J&K Assembly Election 2024, Kashmiri Pandit, Jammu Kashmir Assembly Election, Assembly Election : जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव होने हैं। ऐसे मे कश्मीरी पंडितों ने बड़ा फैसला लिया है। कश्मीरी पंडित समुदाय के नेताओं ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की। जिसमें आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर चर्चा की गई। इस बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कश्मीरी पंडित राज्य में धारा 370 हटने के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में भाग नहीं लेंगे।
यह निर्णय पंडित समुदाय की लंबे समय से चली आ रही नाराजगी और उनके नरसंहार को मान्यता न देने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। बैठक में कश्मीरी पंडित समुदाय के बड़े नेताओं और प्रतिनिधियों ने भाग लिया। चर्चा का मुख्य फोकस इस बात पर था कि चुनावों में भाग लेना उनके समुदाय की नैतिक और राजनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है, जो कि उनके नरसंहार की मान्यता की अनदेखी करता है और उनकी मातृभूमि से जबरन पलायन का परिणाम है।
वकील टीटो गंजू की टिप्पणी:
बैठक में वकील टीटो गंजू ने कहा कि कश्मीरी पंडित दशकों से निर्वासित समुदाय रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ताशाही सरकार और राजनीतिक दल कश्मीरी पंडितों के पलायन और पीड़ा को चुनावों के दौरान चर्चा के बिंदु के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनके वास्तविक मुद्दों को नकारते हैं। गंजू ने कहा जब न्याय की बात आती है तो हमें चुप्पी का सामना करना पड़ता है। इन चुनावों में भाग लेकर हम उसी सिस्टम की मदद करेंगे जो हमें नकारता रहता है। यह चुनाव हमारे लिए नहीं है। हमारे नरसंहार की मान्यता, सम्मान के साथ मातृभूमि में वापसी की सुविधा और हमारे अधिकारों की बहाली जरुरी है
राजनीतिक संदेश और बहिष्कार की आवश्यकता:
टीटो गंजू ने बैठक में इस बात पर जोर दिया कि चुनावों से दूर रहना राजनीतिक प्रतिष्ठान को एक स्पष्ट संदेश देगा कि कश्मीरी पंडितों की शिकायतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और उन्हें केवल राजनीतिक खेल का एक हिस्सा नहीं माना जा सकता। पनुन कश्मीर के अध्यक्ष अजय चुरंगू ने भी बैठक में अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा, “कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और जबरन विस्थापन को संबोधित किए बिना चुनाव आयोजित करके, सिस्टम हमारे उन्मूलन को मिटाना चाहता है।”
भविष्य की दिशा:
चुरंगू ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल एक राजनीतिक फैसला नहीं है बल्कि मौजूदा हालात को देखते हुए उठाया गया है। उन्होंने कहा यह चुनावी सिस्टम लोकतांत्रिक ताने-बाने में हमारे शामिल होने के बारे में नहीं है। यदि हम चुनावों में भाग लेते हैं, तो हम खुद को इस सिस्टम में धकेलने के लिए भागीदार होंगे। बैठक में निर्णय लिया गया कि कश्मीरी पंडित समुदाय आगामी चुनावों में भाग लेने से परहेज करेगा। जब तक उनके नरसंहार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती।
इस प्रकार कश्मीरी पंडित समुदाय ने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लेकर अपने अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह निर्णय न केवल उनकी राजनीतिक पहचान को सशक्त बनाने का प्रयास है, बल्कि उनके संघर्ष और पीड़ा को सही मायने में मान्यता दिलाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।