छत्तीसगढ़ : मां बम्लेश्वरी देवी शक्तिपीठ, मां बगुला मुखी अपने जागृत रुप में पहाड़ी पर विराजमान

शक्तिपीठ दो हजार साल से भी ज्यादा समय से दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। राजनांदगांव से 36 किमी दूरी पर स्थित डोंगरगढ़ नगरी धार्मिक विश्वास और श्रध्दा का प्रतीक है। डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरुपा मां बम्लेश्वरी देवी का विश्व विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। यहां मां बम्लेश्वरी के दो विख्यात मंदिर हैं। डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर 1600 फीट की ऊंचाई पर पहला मंदिर बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से पहचाना जाता है। यहां माता के दर्शन के लिए करीब 1000 सीढ़ियां चढ़नी होती है। बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिध्द है। मां बम्लेश्वरी के मंदिर में हर साल नवरात्र के समय दो बार भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें लाखों की संख्या में दर्शनार्थी हिस्सा लेते हैं। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते कई पाबंदियों के साथ माता के दर्शन हो रहे हैं। मंदिर समिति ने इस बार ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था भी की है।

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अब से 2200 साल पहले डोंगरगढ़ के प्राचीन नाम कामख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन हुआ करता था, वे नि:संतान थे। पुत्ररत्न की कामना के लिए उन्होंने महिषमती पुरी (मप्र. में मंडला) में शिवजी और भगवती दुर्गाकी आराधना की। इसके बाद रानी को एक साल के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने नामकरण में पुत्र का नाम मदनसेन रखा गया। भगवान शिव और मां दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी और इसी भक्ति भाव से प्रेरित होकर कामख्या नगरी में मां बम्लेश्वरी (जगदम्बे महेश्वर) का मंदिर बनवाया गया। राजा मदनसेन एक प्रजा सेवक शासक थे। उनके पुत्र कामसेन जिनके नाम पर कामख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।

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कामकन्दला और माधवनल की प्रेमकथा भी डोंगरगढ़ की प्रसिद्धी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कामकन्दला राजा कामसेन के राजदरबार में नर्तकी थी, वहीं माधवनल एक निपुम संगीतज्ञ था। एक बार राजा के दरबार में कामकन्दला के नृत्य का आयोजन हुआ, लेकिन ताल व सुर बिगड़ने से माधवनल ने कामकन्दला के पैर की एक पायल में नग न होने व मृदंग बजाने वाले का एक अंगूठा नकली यानी मोम का होना जैसी गलती निकाली। इससे  राजा कामसेन बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी मोतियों की माला माधवनल को भेंट की। माधवनल ने सम्मान में राजा से प्राप्त मोतियों की माला कामकन्दला को भेंट कर दी। इससे राजा क्रोधित हो गए और माधवनल को राज्य से निकाल दिया। लेकिन माधवनल राज्य से बाहर न जाकर डोंगरगढ़ की पहाड़ियों की एक गुफा में छुप गया। इस घटना से कामकन्दला और माधवनल के बीच प्रेम बढ़ गया। दोनों छिपकर मिलने लगे।

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वहीं दूसरी ओर राजा कामसेन का पुत्र मदनादित्य भी कामकन्दला से प्रेम करने लगा। कामकन्दला भी डर के कारण प्रेम का नाटक करने लगी। लेकिन सच कुछ ही दिनों में बाहर आ गया और राजा पुत्र मदनादित्य ने कामकन्दला पर राजद्रोह का आरोप लगाकर बंदी बना लिया। माधवनल उज्जैन भाग गया, उसे को पकड़ने के लिए भी सिपाही भेजे। उज्जैन में उस समय विक्रमादित्य का शासन था। उन्होने माधवनल की मदद की। वे अपनी सेना के साथ कामख्या नगरी में आक्रमण करने पहुंच गए। कई दिनों के घनघोर युद्ध में विक्रमादित्य की जीत हुई। फिर विक्रमादित्य ने माधवनल और कामकन्दला की प्रेम परीक्षा लेने के लिए झूठी सूचना फैलाई कि युद्ध में माधवनल वीरगति को प्राप्त हुआ, तो कामकन्दला ने ताल में कूदकर प्राणोत्सर्ग किया, वह तालाब आज भी कामकन्दला के नाम से जाना जाता है। उधर कामकन्दला के आत्मोत्सर्ग से माधवनल-कामकन्दला के जीवन के साथ यह वरदान भी मांगा कि मां बगुला मुखी अपने जागृत रुप में पहाड़ी पर प्रतिष्ठित हों। तबसे मां बगुला मुखी-अपभ्रंश बमलाई देवी साक्षात् महाकाली के रुप में डोंगरगढ़ में प्रतिष्ठित हुई। 

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देश-दुनिया से आने वाले भक्तों के लिए यहां ठहरने की भी अच्छी व्यवस्था की गई है। श्री बम्लेश्वरी मंदिर समिति के माध्यम से संचालित धर्मशाला के साथ यहां निजी होटल्स भी उपलब्ध हैं।

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माता के मंदिर में कैसे पहुंचें

वायु मार्ग- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सबसे नजदीक का हवाई अड्डा है, जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद, बैगलूरु, विशाखापट्नम और चैन्नई से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग- हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर डोंगरगढ़ रेलवे जंक्शन है। सड़क मार्ग- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, राजनांदगांव से नियमित बस सेवा और टैक्सियां उपल्बध होती हैं।

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