फ़टाफ़ट डेस्क। गुजरात के अमरेली जिले के सावरकुंडला में दीपावली की रात को पिछले 100 सालों से पारंपरिक लड़ाई चल रही है। इस युद्ध को इंगोरिया की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। इंगोरिया रॉकेटनुमा चीज होती हैं। नवाली नदी अमरेली जिले के सावर और कुंडला गांवों के बीच स्थित है। सालों पहले यहां दोनों गांवों के युवाओं ने दिवाली की रात एक-दूसरे पर इंगोरिया फेंककर अनोखे जश्न की शुरुआत की थी, यह परंपरा आज 70 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही है।
मेघर्ज तालुका के गांवों में पटाखे जलाकर और गायों को जलाकर नया साल मनाने की लंबी परंपरा है। पारंपरिक उत्सव के हिस्से के रूप में, मवेशियों के सींगों को लाल रंग से रंगा जाता है। बाद में, गांव के पुजारी के पास गायों को इकट्ठा किया जाता है और शाम को पटाखे छोड़े जाते हैं। ताकि दौड़ती हुई गायों में जो गाय आगे दौड़ती है और निर्धारित सीमा को पार करती है और जो गाय सबसे पहले आती है उसका सम्मान गाय के मालिक द्वारा किया जाता है।
इंगोरिया युद्ध खेलने के लिए युवा दिवाली की रात का इंतजार करते हैं। इंगोरिया के कारीगर एक महीने पहले से ही इंगोरिया बनाना शुरू कर देते हैं। इस युद्ध के दौरान अब तक कोई भी घायल नहीं हुआ है। लोग एक-दूसरे से प्यार करते हैं और भावनात्मक रूप से इंगोरिया फेंकने के खेल का आनंद लेते हैं। इंगोरिया का पेड़ करीब आठ से दस फीट लंबा होता है। इसके चीकू जैसे फल को इंगोरियु कहते हैं। दिवाली से लगभग एक महीने पहले, ग्रामीण इलाकों में युवा इंगोरिया ढूंढते हैं, इसे एक पेड़ से तोड़ते हैं और इसे सूखने देते हैं। फिर छाल को ऊपर से चाकू से निकाल कर उसमें एक छेद कर दिया जाता है। उसमे सल्फर-सुरोखर और चारकोल पाउडर मिश्रण भर दिया जाता है। छेद को नदी की मिट्टी के पाउडर से बंद कर दिया जाता है और सुखाया जाता है। फिर इंगोरिया तैयार है।
सिद्धपुर में भी दिवाली और नया वर्ष अनोखे तरीके से मनाए जाते हैं। इन दो दिनों में लोग रॉकेट वॉर खेलते हैं। सिद्धनाथ महादेव की सवारी वर्ष में महाड़ छोड़ने के बाद पूरे गांव में यात्रा करती है और निशाल चकला के पास लौट आती है। फिर गांव के युवक एक दूसरे पर राकेट फेंकते हैं और राकेट वार खेलते हैं। ये जंग सालों से चली आ रही है जिसे देखने में मजा भी आता है।