अम्बिकापुर. वैसे तो सरगुजा जिले मे प्रकृति ने कई नायाब अजूबे दिए हैं. प्रकृति की ही देन है, कि जिले मे कहीं पानी उलटा बह रहा है तो कही धरती हिल रही है. ऐसे मे प्रकृति को टक्कर देने इंसान भला पीछे कैसे रह सकता था. लिहाजा इंसान ने एक ऐसा बांध बना दिया कि बांध का पानी नहर मे जाने की जगह नहर का पानी बांध मे आ रहा है. वैसे जिस गांव मे ये बांध बना है वहां के लोगो को इससे 1 परसेंट भी फायदा नही हो रहा है. पर बांध बनाकर फायदा कमा चुका ठेकेदार बोरिया बिस्तर समेट कर वापस दूसरे काम की तलाश मे हैं. और जिम्मेदार अधिकारी ठेकेदार और विभाग की जगहंसाई के लिहाज इस बांध की बडी तकनीकी खामी को मानने से ही गुरेज कर रहे हैं.
प्रकृति अजूबा करे तो वो स्थान पर्यटन स्थल के रुप मे विकसित हो सकता है. लेकिन इंसान अगर अजूबा निर्माण करें तो फिर चर्चा होना लाजमी है. इन दिनो ऐसी ही चर्चा का विषय बना हुआ है जिले के उदयपुर ब्लाक का एक बांध.. दरअसल उदयपुर के सानीबर्रा गांव मे अटेम नदी पर बनाया गया डायवर्सन बांध पहले तो स्थान चयन और अपनी खराब गुणवत्ता के कारण ग्रामीणो के आक्रोश का केन्द्र बना था. लेकिन अब जब ये लगभग बनकर तैयार हो गया है. तो ये जगहंसाई का केन्द्र बना हुआ है. दरअसल गुणवत्ता विहीन बांध मे मानक के अनुसार निर्माण सामग्री का उपयोग नही किया गया है. जिससे बांध के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा है. इतना ही नही इस बांध के माध्यम से सिंचाई के लिए जो नहर बनाई गई है. उसका मुहाना बांध के ऊपरी हिस्से मे बना दिया गया है. जिससे बांध का पानी नहर मे ना जाकर खेतो का पानी नहर द्वारा बांध मे आ रहा है. जिसको लेकर गांव के सरपंच -रोहित सिंह टेकाम का मानना है कि बगैर गांव वालो की सहमति के बना ये डेम गलत जगह मे बना दिया है. जिससे नहर के फेस को मजबूरन ऊपरी को हिस्से मे बनाना पडा है..
अब आप सोंच रहे होगें कि बांध का पानी नहर से खेतो तक पहुंचना चाहिए. तो खेतो का पानी नहर से वापस बांध मे कैसे आ रहा है. दरअसल बांध से खेतो की ओर जाने वाले नहर की नाली को पाईप लाईन के माध्यम से 15 से 20 फिट नीचे से बनाया गया है.. तो आप समझ सकते हैं कि नहर से पानी कभी खेत मे आ ही नही सकता, बल्कि खेतो का पानी नहर मे ही जाएगा.. खैर इस अजूबे बांध के और पहलुओ पर बात करते हैं तो गांव के लोग बताते है कि इस वर्ष बारिश के बाद बांध मे लबालब पानी भर गया था. लेकिन जैसे ही इसकी सूचना ठेकेदार को मिली.. उसने आकर बांध के गेट को खोल दिया. जिससे बांध का पानी अटेम नदी मे आगे बह गया. गौरतलब है कि सरगुजा मे सूखे के हालात है ऐसे मे किसानो के हित मे बांध का पानी अगर बांध मे रहता तो कमसे कम क्षेत्र का जलस्तर तो बना रहता है. खैर एक स्थानिय युवक बब्लू ने बताया कि भरे डेम का पानी ठेकेदार ने इसलिए खोल दिय़ा, क्योकि उनको संभावना थी कि कहीं डेम बह ना जाए. जिले के उदयपुर क्षेत्र मे किसानो के हितैषी बनने वाली सरकार और अधिकारियो ने कई बांध स्वीकृत कराए लेकिन ना ही किसी बांध मे पानी है और ना ही कभी किसानो को बांध का लाभ मिल पाया है. और तो और जिन किसानों का खेत बांध के कैचमेंट एरिया मे आया है. उन्हे आजतक मुआवजा भी नही मिला है.
नहर का पानी उलटा बह रहा है. ठेकेदार लबालब पानी से भरे डायवर्सन बांध का पानी, बांध बह जाने के डर से खोल देता है. और लोगो को मुआवजा भी नही मिला. फिर भी जब इन सब सवालो के साथ निर्माण ऐजेंसी जल संसाधन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी ईई एन सी सिंह के पास पहुंचे. तो उनका जवाब हैरान कर देगा. दरअसल जिले मे सूखे के हालात हैं और साहब कह रहे हैं कि बरसात मे बांध मे पानी नही रखा जाता है. वही नहर से उलटी गंगा बहने के सवाल पर साहब ने कहा कि ऐसा नही होता है..
हद है.. किसानो के हक मे डांका डालने के मामले मे विभाग के अधिकारी ठेकेदार पर कार्यवाही करने की बजाय उनके फेवर मे दीवार की तरह खडे हैं. मानो इतनी बडी लापरवाही मे उनका भी खुला समर्थन है.. बहरहाल सानिबर्रा गांव मे बने अटेम डायवर्सन की उलटी गंगा का मामला किसानो के हित और सरकार की संवेदनशीलता के लिहाज से छोटा नहीं है.. पर देखना है कि इस बडे भ्रष्टाचार और अनियमिता के मामले मे शासन प्रशासन कोई एक्सन लेता है. या फिर वो भी जल संसाधन विभाग के अधिकारियो की तरह ठेकेदार को सेफ करने का प्रयास करता है.