बस्तर – बस्तर संभाग के नारायणपुर और बीजापुर जिले के कई जगहों पर अब भी मेगालिथिक कल्चर देखा जाता है। बस्तर के कई गांव में 3000 साल पुरानी मेगलिथिक कल्चर की छाप देखने को मिलती हैं, यह ऐसा इलाका है जहां अभी भी विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाया है। देखा जाए तो बस्तर संभाग छत्तीसगढ़ का एक ऐसा संभाग है जो पूर्णतः ऐतिहासिक एवं रहस्यमई तथ्यों से परिपूर्ण है, यहां आदिम संस्कृति का अभी भी उदाहरण देखने को मिलता है। कई रहस्यमई तथ्य यहां पर मौजूद है जिनकी खोज निरंतर जारी रहती है। मेगालिथिक कल्चर भी ऐसी ही एक प्राचीन संस्कृति है, ये प्रथा लगभग 3000 साल पुरानी है, जो कि विश्व के कई सारे हिस्सो में दिखाई देती है।
मेगालिथीक कल्चर क्या है?
मेगलिथिक कला ऐसी कला है जिसमें बड़े पत्थरों का उपयोग किया जाता है। जिसे बस्तर में मृत स्तंभ के रूप में उपयोग किया जाता है।
हलांकि वर्तमान में जो मृतक स्तंभ दिखाई देते हैं वे इससे पृथक है क्यूंकि इसमें ना ही कोई नाम होते हैं और ना ही कोई आकृति केवल बड़े – बड़े पत्थर गाड़ दिए जाते है। बस्तर अंचल में बीजापुर जिले के गांगुर गांव, पोटाम पारा में भी कतारबद्ध मृतक स्तंभ देखने को मिलते है। ये स्तंभ मुरिया जनजाति के (घर के) मुखिया के होते हैं। ग्रामीणों ने बताया की पोटामपारा के एक ही स्थान पर कतारबद्ध तरीके से घर के बुजुर्गो के अंतिम संस्कार स्थल पर ये पत्थर रखे जाते है, ये पत्थर दूर के किसी पहाड़ से लाए जाते है।कब्र में सव को दफनाने के 2, 3 दिन बाद गांव के सभी लोग वहां एकत्रित होते है तथा एक पत्थर ऊर्ध्व गाड़ दिया जाता है।