अध्यात्म डेस्क. एक बार भगवान शिव काफी लंबे समय के लिए ध्यान में चले गए थे। इस दौरान उनके शरीर ने हिलना डुलना बंद कर दिया था, श्वास प्रक्रिया भी थम सी गई थी। ऐसा लग रहा था मानों उनके अंदर प्राण नहीं हैं। परंतु समाधि मे लीन शिव की आंखों से बहते हुए अश्रु उनके परमानंद में होने को दर्शा रहे थे।
पौराणिक मान्यताओं में शिव ही शून्य हैं
ऐसी मान्यता है कि उनके नेत्र से जल की जो बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। इसी वजह से इस वृक्ष के फलों से निकलने वाले बीज को रुद्र का अक्ष अर्थात रुद्राक्ष कहा गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव ही शून्य का गर्भ हैं, जिसमें से समस्त सृष्टि जन्म लेती है। इसके बाद चक्र की भांति सब कुछ उसी में समाहित हो जाता है। अर्थात कुछ नहीं से सब कुछ है और अंत में सब कुछ, कुछ नहीं में समा जाता है। एक मीडिया रिपोर्ट में अपनी पुस्तक “ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” में स्टीफन हॉकिन्स कहते हैं – मुझे लगता है कि इस पूरी सृष्टि की रचना शून्य से हुई है। अर्थात शून्य से ही सबका निर्माण हुआ और वापस वह शून्य में चला जाता है। विज्ञान की धारा में थ्योरी ऑफ एक्सपेंशन और बिग क्रंच का जो विकास हुआ। वह भी पौराणिक मान्यताओं को स्पष्ट करती है। आज भारतीय धर्म ग्रंथों की कई बातें आधुनिक विज्ञान की दिशा में हो रही नई खोजों से मेल खा रही हैं।
भगवान शिव और आध्यात्म
शिव अंनत हैं भौतिकता के परे हैं। भौतिकता की परख करने के लिए हमारे पास ज्ञानेंद्रियां हैं, तर्क हैं, मापन की इकाइयां हैं वगैरह-वगैरह। वहीं शून्य को ज्ञानेंद्रियों के बल पर नहीं जाना जा सकता। आधुनिक विज्ञान तर्क और मापन की इकाइयों पर सत्य को ढूंढ रहा है। हालांकि, मात्र तर्कशक्ति के बल पर परमात्मा की रचना के निकट पहुंचना बहुत कठिन है। जीवन और जगत की सच्चाई को जानने का यह बेहद ही सीमित नजरिया है। यह सृष्टि बेहद ही विशाल और असीम संभावनाओं से भरी है। इसे मात्र तर्क शक्ति और परिमेय के बल पर नहीं जाना जा सकता। तर्क सेे हम भौतिक अस्तित्व की व्याख्या कर सकते हैं। वहीं भौतिकता से आगे सब कुछ शून्य हो जाता है। शून्य की व्याख्या समीकरणों के आधार पर नहीं की जा सकती है।
शिव ही सृष्टि का मौलिक गुण हैं
शिव शाश्वत हैं। प्रकाश का होना निर्भर है। प्रकाश स्त्रोत पर टिका होता है। इसी वजह से प्रकाश शाश्वत कभी नहीं हो सकता। इसका एक न एक दिन अंत होता है। शिव अंधकार हैं। इस कारण शिव शाश्वत हैं। शिव कैवल्य हैं। शिव असीम संभावनाएं हैं। शिव में लीन होकर ही सब कुछ जाना जा सकता है। शिव का जब भी नाम आता है, तो रुद्राक्ष का संबंध उनसे जुड़ता है।
आदियोगी शिव और रुद्राक्ष का क्या संबंध हैं?
शिव को आदियोगी कहा गया है। इन्हीं से योग की समस्त कलाओं ने जन्म लिया। आज जिस योग और साधना के बारे में हम जानते हैं। उन सबकी शुरुआत शिव यानी आदियोगी से हुई। एक बड़ी ही प्रचलित पौराणिक कहानी है। भगवान शिव काफी लंबे समय के लिए ध्यान में चले गए थे। इस दौरान उनके शरीर ने हिलना डुलना बंद कर दिया था, श्वास प्रक्रिया भी थम सी गई थी। ऐसा लग रहा था मानो उनके अंदर प्राण नहीं हैं। परंतु समाधि में लीन शिव की आंखों से बहते हुए अश्रु उनके परमानन्द में होने को दर्शा रहे थे।
ऐसी मान्यता है कि उनके नेत्र से जल की जो बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। इसी वजह से इस वृक्ष के फलों से निकलने वाले बीज को रुद्र का अक्ष अर्थात रुद्राक्ष कहा गया। यही एक बड़ा कारण है, जिसके चलते रुद्राक्ष को आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
जानिए रुद्राक्ष के फायदे के बारे में
ब्रह्मांड में हर एक भौतिक वस्तु की अपनी एक आभा (Aura) होती है। कई बार आपने गौर किया होगा कि किसी व्यक्ति से मिलने के बाद हमें काफी अच्छा महसूस होता है। हम जब भी किसी सिद्ध पुरुष के निकट जाते हैं। उस दौरान हमारा मन काफी शांत हो जाता है। यह उस सिद्ध व्यक्ति की आभा का ही कमाल है कि उस व्यक्ति के निकट जाते ही हमें दिव्य अनुभूति होती है। (Rudraksh)
मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष (rudraksh) हमारी इसी आभा को साफ करने का काम करता है। आपने कभी गौर किया है कि जब हम किसी नई जगह पर जाते हैं। वहां हमें नींद नहीं आती। वहीं दूसरी ओर अपने घर पर जहां हम लंबे समय से रहते आ रहे हैं। वहां हमारी नींद या बाकी दूसरी क्रियाएं काफी आसानी से हो जाती हैं। आखिर ऐसा होता क्यों है?
इसके पीछे का विज्ञान (science) यह है कि आप जहां पर रुकते हैं। वहां आपका शरीर अपनी ऊर्जा की फ्रिक्वेंसी छोड़ता है। ऐसे में जिस जगह पर आप रहते हैं, सोते हैं वहां आपकी ऊर्जा का एक प्रवाह बन जाता है। इस कारण उस स्थान पर रहने, सोने या दूसरी क्रियाओं को करने में काफी सहजता महसूस होती है। अगर आप उस जगह पर न भी हों। इस स्थिति में भी फॉरेन्सिक वैज्ञानिक (forensic science) थर्मल इमेजिंग (Thermal Imaging) के जरिए बता देंगे कि कुछ समय पहले आप वहां पर थे।
वहीं जब हम किसी नई जगह पर जाते हैं। वहां पर ऊर्जा का दूसरा प्रवाह होता है। ऐसे में व्यक्ति जब नई ऊर्जा के संपर्क में आता है। ऐसे में उसकी ऊर्जा (आभा) को नुकसान पहुंचता है। इसका सबसे बड़ा कारण बाहरी शक्तियों के प्रभाव में हमारी ऊर्जा का कमजोर पड़ना है। इसी वजह से साधु संत, जो नियमित सफर करते हैं। वो रुद्राक्ष को धारण करते हैं। मान्यता कहती है कि रुद्राक्ष एक कोकून की भांति व्यक्ति की ऊर्जा और आभा को बाहरी शक्तियों से संरक्षण प्रदान करता है। इससे शरीर को निश्चित स्थिरता मिलती है।
कई बार लोग काला जादू या टोने टोटके की सहायता से नकारात्मक ऊर्जा के जरिए किसी दूसरे व्यक्ति को क्षति पहुंचाने की कोशिश करते हैं। अथर्ववेद में तंत्र और रहस्यमयी विद्याओं का वर्णन है। ऐसे में रुद्राक्ष इस तरह की नकारात्मक शक्तियों से बचने के लिए व्यक्ति को कवच प्रदान करता है। एक मीडिया रिपोर्ट में सद्गुरु जग्गी वासुदेव अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि – रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति का रक्तचाप संतुलित हो जाता है। इससे व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य सुधरने लगता है।
शिव में लीन होने का मार्ग है रुद्राक्ष
रुद्राक्ष का संबंध आध्यात्म और शिव से जुड़ा है। ऐसे में इसको धारण करने के बाद व्यक्ति के आत्मज्ञान का रास्ता खुल जाता है। रुद्राक्ष पहनने से व्यक्ति से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और उसका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है। इससे व्यक्ति के भीतर एक आध्यात्मिक तलाश शुरू होती है और यही आत्मज्ञान की तलाश की पहली सीढ़ी है।