Fatafat desk: आज हम आपको मकर संक्रांति पर्व की सांस्कृतिक विरासत के बारे में बताने जा रहे है। खास करके इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा के बारे में बहुत कम लोगो को पता हैं कि पतंग क्यो उड़ाया जाता हैं? पंडित मन्जोज शुक्ला बताते हैं कि
धार्मिक पक्ष का वर्णन तो तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में किया है कि भगवान राम ने सबसे पहले पतंग उड़ाया था।
पतंग उड़ाने का वैज्ञानिक महत्त्व
हम सभी जानते है कि हमारी त्वचा सूर्य के प्रकाश से विटामिन D बनाती है और हमारे शरीर में कैल्शियम की मात्रा सप्रमाण रखने के लिये विटामिन-डी की मात्रा सप्रमाण रहना आवश्यक है।
1) मानव शरीर के पास 1 वर्ष तक चले उतना विटामिन-डी संग्रह करने की और समयांतर उपयोग में लेने की क्षमता है।
2) मानव शरीर में सालभर उपयोग में आ सके उतना विटामिन-डी सिर्फ 3 दिनों के सूर्यप्रकाश में से बनाने की क्षमता है।
3) विटामिन-डी बनाने के लिए जनवरी से मार्च का सूर्यप्रकाश सर्वोत्तम रहता है।
4) कैल्शियम की मात्रा दूध से भी ज्यादा तिल में रहती है। प्रति 100 ग्राम में दूध में 125 mg जबकि टिल में 975mg होती है।
यही वैज्ञानिक तथ्यों को अगर हमारे सांस्कृतिक विरासत से जोड़कर देखें तो हमारे ऋषि-मुनियों (जो उस जमाने के वैज्ञानिक ही थे वे) यही विज्ञान और साथ साथ मनो-दैहिक विज्ञान के भी बहुत अच्छे ज्ञाता थे वे ये जानते थे कि अगर किसी को 3 दिन लगातार धूप में रहने/बैठने के लिए कहेंगे तो कोई तैयार नही होंगे और बच्चे तो हरगिज नही तो उसके उपाय हेतु इन्होंने साल भर में ऋतुओं के अनुकूल अलग अलग त्योहार व्रत पर्व बनाकर प्रसाद के रुप मे औषधी युक्त खाद्य पदार्थ भी दिये, जैसे सुर्य देव का प्रसाद, संक्रान्ति पर्व, तिल + गुड़ = कैल्शियम, (मैग्नीशियम, आयरन + जिंक + सेलेनियम) ह्रदयरोग के लिए फायदेमंद और ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने के लिए उपयोगी। सेलेनियम – कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने में मदद करता है।
“पूर्व संक्रांत-संक्रांत-वासी संक्रांत” ऐसे 3 दिनों के लिये पतंग उड़ाने के बहाने भी लोग ज्यादा से ज्यादा समय के लिए सूर्य प्रकाश में रहें, तिल के लड्डू, टिक्कियां या चिकी खाये और सालभर के विटामिन-डी को स्टोर कर लें।
इसी तरह
मिश्री + नारियल + मोदक = ज्ञान – बुद्धिवर्धक
(गणपती बप्पा का प्रसाद)
गुड़ + चना + मूंगफली = शक्तिवर्धक
(श्री हनुमानजी का प्रसाद)
गोंद के लड्डू या राजगिरा के लड्डू
गुड-देसी घी आटे का लड्डू, मूंगफली की चिक्की या भीगे हुए चने, चना, पापकाँन, मक्का के फूले, ज्वार के फूले। यदि हम ऐसे कई पदार्थों के मिश्रण केमीकल कंम्पोजिशन को देखे तो, वे शरीर के लिए फायदेमंद होंगे।
आजकल हमें केवल त्यौहारों को मनाने के लिए सिखाया जाता है, इसके पीछे का विज्ञान, उस वातावरण में उसी वातावरण का ही भोजन क्यों खाते हैं ? यह सिखाया नहीं जा रहा है।
हमारे वैज्ञानिक दृष्टा पूर्वज Born Vita, PediaSure, काम्प्लेन तो नहीं पीते थे ना ?
तो क्या वह कमजोर, शक्तिहीन थे ?
अरे, हमारा एक हिन्दू योद्धा अकेले ही लड़ता था 50-50 दुश्मनों से।
उपरोक्त की तरह आप हर तीज त्योहार को देख लीजिए कि उस मौसम और ऋतु के अनुसार ही देवी देवताओं में भोग लगाकर स्वयं परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करते थे।
आधुनिकता व पाश्चात्य देशों के आयोजनों की चकाचौंध से अंधे हो रहे हमारे वर्तमान पीढ़ी को हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त गौरवशाली विरासत के बारे में अवगत कराना अतिआवश्यक है।
~ पण्डित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर