छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आते ही लोगो के दिमाग में नक्सलियों के नाम जरूर गूंजते होंगे लेकिन बस्तर भगवान शंकर के जयकारे से भी गूंजता हैं, भगवान शंकर के डमरू से भी गूंजता है, भगवान शंकर के धाम से महकता हैं बस्तर। बस्तर भगवान शंकर का धाम भी कहा जाता है। बस्तर में भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं और इन मंदिरों में प्राकृतिक शिवलिंग भी है। मान्यता हैं कि 14 वर्ष के वनवास में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य से होकर ही तेलंगाना के भद्राचलम पहुंचे थे और इस दौरान उन्होंने कई जगह शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की। यही वजह है कि बस्तर को सरकार राम वनगमन पथ से भी जोड़ रही हैं।
बस्तर के गुप्तेश्वर महादेव
बस्तर और ओड़िशा के कोरापुट जिले की सीमा पर रामगिरी पर्वत श्रृंखला में भगवान गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। शबरी नदी को पार कर बस्तरवासी गुप्तेश्वर महादेव का दर्शन करते हैं।जगदलपुर शहर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर स्थित हैं। मंदिर तक पहुँचने का सफर बेहद रोमांचक भरा होता है। घने जंगलों से होते हुए शबरी नदी पर बने चटाई के पुल को पार कर मंदिर तक श्रद्धालु पँहुचते हैं। 20 किमी घने जंगलों को पार कर उफनती नदी पर बनाये गए चटाई के अस्थाई पुल से पैदल पार करना होता है। ओडिशा के गुप्तेश्वर पहुंचने पर गुफा में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग पड़ता है।
कटीली चट्टान नुकीले पत्थर पार कर पँहुचते हैं गुप्तेश्वर मंदिर
महाशिवरात्रि पर बस्तर से हजारों श्रद्धालु भगवान शिव का दर्शन करने ओड़ीशा के गुप्तेश्वर पहुंचते है। ऐसा भी कहा जाता है कि हर साल शिवलिंग की हाइट बढ़ती जा रही है।मान्यता है कि दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।श्रद्धालुओं का कहना है कि बड़े बड़े चट्टानों पर बनी बांस की चटाई से शबरी नदी पार करना उनके लिए रोमांच से भरा है। नदी की चट्टानें कटीली और धारदार होती है, गिरने का भी डर बना रहता है लेकिन भक्त भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ते हैं।करीब डेढ़ किमी पैदल चलने पर गुप्तेश्वर की पहाड़ी का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। गुप्तेश्वर महादेव का दर्शन करने के लिए 200 से अधिक सीढियां चढ़कर मंदिर पहुंचा जाता है। पहाड़ी के अंदर गुफा में विशालकाय गुप्तेश्वर महादेव का शिवलिंग है। गुप्तेश्वर महादेव का दर्शन करने बस्तर के रास्ते सिर्फ शिवरात्रि और गर्मी में ही जाया जा सकता है।
बस्तर वन विभाग की तरफ से नदी पार कराने के लिए हर साल चटाई की पुल बनाई जाती है। इस साल बल्लियों और बांस की मदद से 300 मीटर चटाई का पुल तैयार करवाया गया है, ताकि श्रद्धालु आसानी से नदी पार कर गुप्तेश्वर मंदिर दर्शन के लिए जा सकें।रेंजर संजय रावतिया बताते हैं कि मंदिर तक जाने के लिये रास्ता बनाने का काम वन विभाग करता है और खर्च भी विभाग उठाता है।
ग्रामीणों की मदद से हर साल बांस के जरिए चटाई की पुल बनाई जाती है। ओडिशा के साथ-साथ बस्तर वासी भी गुप्तेश्वर को किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं मानते। हजारों वर्षों पुरानी शिवलिंग के दर्शन को बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ महाशिवरात्रि पर उमड़ती है।
बस्तर से गुप्तेश्वर मंदिर का दर्शन के लिए जाते वक्त चटाई पुल पर हुए कई हादसे में लोगों की जान भी गई है। स्थानीय निवासी कहते हैं कि ओडिशा सरकार चाहे तो दोनों ही राज्य मिलकर उफनती शबरी नदी पर पुल का निर्माण कर सकते हैं। लंबे समय से पुल निर्माण के लिए दोनों सरकारों में चर्चा जारी है लेकिन अब तक शबरी नदी पर पुल का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सका है। फिलहाल महाशिवरात्रि के समय वन विभाग की तरफ से हर साल नदी पर मजबूत चटाई का पुल बनाने की कोशिश जरूर की जाती है।
गुप्तेश्वर महादेव के मंदिर में महाशिवरात्रि का मेला
हर साल शिवरात्रि पर यहां चार दिनों का मेला लगता है। शबरी नदी के दोनों ओर मेले के लिए दुकानें सजाई जाती हैं। मंदिर में भी जबरदस्त तैयारियां रहती हैं। पुजारियों ने बताया कि महाशिवरात्रि पर ओडिशा, छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से हर करीब डेढ़ लाख भक्त दर्शन करने गुप्तेश्वर आते हैं। लोगों में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कई कहानियां हैं। कहा जाता है कि शिवजी ने भस्मासुर से बचने के लिए ब्राह्मण के रूप में शरण लिया था। मुख्य पुजारी सदाशिव मिश्रा ने बताया कि 1365 में भगवान भोलेनाथ लोक लोचन (दुनिया देखने) के लिए आए थे। इस दौरान एक शिकारी ने उनको देख लिया। तब से मंदिर प्रसिद्ध हो गई। 12 साल पहले मंदिर के चारों ओर वीरान जंगल हुआ करता था और मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढियां भी नहीं थीं। जैसे-जैसे मंदिर का प्रचार प्रसार हुआ, वैसे ही भक्तों की संख्या भी हर साल बढ़ने लगी।