अध्यात्म डेस्क. नवरात्रि के दूसरे दिन मां के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्माचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी (संस्कृत: ब्रह्मचारिणी) का अर्थ है एक समर्पित महिला छात्रा जो अपने गुरु के साथ अन्य छात्रों के साथ एक आश्रम में रहती है। वह महादेवी के नवदुर्गा रूपों का दूसरा पहलू है और नवरात्रि ( नवदुर्गा की नौ दिव्य रातें ) के दूसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। (Second day of navratri)
भक्त भगवान शिव के साथ मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं । देवी को कलश में चमेली के फूल, चावल और चंदन चढ़ाया जाता है। दूध, दही और शहद से भी भगवान का अभिषेक किया जाता है। आरती और मंत्र जाप किया जाता है, और उसे प्रसाद चढ़ाया जाता है।
ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र क्या है?
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र (Maa Brahmacharini Mantra) या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू. ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
ब्रह्मचारिणी का पूजा कैसे करें?
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें। इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।
ब्रह्मचारिणी माता का दूसरा नाम क्या है?
तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।
ब्रह्मचारिणी की पूजा क्यों होती है?
मां ब्रह्मचारिणी पूजन का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को हमेशा अपने काम में सफलता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी दुनिया में ऊर्जा प्रवाहित करती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह आप से ही संभव थी।. आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। (navratri 2023)