Success Story, IAS Success Story, UPSC Success Story : कुछ लोग होते हैं जो अपने माता-पिता की परंपराओं को छोड़कर नई शुरुआत करते हैं और अपनी अलग पहचान बनाते हैं। ऐसी ही एक प्रेरक कहानी है IAS श्रुतंजय की। श्रुतंजय ने अपने लिए बिलकुल अलग रास्ता चुना और उस रास्ते पर चलकर सफलता प्राप्त की।
कृष्णमूर्ति नारायणन फिल्म इंडस्ट्री में चिन्नी जयंत के नाम से मशहूर हैं। चिन्नी 80 के दशक में तमिल सिनेमा के लोकप्रिय सितारों में से एक रहे हैं। उनके बेटे श्रुतंजय ने अपने करियर के लिए एक पूरी तरह अलग दिशा चुनी।
अपने पिता के प्रभाव में आकर थिएटर में किया काम
बचपन में, श्रुतंजय को थिएटर और नाटकों में अभिनय करने का शौक था। अपने पिता के प्रभाव में आकर उन्होंने थिएटर में काम किया और वहां उन्हें सराहना भी मिली। लेकिन अभिनय के क्षेत्र में करियर बनाने की बजाय श्रुतंजय ने अपनी पढ़ाई और एक नई दिशा पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया।
एक स्टार्टअप में काम करना शुरू
श्रुतंजय ने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गिंडी से अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की और उसके बाद अशोका विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एक स्टार्टअप में काम करना शुरू किया। इस बीच उन्हें महसूस हुआ कि उनकी असली रुचि सिविल सेवाओं में है, इसलिए उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवाओं की तैयारी करने का निर्णय लिया।
हर दिन 4-5 घंटे सेल्फ स्टडी
शुरुआत में, श्रुतंजय ने काम के साथ-साथ हर दिन 4-5 घंटे सेल्फ स्टडी की। इसके लिए उन्होंने अपने ऑफिस में नाइट शिफ्ट का चुनाव किया ताकि दिन के समय में अध्ययन कर सकें। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन श्रुतंजय ने इसे अपने दृढ़ संकल्प और समर्पण से पूरा किया। धीरे-धीरे, उन्होंने अपनी पढ़ाई की अवधि को बढ़ाकर 10-12 घंटे प्रतिदिन कर दिया।
यूपीएससी परीक्षा पास
श्रुतंजय की मेहनत और लगन रंग लाई और 2015 में, उन्होंने ऑल इंडिया रैंक (AIR) 75 के साथ यूपीएससी परीक्षा पास की। यह उनकी सफलता की शुरुआत थी, और दूसरे प्रयास में उन्होंने आईएएस अधिकारी बनने का सपना पूरा किया।
उनके पिता, कृष्णमूर्ति नारायणन, इस उपलब्धि पर गर्व महसूस करते हैं। वे कहते हैं, “श्रुतंजय ने अपनी मेहनत और समर्पण से यह मुकाम हासिल किया है। हमें उनकी सफलता पर गर्व है।”
आज श्रुतंजय तमिलनाडु के त्रिपुर जिले में सब कलेक्टर के पद पर तैनात हैं। उनकी यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि जब दृढ़ संकल्प और मेहनत की बात होती है, तो पारिवारिक पेशे रास्ते की बाधा नहीं बनती। श्रुतंजय की कहानी हमें यह सिखाती है कि अपने सपनों की दिशा में आत्मनिर्भरता और समर्पण के साथ आगे बढ़ना संभव है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।