(25 अक्टूबर 2020) – दशहरा विजयदशमी, आयुध-पूजा पर विशेष
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पूरे देश में विजयादशी के दिन रावण के पुतले को फूंकने की परंपरा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर इस साल कब मनाया जाएगा दशहरा और क्या शुभ मुहूर्त है।
शारदीय नवरात्रि चल रही है और हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा हो रही है। हालांकि अब मां के पूजा में महज कुछ ही दिन बचे हैं और दशहरा कल है। दशहरा (दशहरा २०२०) स्पष्ट पर अच्छाई की जीत का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। हिंदू पचांग के अनुसार, दशहरा दीवाली से ठीक २० दिन पहले हिन्दू मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। विजय दशमी का त्योहार इस साल रविवार, २५ अक्टूबर को मनाया जाएगा। पितृपक्ष के बाद अधिकमास लगने की वजह से नवरात्र, दशहरा और सभी एक महीने देर से आया है । १७ अक्टूबर से नवरात्रि का उद्घाटन हुआ और २५ अक्टूबर को रामनवी ०७ बजकर ४१ मिनट तक रहेगी उसके बाद पुरे दिन पूरे देश में दशहरे का त्योहार मनाया जाएगा।
नवरात्रि दशहरा हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। हर साल यह पर्व अश्वनी मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। पूरे देश में विजयादशी के दिन रावण के पुतले को फूंकने की परंपरा है।
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय दशमी या दशहरे के नाम से मनाया जाता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
शारदीय नवरात्रि के १०वें दिन और दीपावली से ठीक २० दिन पहले दशहरा आता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी या दशहरे का त्योहार मनाया जाता है. इस बार दशहरा २५ अक्टूबर २०२० को है. विजय मुहूर्त: २५ अक्टूबर २०२० को दोपहर ०१ बजकर ५७ मिनट से दोपहर ०२ बजकर ४२ मिनट तक।
इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
दशहरे का महत्त्व
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भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘स्वर्ण’ लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
विजय पर्व के रूप में दशहरा
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दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरे अर्थात विजय के लिए प्रस्थान का उत्सव का उत्सव आवश्यक भी है।
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रुधिर में वीरता का प्रादुर्भाव हो कारण से ही दशहरे का उत्सव मनाया जाता है। यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन
विजय-प्रस्थान करते थे।
इस पर्व को भगवती के ‘विजया’ नाम पर भी ‘विजयादशमी’ कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।
ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है। युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं (महत्त्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए। दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।
विजयादशमी के दिन भगवान श्री रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है।
दशहरे पर करने के कुछ विशेष उपाय।
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दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत ही शुभ होता है। माना जाता है कि इस दिन यह पक्षी दिखे तो आने वाला साल खुशहाल होता है।
दशहरा के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करें। अगर संभव हो तो इस दिन अपने घर में शमी के पेड़ लगाएं और नियमित दीप दिखाएं। मान्यता है कि दशहरा के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए शमी के पत्तों को सोने का बना दिया था। तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ियां मिल जाए तो उसे घर में लाकर कहीं सुरक्षित रख दें। इससे नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता है।
दशहरे के दिन लाल रंग के नए कपड़े या रुमाल से मां दुर्गा के चरणों को पोंछ कर इन्हें तिजोरी या अलमारी में रख दें। इससे घर में बरकत बनी रहती है।
आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
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ज्योतिर्विद पं० शशिकान्त पाण्डेय
9930421132