फ़टाफ़ट डेस्क। स्पेशल सेल की गिरफ्त में आए मोहम्मद अशरफ की मदद से त्योहारों के दौरान दिल्ली में बड़े पैमाने पर तबाही फैलाने की तैयारी थी। इसके लिए टिफिन बॉक्स का इस्तेमाल कर आईईडी के जरिए विस्फोट करने की योजना थी। इसके लिए उसे सीमापार से आदेश मिला था।
स्पेशल सेल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दो महीने पहले कश्मीर में एक अभियान के दौरान दिल्ली में स्लीपर सेल के बारे में जानकारी मिली थी। इसके बाद से टीम टेक्निकल सर्विलांस के जरिए लगातार उसकी तलाश में जुटी थी। पुलिस को अशरफ का नाम मालूम चला तो आठ अक्तूबर को षड्यंत्र रचने की धारा में एफआईआर दर्ज कर ली गई और सूचना मिलने पर कार्रवाई की गई।
आरोपी अशरफ ने पूछताछ में बताया कि आतंकी हमले की तैयारी के लिए हथियार और धन की व्यवस्था कर दी गई थी। उसने आईएसआई के कहने पर हथियार आदि ले लिए थे, जिसे समय आने पर बताए गए शख्स को देना था। इसके बाद भीड़-भाड़ वाली जगहों पर टिफिन बॉक्स में आईईडी विस्फोट करने की योजना थी। इनके निशाने पर दिल्ली सहित देश के कई प्रमुख शहर थे।
आईएसआई का स्लीपर सेल मोहम्मद अशरफ भारत में तांत्रिक बनकर छिपा हुआ था। वह इलाके की महिलाओं और बच्चों को मंत्र से झाड़-फूंककर ठीक करने का दावा करता था। इस दौरान वह देश के अलग-अलग हिस्सों में रहकर आतंकी घटनाओं की साजिश रचता रहा। हालांकि उसके विषय में आसपास के लोगों को कभी भनक तक नहीं लगी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि माता-पिता के देहांत होने के बाद अशरफ आईएसआई के संपर्क में आ गया। आईएसआई ने उसे छह महीने का प्रशिक्षण दिया।
आईएसआई के सहयोग से वह 2005 में बांग्लादेश से सिलीगुड़ी होते हुए भारत आया था। उसने बिहार में फर्जी पहचान पत्र बनवाया और फिर घूमने के बाद गाजियाबाद के वैशाली में अपना ठिकाना बना लिया। स्थानीय पहचान पत्र हासिल करने के लिए उसने वैशाली में एक युवती से विवाह किया, लेकिन छह महीने बाद ही उसे छोड़ दिया।
इस दौरान उसने सभी जरूरी दस्तावेज जैसे आधार, वोटर आईडी कार्ड और पासपोर्ट भी बनवा लिया। अशरफ कुछ समय तक सराय रोहिल्ला के शास्त्री नगर इलाके में एक मकान में किराए पर रहा। यहीं पर उसने अली अहमद नूरी के नाम से पहचान पत्र भी बनवाया था।
अशरफ बिहार से अजमेर पहुंचा, जहां उसने स्थानीय मौलवी से दोस्ती कर ली। बाद में वह मौलवी के साथ दिल्ली आया। पुरानी दिल्ली इलाके में मौलवी के रिश्तेदार की फैक्टरी थी, जिसमें अशरफ दैनिक वेतन भोगी के तौर पर नमाज पढ़ाने लगा। इस दौरान अशरफ ने मौलवी के अन्य रिश्तेदारों का भरोसा जीता। वह उनके वेस्टर्न यूनियन मनी की आईडी के जरिये आईएसआई से रुपये मंगाता था।
अशरफ छह-सात महीने के लिए शास्त्रीनगर स्थित नसीम अहमद के मकान में किराये पर रहा था। नसीम के बेटे ने बताया कि करीब 14-15 साल पहले अशरफ आया था। इस दौरान उसने नसीम से दोस्ती कर ली। फिर मजबूरी का हवाला देकर राशन कार्ड बनवाने के लिए मदद मांगी। इसके आधार पर उसने अन्य कागजात भी बनवा लिए।
पिछले 15 वर्षों में भारत में रहने के दौरान अशरफ लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा। इस दौरान वह दिल्ली में दो स्थानों के अलावा, जम्मू, उधमपुर, अजमेर और कोलकाता में भी रहता था। इस दौरान वह आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में आईएसआई की लगातार मदद करता रहा।
अशरफ ने 2015 में भारतीय पासपोर्ट बनवा लिया था। पुलिस ने यह पासपोर्ट तुर्कमान गेट स्थित एक मकान से बरामद किया है। इस पासपोर्ट पर वह एक बार सउदी अरब और एक बार थाईलैंड भी गया था। इसके अलावा उसने नेपाल की भी यात्रा की थी। पुलिस के अनुसार वह धार्मिक गुरु बनकर यात्रा करता था।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि अशरफ के आईएसआई हैंडलर का नाम नासिर है। हाल के दिनों में वह सोशल नेटवर्किंग साइट, व्हाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर और सिग्नल एप के जरिए नासिर के संपर्क में था। पुलिस को दो दर्जन से अधिक फेसबुक आईडी मिली हैं, जिसकी जांच की जा रही है।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि नासिर उसे हवाला के जरिए धन भेजता था। इसमें पुरानी दिल्ली के कुछ प्रमुख हवाला कारोबारी भी शामिल हैं। पुलिस को कुछ बैंक खाते भी मिले हैं, जिसकी जांच की जा रही है।
पुलिस ने मंगलवार को अशरफ को कोर्ट में पेश किया। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि अशरफ से पूछताछ कर स्लीपर सेल की अन्य कड़ियों के बारे में जानकारी हासिल करनी है। इसके बाद कोर्ट ने अशरफ को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया।