सावधान..!क्या आप भी अपने बच्चों के लिए यूज़ करते है बेबी डायपर ?यदि हां तो जरूर पढ़े..वरना चुकानी पड सकती है कीमत

फटाफट डेस्क : भारत विश्व का पहला ऐसा देश है जहा सबसे ज्यादा डायपर यूज़ किये जाते है, जबकि कई सारे देशो में डायपर बैन कर दिए गए है। ऐसा नहीं है की बांकी देशों में डायपर यूज़ नहीं होते पर भारत उन सभी देशों में आगे है। हाल ही में बेबी डायपर्स पर एक रिसर्च किया गया है जिसके मुताबिक बच्चों के डायपर में जहरीले कैमिकल्स मिले होते है, इस जहरीले कैमिकल का नाम है ” थैलेट्स ” । क्योकि बच्चे काफी समय तक डायपर पहने रहते है इसलिए इस बात का खतरा रहता है कि ये थैलेट्स बच्चे के स्किन पर न चले जाये।

क्यों खतरानक है ये थैलेट्स ?
थैलेट्स से मेटाबॉलिक डिसऑर्डर , डायबिटीज़ , लिवर डिसऑर्डर और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां होती है।

रिसर्च के लिए डायपर बनाने वाली 19 कंपनियों के 20 सैंपल इकट्ठे किये गए, इसके बाद इनकी लैब टेस्टिंग कराई गई, और इसके आधार पर थैलेट्स के मौजूदगी की पृष्ठि हुई।

आइये जानते है कि ये थैलेट्स होते क्या है ?

थैलेट्स एक किस्म के कैमिकल होते है जिसका उपयोग प्लास्टिक को लचीला, सॉफ्ट बनाने के लिए किया जाता है, डायपर्स में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है, इस तरह से डायपर में ‘थैलेट्स की उपयोगिता काफी ज्यादा होती है। और जब बच्चे इस डायपर को पहनते है तो ये थैलेट्स नमी पाकर डायपर्स से निकल कर स्किन पर पहुँच जाते है, आपको बता दे कि थैलेट्स कैमिकल का एक प्रकार होता है जिसे DEHP कहते है। जिसे बच्चों के किसी भी सामान में व बच्चों से दूर रखने की सलाह दी जाती है। कई देशों में यह बैन भी है। डायपर हमेसा बच्चों के जननांगों के संपर्क में रहते है जब इनमे से थैलेट्स रिशता है तब आसानी से जननांगों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है।

रिसर्च में बताया गया है यदि थैलेट्स ज्यादा मात्रा में शरीर में जमा हो जाये तो बहुत सी घातक बिमारियों की संभावनाएं बन जाती है इसमें लिवर किडनी और कैंसर तक की बिमारियों के होने का खतरा होता है। ज्यादा तर घरों में डायपर्स को खुले में या डस्ट बिन में फेंक दिया जाता है। जब यह डायपर पर्यावरण के संपर्क में अता है तो थैलेट्स की मौजूदगी की
के कारण यह वातावरण को भी दूषित करता है और इस तरह हवा में मिलते हुए वे साँस के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते है। यूरोपीय देशों में इसके इस्तेमाल को लेकर कड़े निर्देश है लेकिन भारत में इसके लिए कोई निर्देश नहीं दिए गए है।