India Politics Explainer : विपक्ष का आरक्षण दांव, Rahul Gandhi के लेटरल एंट्री से क्या चारों खाने चित्त हुई मोदी सरकार! आखिर क्यों BJP से अलग NDA सहयोगी दल के विचार

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PM Modi, Bharat Bandh, Rahul Gandhi, Lateral Entry, UPSC Recruitment, India Politics Explainer : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के माध्यम से लेटरल एंट्री के तहत 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए जारी अधिसूचना पर रोक लगा दी है। यह कदम तब उठाया गया जब लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री को ‘राष्ट्र विरोधी कदम’ बताते हुए आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया से अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आरक्षण के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है।

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उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी UPSC के बजाय RSS के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं। इसके अलावा, समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी आंदोलन की चेतावनी दी थी और एनडीए के सहयोगी दल जदयू और लोजपा भी इस फैसले के खिलाफ थीं। केवल तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने इस कदम का समर्थन किया।

राहुल गांधी का आरोप और राजनीतिक पृष्ठभूमि

राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व को और कमजोर कर रही है और ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। उनका कहना था कि यह यूपीएससी की तैयारी करने वाले प्रतिभाशाली युवाओं के हक पर डाका डालने और सामाजिक न्याय की परिकल्पना को चोट पहुंचाने जैसा है। राहुल गांधी का यह आरोप चुनावी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, भारतीय संविधान में अनुच्छेद 16(4) के तहत यह प्रावधान है कि अगर किसी पिछड़े वर्ग का सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो सरकार उस वर्ग को आरक्षण देने के उपाय कर सकती है। राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लोकसभा चुनावों में भी उठाया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भाजपा पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के बाद संवैधानिक संशोधन करके आरक्षण को समाप्त करने की कोशिश करेगी। इस मुद्दे ने यूपीए गठबंधन को 239 सीटें दिलाईं जबकि भाजपा 272 सीटों के मुकाबले 240 सीटों पर सिमट कर रह गई।

भाजपा और आरक्षण का मुद्दा

दिल्ली यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि बताते हैं कि भाजपा की एक बड़ी कमजोरी यह है कि चुनावों के दौरान विपक्ष आरक्षण के मुद्दे पर उसे घेर लेता है। भाजपा के नेता कभी-कभी ऐसे बयान दे देते हैं जो आरक्षण के मुद्दे पर पार्टी को डिफेंसिव मोड में ला देते हैं। विपक्ष इस मुद्दे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है और भाजपा को अगड़ों और कारोबारियों की पार्टी के रूप में पेश करता है। आगामी चुनावों में भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव भाजपा को आरक्षण के मुद्दे पर घेर सकते हैं।

सरकारी नौकरशाही में वंचितों का प्रतिनिधित्व

केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय विदेश सेवा (IFS) में भर्ती संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के नियमों के अनुसार की जाती है। मौजूदा नियमों के अनुसार, यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में एससी को 15%, एसटी को 7.5% और ओबीसी को 27% आरक्षण मिलता है। सरकार ने बताया कि पिछले 5 साल में आरक्षित और पिछड़ा वर्ग कैटेगरी से 1,195 अभ्यर्थी IAS, IPS और IFS चुने गए हैं।

विशेष रूप से, 2018 में ओबीसी से 54 IAS, 40 IPS और 40 IFS अधिकारी बने थे। एससी कोटे से 29 IAS, 23 IPS और 16 IFS भर्ती हुए थे। वहीं, एसटी कैटेगरी के 14 IAS, 9 IPS और 8 IFS अधिकारी चुने गए थे। 2019 में 103 IAS, 75 IPS और 53 IFS अधिकारी चुने गए। 2020 में 99 IAS, 74 IPS और 50 IFS अधिकारी चुने गए। 2021 में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों से संबंधित 97 IAS, 99 IPS और 54 IFS अधिकारी नियुक्त किए गए। 2022 में इन श्रेणियों के तहत 100 IAS, 94 IPS और 64 IFS अफसर चुने गए।

लेटरल एंट्री क्या है?

लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों पर भर्ती की जाती है। इस प्रक्रिया के तहत, निजी क्षेत्र के व्यवसायों में समकक्ष स्तर पर कार्यरत न्यूनतम 15 साल के अनुभव वाले व्यक्ति सरकारी अफसरशाही में शामिल हो सकते हैं। इन लोगों की न्यूनतम आयु 45 वर्ष होनी चाहिए और किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए।

सहयोगी दलों और विपक्ष की प्रतिक्रियाएँ

लेटरल एंट्री के फैसले पर विभिन्न दलों और नेताओं की प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। बीजेपी के सहयोगी दल लोजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सरकारी नियुक्तियों के लिए किसी भी पहल की कड़ी आलोचना की थी, जो आरक्षण के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। हालांकि, जब सरकार ने भर्ती वापस ले ली है, तो चिराग पासवान ने मोदी की तारीफ की है।

वहीं, जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही सरकार से आरक्षित सीटों को भरने की बात करती आई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार लेटरल एंट्री के विज्ञापन का दुरुपयोग करेगी और इससे राहुल गांधी पिछड़ों के चैंपियन बन जाएंगे। केसी त्यागी का कहना है कि सरकार अपने फैसलों से विपक्ष को मुद्दा दे रही है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लेटरल एंट्री को देश के खिलाफ बड़ी साजिश करार दिया और कहा कि यदि सरकार इसे वापस नहीं लेती है तो 2 अक्टूबर से एक नया आंदोलन शुरू किया जाएगा।

मोदी सरकार का रुख और भविष्य की राजनीति

लेटरल एंट्री भर्ती पर रोक लगाने का मोदी सरकार का फैसला विपक्ष की आलोचनाओं और राजनीतिक दबाव के चलते उठाया गया कदम प्रतीत होता है। इस फैसले से यह सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार अपने सहयोगी दलों और विपक्ष के दबाव के सामने झुक गई है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व के मुद्दे को कैसे संभाला है और भविष्य में इस तरह के विवादास्पद मुद्दों पर क्या रुख अपनाएगी।

आखिरकार, लेटरल एंट्री भर्ती के मुद्दे ने न केवल राजनीतिक घमासान को जन्म दिया है बल्कि यह भी दिखाया है कि भारतीय राजनीति में आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दे कितने संवेदनशील और महत्वपूर्ण हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, मोदी सरकार का अगला कदम और विपक्ष की रणनीतियाँ आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।