Health Tips: ‘तू डाल-डाल..मैं पात-पात’, बहुत पुरानी कहावत है और ये सिर्फ इंसानों से ही जुड़ी नहीं है। वायरस-बैक्टीरिया-फंगस…समेत तमाम बीमारियों की फितरत भी कुछ ऐसी ही है। किसी बीमारी का इलाज ढूंढ़ा नहीं कि उसका एडवांस वर्जन सामने आ जाता है। कोरोना महामारी के वक्त से तो कुछ ज्यादा ही ऐसी बातें हेल्थ एक्सपर्ट्स से सुनने को मिल जाती हैं। अब ‘लिवर प्रॉब्लम’ क्या कम थी, जो उससे भी खतरनाक ‘ऑटोइम्यून लिवर डिजीज’ आ गई।
लेंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑटोइम्यून लिवर डिजीज तेजी से फैल रही है। हाल ये है कि 2000 के बाद इसके मामले 3 गुना बढ़े हैं। महिलाओं और 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग सबसे ज्यादा इसके निशाने पर हैं। लेकिन सवाल ये है कि किसी भी बॉडी पार्ट से जुड़ी बीमारी में ऑटो-इम्यून लगते ही वो इतना घातक कैसे बन जाती है?और ये होता कैसे हैं?
क्या है ऑटो-इम्यून सिस्टम
दअरसल ‘ऑटो-इम्यून’ की कोई भी बीमारी हो वो क्यों शुरु हुई इसके बारे में हेल्थ एक्सपर्ट के पास भी कोई क्लियर जवाब नहीं है। लेकिन ‘ऑटो-इम्यून’ को इस तरह समझ सकती हैं कि इसमें ‘रक्षक ही भक्षक बन जाता है’। मतलब ये कि जिसे सुरक्षा करनी थी। वही हमला कर बैठता है। दरअसल बॉडी में ये कंडीशन तब बनती है, जब शरीर के इम्यून सिस्टम का सेंसर यानि समझ खराब हो जाती है। और वो शरीर के हेल्दी सेल्स को ही हमलवार समझकर नुकसान पहुंचाने लगता है।
बढ़ रहा है ऑटोइम्यून लिवर डिजीज का खतरा
यही फॉर्मूला ‘ऑटो-इम्यून लिवर डिजीज’ में भी लागू होता है। जिगर के इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी आने से वो लिवर सेल्स को ही दुश्मन समझ लेता है और उस पर हमला बोल देता है। जिससे लिवर में सूजन आने लगती है। यही inflammation लिवर सिरोसिस की वजह बनती है। जो इलाज ना होने पर लिवर कैंसर में तब्दील हो जाती है। कई बार तो लिवर फेल भी हो जाता है।
ऑटोइम्यून लिवर डिजीज के लक्षण
अब सवाल ये है कि इसकी पहचान कैसे करें? इसके लक्षण शुरु में मामूली से होते हैं जिसमें मसल्स पेन, हल्का बुखार, थकान, नजर का कमजोर होना है। जिसे लोग सीरियसली नहीं लेते और ये गंभीर बन जाती है। इम्यून सेंसर को परफेक्ट बनाने और लिवर हेल्दी रखने के लिए क्या करें योगगुरु स्वामी रामदेव से जानते हैं?