Mysterious Shiv Temple : स्वयं समुद्र करते हैं शिवलिंग का अभिषेक, दिन में दो बार हो जाता है गायब, जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं और इससे जुड़े चमत्कार

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Miracle Shiv Temple, Shiv Temple Benefit, Mysterious Shiv Temple, Sthameshwar Shiv Temple : वडोदरा जिले से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित जंबूसर तहसील के कावी-कंबोई गांव में एक अनोखा शिवमंदिर है, जिसे स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर समुद्र के कैम्बे तट पर स्थित है और इसकी विशेषता यह है कि यहां शिवलिंग का अभिषेक स्वयं समुद्र देवता करते हैं।

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मंदिर की विशेषता

स्तंभेश्वर मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जो दिन में दो बार ज्वार-भाटा के कारण जलमग्न हो जाता है। सुबह और शाम के समय जब समुद्र में ज्वार उठता है तो पूरा मंदिर और शिवलिंग जलमग्न हो जाते हैं। ज्वार के समय, शिवलिंग पूरी तरह से पानी में डूब जाता है और भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। ज्वार के उतरने के बाद मंदिर और शिवलिंग फिर से प्रकट हो जाते हैं और श्रद्धालु पूजा अर्चना कर सकते हैं।

इतिहास और खोज

स्तंभेश्वर मंदिर की खोज लगभग 150 साल पहले की गई थी। मंदिर में स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और 2 फुट व्यास का है। यह प्राचीन मंदिर अरब सागर के सुंदर दृश्य के सामने स्थित है। मंदिर की स्थति और इसकी अद्वितीयता को देखते हुए, यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष पर्चे बांटे जाते हैं। जिनमें ज्वार-भाटा का समय लिखा होता है ताकि श्रद्धालु सही समय पर पहुंच सकें और किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।

पौराणिक कथा

गुजरात के स्तंभेश्वर मंदिर के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। शिवपुराण के अनुसार, ताड़कासुर नामक असुर ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था। जब शिव ने उसकी तपस्या से प्रभावित होकर उसे वरदान दिया, तो ताड़कासुर ने वरदान में मांगा कि उसे केवल शिवजी का पुत्र ही मार सके। शिव ने उसकी इस मांग को मान लिया। ताड़कासुर को वरदान मिलते ही उसने धरती पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया और देवताओं और ऋषियों को आतंकित कर दिया।

देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से ताड़कासुर के वध की प्रार्थना की। शिव की शक्ति से शिवपुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिनके पास छह मस्तिष्क, चार आंखें और बारह हाथ थे। कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया, लेकिन जब उन्हें पता चला कि ताड़कासुर भगवान शिव का भक्त था, तो वह दुखी हो गए। भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी कि ताड़कासुर के वधस्थल पर शिवालय बनवाएं, जिससे उनका मन शांत हो जाएगा।

कार्तिकेय ने भगवान विष्णु की सलाह मानी और महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयं शिवशंभु (भगवान शंकर) विराजते हैं और समुद्र देवता स्वयं उनका जलाभिषेक करते हैं। महिसागर नदी का सागर से संगम स्थल होने के कारण यह स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आध्यात्मिक महत्व

स्तंभेश्वर मंदिर न केवल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण विशेष है, बल्कि इसके धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह स्थल भगवान शिव की विशेष उपस्थिति और समुद्र देवता की पूजा का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां आने वाले भक्त न केवल शिवलिंग के दर्शन कर पाते हैं, बल्कि समुद्र की शक्ति और प्राकृतिक चक्र के अद्भुत मेल का अनुभव भी करते हैं।

इस प्रकार, गुजरात का स्तंभेश्वर मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक अनोखा स्थल है, जहां समुद्र देवता और भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति का अद्वितीय मिलन होता है।