त्रिंबकेश्वर या त्र्यंबकेश्वर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है, जो भारत में नाशिक शहर से 28 किलोमीटर और नाशिक रोड से 40 किलोमीटर दूर त्रिंबकेश्वर तहसील के त्रिंबक शहर में बना हुआ है.
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर है और साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जहाँ हिन्दुओ की वंशावली का पंजीकरण भी किया जाता है. पवित्र नदी गोदावरी का उगम भी त्रिंबक के पास ही है. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी गोदावरी के मंदिर परिसर में पवित्र कुसवर्ता कुण्ड भी है.
त्रिंबकेश्वर एक धार्मिक स्थान और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. त्रिंबकेश्वर में हमें तीन मुखी भगवान शिव का पिण्ड देखने मिलता है, जो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र का प्रतिनिधित्व करते है. पानी के ज्यादा बहाव (उपयोग) से यहाँ का पिण्ड धीरे-धीरे ख़त्म होता चला जा रहा है.
कहा जाता है की पिण्ड का कटाव मानव समाज के विनाश को दर्शाता है. यहाँ पाए जाने वाले लिंग को आभूषित मुकुट (मुग्ध मुकुट) से सजाया गया है, जो पहले त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के सिर पर चढ़ाया जाता था. कहा जाता है की यह मुकुट पांडवो के ज़माने से चढ़ाया हुआ है और इस मुकुट में हीरे, जवाहरात और बहुत से कीमती पत्थर भी जड़े हुए है.
भगवान शिव के इस मुकुट को हर सोमवार 4-5 बजे शाम के बीच लोगो को दिखाने के लिए रखा जाता है.
भगवान शिव के दूसरे सभी ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव की ही मुख्य देवता के रूप में पूजा की जाती है. केदारनाथ का मंदिर पूरी तरह से काले पत्थरो से बना हुआ है. कहा जाता है की ब्रह्मगिरी के आकर्षक काले पत्थरो से इसका निर्माण किया गया है. गोदावरी नदी के उगम के तीनो स्त्रोतों की शुरुवात ब्रह्मगिरी पहाडियों से ही होती है.
श्री निलंबिका/दत्तात्रय, माताम्बा मंदिर:
यह मंदिर नील पर्वत के शीर्ष पर बना हुआ है. कहा जाता है की परशुराम की तपस्या देखने के लिए सभी देवियाँ (माताम्बा, रेणुका और मनान्म्बा) यहाँ आयी थी. तपस्चर्या के बाद परशुराम ने तीनो देवियों से प्रार्थना की थी के वे वही रहे और देवियों के रहने के लिए ही मंदिर की स्थापना की गयी थी.
भगवान दत्तात्रय (श्रीपाद श्रीवल्लभ) यहाँ कुछ वर्षो तक रहे, साथ ही दत्तात्रय मंदिर के पीछे दायी तरफ नीलकंठेश्वर महादेव प्राचीन मंदिर और नील पर्वत के तल पर अन्नपूर्णा आश्रम, रेणूकादेवी, खंडोबा मंदिर भी बना हुआ है.
शिव मंदिर से 1 किलोमीटर की दूरी पर अखिल भारतीय श्री स्वामी समर्थ गुरुपीठ, श्री स्वामी समर्थ महाराज का त्रिंबकेश्वर मंदिर बना हुआ है. यह मंदिर वास्तु शास्त्र के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है।
पेशवा के समय हुआ मंदिर निर्माण….
तक़रीबन आज से 500 साल पहले यहाँ एक शहर का निर्माण किया गया जो बाद में त्रिंबकेश्वर के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ. पेशवा के समय नाना साहेब पेशवा के शासनकाल में त्रिंबकेश्वर मंदिर के निर्माण और त्रिंबकेश्वर शहर के विकास की योजना बनाई गयी और कार्य की शुरुवात भी की गयी।
नाशिक जिले के नाशिक शहर से 18 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरी पर्वत है. यह सह्याद्री घाटी का ही एक भाग है. त्रिंबकेश्वर शहर पर्वत के निचले भाग में बसा हुआ है. ठंडा मौसम होने की वजह से यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है और यह समुद्री सतह से भी 3000 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है. यहाँ जाने के 2 अलग-अलग रास्ते है. नाशिक से त्रिंबकेश्वर केवल 18 किलोमीटर दूर है और इस रास्ते का निर्माण श्री काशीनाथ धाटे की सहायता से 871 AD में किया गया था. नाशिक से हर घंटे यात्रियों को यातायात के साधन आसानी से मिल जाते है.
दूसरे आसान रास्तो में इगतपुरी-त्रिंबकेश्वर का रास्ता है. लेकिन इस रास्ते से जाते समय हमें 28 किलोमीटर की लम्बी यात्रा करनी पड़ती है. त्रिंबकेश्वर जाने के लिए यातायात के सिमित साधन ही यहाँ उपलब्ध हैं.
उत्तरी नाशिक से त्रिंबकेश्वर आने वाले यात्री आसानी और आराम से त्रिंबकेश्वर पहुच सकते है. 1866 AD में त्रिंबकेश्वर में नगर निगम की स्थापना की गयी. पिछले 120 सालो से नगर निगम यात्रियों और श्रद्धालुओ की देख-रेख कर रहा है. शहर के मुख्य रास्ते भी साफ़-सुथरे है.