखकर रहता हूॅ। मैने समाज को इन बच्चों को समर्पित कर दिया हैे। समाज इन बच्चों को जैसा बनायेगा वैसा बनेंगे। इसे एक पिता की बेवसी कहें या लाचारी, पर ऐसा हुआ है। सरगुजा के लखनपुर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत प्रतापपुर माझापारा में रहने वाला एक पिता अपनी तीन अबोध पुत्रियों व एक मासूम पुत्र को मातृछाया के हवाले कर दिया। वह क्या परिस्थिति होगी व उस पिता की ऐसी क्या मजबूरी भी थी कि उसने एक साथ अपनी चारों संतान को अपने से अलग कर दिया। उस क्षण उस पिता की मनोदशा क्या होगी, यह तो सिर्फ वह पिता समझ सकता है।
जिन औलादों के इस दुनिया में आने के बाद परिवार का माहौल खुशियों से भर गया था। प्यार दुलार से लालन-पालन कर कर माता-पिता ने जितना कुछ दिया, उसके बाद बच्चे अपनी जिन्दगी की दहलीज पर आगे बढ़ रहे थे। पुत्रियों में एक 3 वर्ष, एक 4 वर्ष व एक 6 वर्ष सहित एक 1 साल पुत्र होने पर अचानक उनकी मां की मौत से पूरे परिवार की खुशियां बिखर गई। छह माह पहले पत्नी के गुजर जाने के बाद पति व चार बच्चों का पिता टूट गया। धीरे-धीरे आय का जरिया भी खत्म होने के अपने कलेजे के टूकड़ों को दो जून की रोटी देने में भी वह असमर्थ हो चुका था। यही नहीं भूख प्यास व कई सुविधाओं से महरूम होने के बाद बच्चों की सेहत भी बिगडने लगी थी। चारों बच्चों के भविष्य की सोंच ने असहाय पिता को मानों पागल सा बना दिया था। अंततरू पिता ने अपने सपनों को अपने से दूर करने की ठान ली। कलेजे पर पत्थर रखकर इस मंगलवार को उसने एक बड़ा फैसला लिया और सभी बच्चों को लखनपुर महिला बाल विकास सुपरवाईजर के साथ मिलकर बाल कल्याण समिति के माध्यम से मातृछाया के हवाले कर दिया। मातृछाया में आते ही बिमार बच्चों का पहले तो उपचार किया गया और अब सभी बच्चे मां व पिता की ममता से महरूम होकर भी मातृछाया के तले अपने आने वाले भविष्य को गढने की तैयारी कर रहे हैं।