नई दिल्ली. नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान अदालत ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCRCR) की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि 15 साल की मुस्लिम लड़की पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकती है और वह शादी वैध है.
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में पीठ ने यह नोटिस जारी किया. इस पर सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषर मेहता ने कहा कि 14, 15, और 16 साल की लड़कियां शादी कर रही हैं. क्या पर्सनल लॉ का बचाव हो सकता है? क्या आप अपराध के लिए किसी रिवाज या पर्सनल वॉ की पैरवी कर सकते हैं? हम इस सवाल पर हैं कि क्या मौजूदा आपराधिक कानून और पॉक्सो अधिनियम के सामने शादी वैध होगी.
इस दौरान सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाने का आग्रह किया. इस पर पीठ ने कहा कि अगर फैसले पर रोक लगा दी गई, तो लड़की को उसकी इच्छा के खिलाफ मां-बाप का कहना मानना होगा.
सीजेआई ने कहा कि लड़की के परिजन उसके मामा के साथ उसकी शादी कराना चाहते हैं. क्या होगा, जब हम इस पर स्टे लगा देंगे तो लड़की को उनकी बात माननी होगी. अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव से इस मामले पर सहयोग करने को कहा.
याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अंतरिम आदेश दिया कि इस मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर नहीं लें.
दरअसल पंजाब एवं हरियाणा और दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल दिए अलग-अलग फैसलों में कहा था कि मुस्लिम कानून में माहवारी के बाद शादी वैध है इसलिए, लड़की अपनी मर्जी से शादी कर सकती हैं. इस पर परिवार विरोध नहीं कर सकता. ऐसे मामलों में पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धाराएं नहीं लग सकती.