जांजगीर-चांपा. धान की पलारी को जलाने से वातावरण को दूषित होता है. वही खेतों की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है. इस धान की पलारी का उपयोग उषा वर्मा ने आर्ट के रूप मे किया है. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की एक खास कला है पैरा आर्ट. जिसमें धान के आवरण यानी खोल से पेंटिंग बनाई जाती है. उस खोल को पैरा (पराली) कहते हैं. जांजगीर-चांपा जिले के अफरीद गांव की रहने वाली उषा वर्मा इस कला को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं. उन्होंने इस धान के पैरा (पराली) से एक माह की मेहनत के बाद दर्जनों महापुरुषों एवं भगवान के कई तस्वीरें बनाई है, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया है.
उषा अब इस कला को आगे बढ़ाना चाहती हैं. उसके लिए वे यह कला नि:शुल्क सिखाने पर विचार कर रही हैं. वे कहती हैं कि कोरोना काल के बाद इस कला को सिखाने के लिए नि:शुल्क कार्यशालाएं आयोजित कर रही थी और इसकी शुरुआत स्कूलों से ही करेंगी. उषा वर्मा ग्रहणी है, साथ में इस काम के लिए उनके परिवार वाले उनका हौसला अफजाई करते हैं. इस कला की शुरुआत उन्होंने 1 साल पहले किया था. पैरा आर्ट की ट्रेनिंग उन्होंने रायगढ़ से ली थी. उनके पति एवं उनके बच्चे भी उनकी इस कला में हाथ बढ़ाते हैं.
वे बताती हैं कि पैरा आर्ट को बनाने में कार्ड बोर्ड, काला कपड़ा, बटर पेपर, ब्लेड की सहायता से सीधा और प्रेस किया हुआ पैरा और ग्लू का उपयोग किया जाता है. उन्होंने अभी रायगढ़ एवं जांजगीर जिले में कई अवसरों पर एग्जिबिशन के रूप में इस आर्ट को लोगों तक पहुंचाया है. वहीं इसकी कीमत 500 से लेकर 1000 रुपए तक है. जिससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो जाती है.