Shaktipeeth : इस मंदिर से जुड़े हैं कई चमत्कारी तथ्य, औरंगज़ेब ने भी मानी थी हार, पूरी होती है इच्छा, 51 शक्तिपीठों में है बेहद ख़ास, जानें धार्मिक महत्व

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Kada Dham, Kada Dham story, Kada Dham Shaktipeeth, Temple : उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के सिराथू के पास स्थित कड़ा धाम शीतला माता का मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जिसे देशभर में विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है। यह मंदिर इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है, और यहाँ हर वर्ष आषाढ़ मास की सप्तमी-अष्टमी को विशेष मेला लगता है। इस मेले में पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों श्रद्धालु मां शीतला के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं।

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शीतलाधाम का धार्मिक महत्व

कड़ा धाम की शीतला माता को पुत्र देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि जो भक्त मंदिर के शीतल कुंड को जल, दूध, फल और मेवे से भरवाता है, उसे उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। पूर्वांचल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मां शीतला का विशेष स्थान है।

कट्टर मुस्लिम शासक औरंगजेब ने भी मान ली थी हार

इतिहास में ऐसा वर्णन है की कट्टर मुस्लिम शासक औरंगजेब ने भी मां शीतला की शक्ति के आगे हार मान ली थी। उसका मानना था कि मां शीतला की शक्ति अपार है, इसलिए उसने कड़ा धाम में माता के मंदिर के लिए भूमि उपलब्ध कराई। इस भूमि पर बाद में एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। आज, कौशाम्बी के देवी दरबार में श्रद्धालु नारियल, बताशा, चुनरी, ध्वज पताका, आभूषण और वस्त्र भेंट कर अपनी मन्नतें पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। मां शीतला की भक्ति से जुड़े इस स्थल पर आस्था और श्रद्धा का विशेष स्थान है।

पुरानी मान्यता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कड़ा धाम का ऐतिहासिक महत्व भी बहुत बड़ा है। पुराणों के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के अपमान को सहन न कर पाने के कारण यज्ञ कुण्ड में आत्महत्या कर ली, तो भगवान शिव उनके शव को लेकर ब्रह्मा और विष्णु के पास गए। भगवान शिव के क्रोध और दुख को देखकर देवताओं और प्राणियों ने भयभीत होकर भगवान विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई।

भगवान विष्णु ने अपनी सुदर्शन चक्र से सती के शव को 51 टुकड़ों में काट दिया और इन टुकड़ों को विभिन्न स्थानों पर गिरा दिया। कड़ा धाम वह स्थान है जहां देवी सती का हाथ गिरा था। इस घटना के आधार पर यहाँ एक शक्तिपीठ की स्थापना की गई, जिसे कड़ा धाम के नाम से जाना जाता है।

द्वापर युग में कड़ा धाम

मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों में से एक युधिष्ठिर ने अपने वनवास के दौरान कड़ा धाम का दर्शन किया। उन्होंने यहाँ गंगा के किनारे शीतलादेवी का मंदिर बनवाया और महाकालेश्वर शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में मां शीतला देवी का मंदिर एक भव्य स्वरूप में प्रकट हो चुका है। इस मंदिर में माता की मूर्ति गर्दभ पर बैठी हुई है। चैत्र माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को देवी शीतला की पूजा करने से बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है। यह मंदिर 1000 ईस्वी में बनाया गया था।

संत मलुखदास का योगदान

कड़ा धाम प्रसिद्ध संत मलुखदास (1631 – 1739 ईस्वी) का जन्म स्थान भी है। संत मलुखदास एक प्रमुख संत और गुरु तेग बहादुर के अनुयायी थे। उन्होंने देवी कड़ा की पूजा की और यहाँ एक आश्रम और समाधि का निर्माण किया। संत मलुखदास के विचार और शिक्षाएँ धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

यात्रा की जानकारी

कड़ा धाम शीतला माता का मंदिर रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सिराथू, जो कि कड़ा धाम का मुख्य रेलवे स्टेशन है, यहाँ से मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर है। इसके अलावा, यूपी के कई शहरों से बस द्वारा सीधे कड़ा धाम पहुँचा जा सकता है। बस द्वारा सैनी पहुंचकर, जो कि कड़ा धाम से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, टैक्सी या ऑटो से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। प्रयागराज, जो कि कड़ा धाम का नजदीकी हवाई अड्डा है, यहाँ से कड़ा धाम की दूरी लगभग 70 किलोमीटर है। प्रयागराज से हवाई यात्रा करने के बाद, सड़क मार्ग द्वारा कड़ा धाम पहुंचा जा सकता है।

ठहरने की सुविधाएँ

मंदिर के आसपास ठहरने के लिए कई लॉज उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, सैनी और सिराथू रेलवे स्टेशनों के पास भी कई होटल और धर्मशालाएँ हैं, जहाँ श्रद्धालु आराम से ठहर सकते हैं। इन सुविधाओं के माध्यम से, तीर्थयात्री अपनी यात्रा को अधिक आरामदायक और सुखद बना सकते हैं।