रायपुर. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) और संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों और किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी आंदोलन के क्रम में 27 दिसम्बर को पूरे देश में थालियां बजाकर किसान अपने और सबके मन की बात प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को सुनाएंगे और इन काले कानूनों को वापस लेने की मांग करेंगे. छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के घटक संगठन भी प्रदेश में इस आह्वान का पालन करेंगे. उल्लेखनीय है कि इसी दिन रेडियो और टीवी में मोदी के ‘मन की बात’ का भी प्रसारण होगा.
एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, संजय पराते, आलोक शुक्ला, आनंद मिश्रा, नंद कश्यप आदि ने कहा है कि दिल्ली की ओर जाने वाले सभी राजमार्गों पर किसानों ने कब्जा कर लिया है और किसान विरोधी कानूनों की वापसी न होने तक वहां जमे रहने का उनका अटूट संकल्प है. इस आंदोलन में अभी तक 40 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं. इसके बावजूद सरकार इन कॉर्पोरेटपरस्त असंवैधानिक कानूनों को लागू करना चाहती हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट भी किसान संगठनों के साथ वार्ता के जरिये किसी सहमति तक न पहुंचने तक इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने का सुझाव दे चुका है.
किसान आंदोलन के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार किसान संगठनों के साथ वार्ता का केवल दिखावा कर रही है और सरकार के जिन प्रस्तावों को पहले ठुकराया जा चुका है, घुमा-फिराकर उसे ही पेश कर रही है. आंदोलनकारी संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि चूंकि ये कानून किसानों के लिए डेथ वारंट है, इसलिए इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश नहीं है और इसे वापस लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इन कानूनों में संशोधनों से इसका कॉर्पोरेटपरस्त चरित्र नहीं बदलने वाला है.
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन ने कहा है कि 27 दिसम्बर को गांव-गांव में थालियां बजाकर किसानों के कथित विकास के संघी गिरोह के दावों की पोल खोलेंगे, अपनी भूख और बदहाली की व्यथा को पूरी दुनिया के सामने रखेंगे और इन कृषि और किसान विरोधी काले कानूनों की वापसी के साथ सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने और किसानों को कर्जमुक्त करने की मांग करेंगे.