धान को लेकर बड़ी सियासत.. सीएम को दो पूर्व सीएम ने ऐसे घेरा .. मानों फंस गई सरकार

अम्बिकापुर। नेता कहीं पहुंचे और राजनीति ना करे.. तो फिर शायद राज करने की नीति पर सवाल खडा होने शुरु हो जाएगा.. औऱ शायद यही वजह है कि आज प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के घर उनकी माता जी की तेरहवी मे भी नेता राजनीति करने से बाज नहीं आए। ऐसे मे चाहे पूर्व सीएम हो या फिर वर्तमान सीएम किसी ने प्रदेश के मौजूदा धान खरीदी मामले के यज्ञ मे अपनी बयानबाजी वाली आहूति देने से गुरेज नहीं किया।

अपने घोषणा पत्र मे किसानो से प्रति एकड 15 क्विंटल औऱ दाना दाना धान खरीदी का वादा करने वाली भूपेश सरकार अब किसानो की ना केवल धान खरीदी करने से मना कर रही है। बल्कि जो लोग टोकन कटा चुके हैं उनको भी खदेडा जा रहा है शांति पूर्ण आंदोलन मे लाठी चलाई जा रही है गिरफ्तारी की जा रही है। छत्तीसगढ के लगभग सभी जिलो मे किसान कही सोसायटी के सामने कहीं कलेक्टर के सामने बैठे है। ये निर्मम सरकार किसानो को भी नहीं बक्स रही है। किसानो पर एक साल मे बहुत अत्याचार हुआ है। किसानो द्वारा विरोध मे धान जलाया जा रहा है। 25 रूपए प्रति क्विंटल के बदले 18 सौ रूपए प्रति क्विंटल मे धान खरीदी की जा रही है। दो साल का बोनस भी नहीं दिया जा रहा है। एक तरह से 14 महीनो मे जो किसानो की हालत बनी हैं। 15 साल मे धान खरीदी मे कभी नहीं बनी है.. और हम किसानो के साथ हर आंदोलन मे खडे है औऱ आने वाले दिनो मे विधानसभा मे इस मामले को पूरी ताकत से उठाएगें। ये बयान अम्बिकापुर पहुंचे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डां रमन सिंह ने दिया है।

15 साल तक छ्त्तीसगढ मे चाउर वाले बाबा बने रहे डां रमन सिंह के इस सियासी बयानबाजी ये जाहिर करने के लिए काफी है कि वो अब प्रदेश के विपक्षी सियासत का हिस्सा हैं.. और प्रदेश की मौजूदा सरकार को कोसना उनकी राजनीति के लिए जरुरी है.. तो फिर डां रमन के इस बयान पर भला प्रदेश के सीएम क्यो चुप रहते.. वो भी श्रद्दांजलि देने के दौरान मीडिया के सवालो पर यूं ही नही रुके और नहले पर दहला मारने का भरसक प्रयास किया.. मतलब उन्होने डां रमन सिंह के बयान पर सीधी प्रतिक्रिया ना देकर ये कह कर संतोष जाहिर कर लिया कि डा रमन सिंह पहले भी कोचिंयो की पैरवी करते थे और आज भी कर रहे हैं।

“रमन सिंह को किसानो की चिंता कभी नहीं रही है। वो कोचिया लोगों की चिंता करते थे और अभी वही कर रहे हैं” – भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

धान खरीदी मे किसानो का आंदोलन, पुलिस की बर्बरता और किसानो की समस्या किसी से छिपी नहीं है। ऐसे मे आपने प्रदेश के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री के बयानो का तो सुन लिया। ऐसे मे धान खरीदी की तारिख ना बढाने और इस साल धान खरीदी मे आई समस्या पर पूर्व के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की मंशा भी जान लीजिए।

छत्तीसगढ़ के किसानो के साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ। परेशान रहे, बहुत हलाकान रहे और अंत में अचानक खरीदी बंद कर दी गई। कुछ लोग टोकन लेकर घूम रहे हैं, कुछ लोग इसलिए नहीं दे पाए क्योंकि वहां बारदाना नहीं पहुंचा। अब इस सरकार को कमसे कम इतना तो करना चाहिए की जिनके टोकन हैं, उनका तो धान ले लें। टोकन तो रजिस्ट्रेशन के बाद, पटवारी के सत्यापन के बाद जारी किया जाता है। वो तो फ़र्ज़ी हो नहीं सकता और उसी तरह से जो धान केंद्र में पहुँच गया है वो भी फ़र्ज़ी नहीं हो सकता। तो दोनों धान खरीदना चाहिए। उसके लिए कुछ दिन की अवधि बढ़ाना चाहिए। ये राज्य सरकार की सबसे ज्यादा बदनामी है.. और सबसे ज्यादा असंतोष ये धान खरीदी को ही हुआ है. लाठीचार्ज और भी चिंताजनक और निंदाजनक बात है, जो अपना अधिकार मांग रहा है। उसको आप लाठिया मारो, बस्तर संभाग में आपने देखा सर फुट गए लोगों के.. बेहरहमी से उनको पीटा गया। सीधे आदिवासी लोगों को।

अजित जोगी, पूर्व मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ सरकार बनने के बाद के तीनो मुख्यमंत्री ने धान खरीदी मे अपनी अपनी ज्ञान और सियासी समझ से अपनी बात रखी। ऐसे मे पिछली सरकार मे प्रदेश के कृषि मंत्री रहे और भाजपा के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने भी प्रदेश मे किसानो की हालत बदतर बताई है.. और तो और उन्होने मौजूदा कांग्रेस सरकार पर बजट की राशि भी खर्च ना कर पाने का सियासी आरोप लगा दिया है।

वास्तव मे धान खरीदी के पहले और अंतिम तिथी के बाद भी प्रदेश भर मे किसान या तो धान खरीदी की प्रकिया से असंतुष्ट है या फिर इस बात के लिए नाराज है कि टोकन कटने के भी बाद भी सरकारी सिस्टम ने उनका धान नहीं खरीदा.. बहरहाल ऐसे मे प्रदेश के दिग्गज नेताओ के बयान को समझने की जिम्मेदारी किसान औऱ उन आम लोगो की है। जिन्होने प्रदेश सरकार की घोषणा पत्र से खुश होकर सरकार को झार कर वोट किया था।