अध्यात्म डेस्क. पंडित धीरेंद्र शास्त्री महराज राम कथा के बीच अपना बचपन याद करते करते रो पड़े और बताया कि गरीबी के दिनों में वे और उनके परिवार वाले 5 दिन तक भोजन नही कर पाते थे। माँ के कहने पर भिक्षा मांगने जाते थे। उनकी माँ कहती थी कि भूखे रह ले लेकिन घर से मुस्कुराते हुए निकले। महराज ने बताए कि बरसात आती थी तो आफत आती थी, हनुमान जी साक्षी हैं हम पढ़ने का विचार किये, आज तक नही पढ़ पाए, आज तक भागवत नही पढ़ पाए। 9 साल की उम्र में वृंदावन जाने का विचार किया लेकिन किराया नही था। 10-12 घर जाके 500 रुपये उधार मांगे पर मिला नही। उधारी भी उसे दी जाती हैं जो अमीर हो, यह भय रहता हैं कि चुका नही पाया तो।
वृंदावन गए पर पढ़ नही पाए। गरीबी को करीब से देखा, सोचा था वृंदावन जाएंगे तो कर्मकांड, वेद, भागवत सीखेंगे, गंगा यमुना स्नान करेंगे, बांकेबिहारी के दर्शन करेंगे। धन्य हैं गुरुदेव, ऐसी कृपा करी उस वक़्त नही जा पाए अब वृंदावन में ही घर बनवा दिए। उस समय चले जाते तो भागवत सिख जाते और भागवत बोलते, आज जो भी बोल रहे बालाजी बोलवा रहे है। बस एक बात याद रखो “जग रूठ जाए पर राम न रूठे”