शीतला सप्तमी का त्योहारहिन्दू कैलेंडर के अनुसारचैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। वहीं कुछ जगह पर ये व्रत अष्टमी तिथि पर भी मनाया जाता है।मुख्य रूप से ये त्योहारउत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में मनाया जाता है। शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए इस त्योहार पर ठंडा खाना खाया जाता है। इस व्रत में एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है, अत: इसे बसौड़ा, बसियौरा व बसोरा भी कहते हैं।इस बार शीतला सप्तमी का व्रत 27 मार्च, बुधवार कोहै।
शीतला सप्तमी व्रत की विधि
व्रती (व्रत करने वाली महिलाएं) को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करना चाहिए। इसके बाद व्रत कासंकल्प लें। फिरविधि-विधान से शीतला माता की पूजा करें। इसके बाद एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं। शीतला स्तोत्र का पाठ करें।शीतला माता की कथा सुनें व जगराता करें। इस दिन व्रत करने वाले तथा उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी गर्म भोजन नहीं करना चाहिए।
शीतला सप्तमी का महत्व
शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है, उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते।इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है। इसीलिए इस व्रत को बसोरा भी कहते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता यानी सभी को एक दिन बासी भोजन ही करना पड़ता है।
शीतला सप्तमी की कथा इस प्रकार है-
किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।
शीतला सप्तमी 2019: माता को लगाएं ठंडी चीजों का भोग, पूरी होगी हर मनोकामना
हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी का बहुत महत्व है। हर साल यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इसके अगले दिन यानी अष्टमी को बासोड़ा या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
सप्तमी के दिन घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। इनमें हलवा, पूरी, दही बड़ा, पकौड़ी, पुए रबड़ी आदि बनाया जाता है। अगले दिन सुबह महिलाएं इन चीजों का भोग शीतला माता को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन शीतला माता समेत घर के सदस्य भी बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इसी वजह से इसे बासौड़ा पर्व भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना उचित नहीं होता है। यह सर्दियों का मौसम खत्म होने का संकेत होता है और इसे इस मौसम का अंतिम दिन माना जाता है। इस पूजा को करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और उनके आर्शीवाद से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, शीतला की फुंसियां, शीतला जनित दोष और नेत्रों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं
बुधवार का पंचांग
27 मार्च 2019 का पंचाग
गणेश गायत्री मंत्र :
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि
तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात ।।
।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
दिन (वार) – बुधवार के दिन तेल का मर्दन करने से
अर्थात तेल लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न
होती है धन लाभ मिलता है। बुधवार का दिन
विघ्नहर्ता गणेश का दिन हैं। इस दिन गणेशजी
की पूजा अर्चना से सभी मनोकामनाएं
पूरी होती हैं।
- विक्रम संवत् 2075
- शक संवत – 1940
- अयन – उत्तरायण
- ऋतु – बसंत ऋतु
- मास – चैत्र माह
- पक्ष – कृष्ण पक्ष
तिथि ()- सप्तमी 20:55 तदुपरांत
अष्टमी ।
तिथि का स्वामी – सप्तमी तिथि के
स्वामी सूर्यदेव जी है तथा
अष्टमी तिथि के स्वामी शिव है
सप्तमी तिथि के स्वामी भगवान सूर्य है।
सूर्य देव इस संसार प्रत्यक्ष देव है जो अपनी
किरणों, अपने प्रकाश से इस ब्रह्माण्ड को आलोकिक करते है।
कार्यों में सफलता, विद्द्या, तेज, मान-सम्मान की प्राप्ति
के लिए सप्तमी तिथि को सूर्य देव का पूजन अवश्य
ही किया जाना चाहिए। सप्तमी के दिन
मीठा भोजन या फलाहार करने भोजन में नमक का सेवन
ना करने से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं ।
नक्षत्र ()- ज्येष्ठा 08:20 तदुपरांत मूल
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- ज्येष्ठा
नक्षत्र के देवता इन्द्र है एवं मूल नक्षत्र के देवता
निर्रुती (राक्षस) है ।
योग() – व्यतीपात 16:36
प्रथम करण : – विष्टि – 08:22
द्वितीय करण : – बव – 20:55
गुलिक काल : – बुधवार को शुभ गुलिक 10:30 से 12
बजे तक ।
दिशाशूल ()- बुधवार को उत्तर दिशा में दिशा
शूल होता है । इस दिन कार्यों में सफलता के लिए घर से सुखा/
हरा धनिया या तिल खाकर जाएँ ।
राहुकाल () : – बुधवार को राहुकाल दिन
12:00 से 1:30 तक ।
सूर्योदय – प्रातः 06:07
सूर्यास्त – सायं 06:17
विशेष – सप्तमी को ताड़ का सेवन
नहीं करना चाहिए ।
पर्व त्यौहार-जय श्री शीतला माता सप्तमी
???????? शीतला माता पूजन विधि
शीतला माता का पर्व चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की षष्टी, सप्तमी अथवा अष्टमी को मनाया जाता है। शीतला माता अपने साधकों के तन-मन को शीतल कर देती है तथा समस्त प्रकार के तापों का नाश करती है। शीतला माता का पर्व चाहे षष्टी को हो, सप्तमी को हो या अष्टमी को इसे दूसरे नामों से भी जाना जाता है, जैसे बसौड़ा अथवा बाड़ा भी इसे कहा जाता है। वर्ष 2019 का शीतला माता पर्व 27और 28 मार्च 2019 को मनाया जाएगा।
बसोडा की परंपराओं के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती। इसलिए अधिकतर लोग शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन पका लेते हैं और बसोडा वाले दिन बासी भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बिमारियों से बचाती हैं। मान्यता है, शीतला माँ का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्द छुटकारा मिलता है।
एक बार की बात है, प्रताप नगर में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे और पूजा के दौरान गांव वालों ने गरिष्ठ का प्रसाद माता शीतला को प्रसाद रूप में चढ़ाया। गरिष्ठ प्रसाद से माता शीतला का मुंह जल गया। इससे माता शीतला नाराज हो गई। माता शीतला क्रोधित हो गई और अपने कोप से सम्पूर्ण गांव में आग लगा दी जिससे सम्पूर्ण गांव जलकर रख हो गया परन्तु एक बुढ़िया का घर बचा हुआ था।
गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर ने जलने का कारण पूछा तब बुढ़िया ने माता शीतला को प्रसाद खिलाने की बात कही और कहा कि मैंने रात को ही प्रसाद बनाकर माता को ठंडा एवम बासी प्रसाद माता को खिलाया। जिससे माता शीतला ने प्रसन्न होकर मेरे घर को जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने माता शीतला से क्षमा याचना की तथा अगले पक्ष में सप्तमी/अष्टमी के दिन उन्हें बासी प्रसाद खिलाकर माता शीतला का बसौड़ा पूजन किया।
माता शीतला पर्व का महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार माता शीतला अष्टमी को महिलाएं अपने घर में सुख,शांति के लिए रंग पंचमी से अष्टमी तक माता शीतला को बासौड़ा बनाकर पूजती है। माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी आदि चढ़ावे के एक दिन पूर्व रात्रि में बना लिए जाता है तथा अगले दिन यह बासी प्रसाद माता शीतला को चढ़ाया जाता है। पूजा करने के पश्चात महिलाएं बासौड़ा का प्रसाद अपने परिवारो में बां ट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता शीतला का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। *??जय शीतला माता *??*
?? जय श्री कृष्ण जी??
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।