अमृत दूध से मौत के बाद आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को बनाया मिल्क टेस्टर
कलेक्टर अन्य अधिकारी भी चखेंगे पहले दूध को
रायपुर {देश दीपक गुप्ता}
छत्तीसगढ़ में अमृत दूध योजना के तहत बच्चो को पिलाए गए दूध से हुई बच्चो की मौत के बाद शासन सजगता बरतते हुए आंगनबाडी कार्यकर्ताओं व जिले के कलेक्टर सहित महिला बाल विकास के अधिकारियों व कर्मचारियों को अमृत दूध बच्चो को पिलाने से पहले खुद टेस्ट करने का फरमान जारी किया है,,मतलब अगर सीधे लहजे में कहा जाये तो अब इस दूध को पीने से अगर टेस्ट करने वाला बच गया तब ही बच्चो को पिलाया जाएगा, बहर हाल सरकार का यह फरमान बच्चो की मौत के मामले में मरहम के तौर पर तो अच्छा प्रतीत हो रहा है लेकिन कल अगर इस दूध को टेस्ट करने वाले अधिकारीयो की मौत हो गई तो क्या होगा..? तब इस जख्म पर सरकार कौन सा मरहम इस्तेमाल करेगी..?
यह है मंत्रालय का आदेश
आंगनबाड़ी केन्द्रों में मुख्यमंत्री अमृत योजना के तहत बच्चों को मीठा दूध देने के पहले उनका विश्वास बढ़ाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता दूध की गुणवत्ता और स्वाद को खुद चखकर देखेंगी। दूध की गुणवत्ता सही पाये जाने पर ही बच्चों को मीठा सुगंधित दूध पिलाया जाएगा। जिला कलेक्टर एवं अन्य अधिकारी भी आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से वितरित मीठे सुगंधित दूध को स्वयं चखकर दूध की गुणवत्ता और स्वाद को परखेंगे। इस संबंध में महिला एवं बाल विकास विभाग ने यहां मंत्रालय (महानदी भवन) से प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों, जिला कार्यक्रम अधिकारियों और जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को परिपत्र जारी कर दिया है।
विभाग के सचिव श्री सोनमणि बोरा ने परिपत्र में कहा है कि मुख्यमंत्री अमृत योजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों के तीन से छह वर्ष के बच्चों को सप्ताह में एक दिन सोमवार को मीठे सुगंधित दूध (100 मिलीग्राम प्रति बच्चा) का वितरण आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा अपने समक्ष किया जाए। दूध का पैकेट खुलने के बाद यदि दूध बचता है, तो बचे हुए दूध को तुरंत अन्य बच्चों को आवश्यकता अथवा क्षमता के अनुसार अनिवार्यतः वितरित कर दिया जाए। यहां इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि बच्चों को उनकी क्षमता और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर ही अतिरिक्त दूध दिया जाए। उदाहरण के रूप में यदि माह के प्रथम सोमवार को किसी आंगनबाड़ी केन्द्र में 27 बच्चे (तीन से छह वर्ष) उपस्थित हैं, तो दूध के तीन पैकेट खोले जाएं। फिर 27 बच्चों को 100 मिली प्रति बच्चे के मान से 2700 मिली दूध का वितरण करने के बाद शेष बचे 300 मिली दूध को उपस्थित बच्चों में मांग और आवश्यकता के अनुसार वितरित कर दिया जाए।
परिपत्र के अनुसार जिन जिलों में इस योजना के लिए जिला स्तरीय समिति के गठन के बाद बैठक का आयोजन न किया हो, वहां तत्काल बैठक आयोजित की जाए और समिति गठन का आदेश एवं कार्यवाही विवरण महिला एवं बाल विकास विभाग को तत्काल प्रेेषित किया जाए। समय-समय पर आयोजित विभिन्न बैठकों एवं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी मुख्यमंत्री अमृत योजना के क्रियान्वयन तथा दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के संबंध में जारी निर्देश के अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित किए जाएं। जिला कलेक्टर एवं अन्य अधिकारी नियमित रूप से आंगनबाड़ी केन्द्रों और संबंधित अन्य योजनाओं के पर्यवेक्षण और अनुश्रवण के दौरान बच्चों के पालकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिनों आदि से योजना के संचालन के संबंध में जानकारी प्राप्त करें।